बाड़मेर.हुनर तो बहुत लोगों में होता है और लोग उसे जानते भी हैं. लेकिन अपने हुनर की बदौलत महिला सशक्तिकरण का उदाहरण के रूप में जानी जाने वाली बाड़मेर की रूमा देवी ने संघर्ष से निकलकर अपनी एक अलग पहचान बनाई. वे खुद के दम पर आगे बढ़ी और आज राजस्थान की कला एवं संस्कृति को देश-विदेश में एक नई पहचान दिला रही है.
इसके साथ ही हजारों दस्तकार महिलाओं के लिए संबल का काम कर रही है. महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में नारी शक्ति के रूप में आज उन्हें देखा जा रहा है. पिछले दिनों वे हावर्ड यूनिवर्सिटी में आयोजित कांफ्रेंस में स्पीकर के रूप में शामिल हुई, जहां उन्होंने हावर्ड यूनिवर्सिटी के छात्रों को कशिंदे की कला की बारीकियों को समझाया.
बता दें कि रूमा देवी अपने काम के नवाचार के लिए समूह की महिला दस्तकारों के साथ 2008 में बाड़मेर के एक गैर सरकारी संगठन ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान से जुड़कर कार्य कर रही थी. संस्था बाड़मेर जिले की महिलाओं दस्तकारों के हित के लिए पहले से ही कार्य कर रहा था. संस्था के सहयोग से दस्तकार को कच्चा माल प्रदान कर कशीदाकारी उत्पादन तैयार करवाकर उत्पादों की बिक्री के लिए सीधे देश और विभिन्न मेट्रो शहरों में आयोजित होने वाली प्रदर्शनी में भेजना शुरू किया. जहां उचित कीमत भी मिली और सफलता भी.
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वर्ष 2010 में रूमा देवी ने ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान के अध्यक्ष के रूप में कार्य शुरू किया और बाड़मेर जिले के गांव-गांव, ढाणी-ढाणी में अपने सेंटर स्थापित किया. वहीं कम्युनिटी स्किल विकास प्रशिक्षण, डिजाइनिंग विकास परीक्षण, सिलाई प्रशिक्षण आदि के जरिए जिले की 22 हजार महिलाओं को लाभान्वित किया जा रहा है.