बांसवाड़ा.कोई भी तीज त्योहार हो या फिर हंसी खुशी का पर्व. समय के साथ परंपराओं में परिवर्तन होते आए हैं. समाज के हित में कई बार यह बदलाव त्योहार मनाने के उल्लास को और बढ़ा देते हैं. हम बात कर रहे हैं कंडों की होली की. होली दहन में कई टन लकड़ी लग जाती थी. हरे-भरे पेड़ होली के नाम पर काट दिए जाते थे. अब उनके स्थान पर बांसवाड़ा में कंडों की होली जलाने का प्रचलन बढ़ रहा है.
इन प्रयासों से जहां गौ माता का महत्व बढ़ा है, वहीं पर्यावरण शुद्धि की भी एक सोच विकसित होती जा रही है. इसे देखते हुए बांसवाड़ा गौशाला की ओर से मजदूर लगाकर करीब 20 हजार कंडे तैयार करवाए गए हैं, जो बुकिंग के हिसाब से होलिका दहन वाले स्थानों पर पहुंचाए जा रहे हैं.
शहर में करीब 2 दर्जन स्थानों पर होलिका दहन किया जाता है. पिछले तीन-चार साल में करीब 70% होलिका दहन में कंडों का उपयोग बढ़ गया है. इसे देखते हुए गौशाला की ओर से अगले साल के लिए भी प्लान तैयार कर दिया गया है.
यहां मदारेश्वर रोड गौशाला में पिछले कई दिनों से मजदूरों की ओर से गोबर के कंडे तैयार किए जा रहे थे. कंडों से होली जलाने के लिए बुकिंग बढ़ने के बाद गौशाला की ओर से अतिरिक्त मजदूर लगाए गए और इनमें से आधे कंडे आयोजन स्थलों पर पहुंच गए हैं.
बताया गया है कि एक होलिका दहन के लिए करीब 300 से 400 कंडों की जरूरत पड़ती है. गौशाला द्वारा बुकिंग के अनुसार गाय के गोबर के कंडे तैयार करवाए गए. गाय के गोबर के कंडों को पर्यावरण की दिशा से भी काफी अहम माना गया है. इससे न केवल पर्यावरण शुद्ध होता है बल्कि लोगों में गौशालाओं को आर्थिक रूप से एक संबल मिलेगा.