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पैदल घर जा रहे मजदूरों के लिए फरिश्ता बनी बांसवाड़ा पुलिस, गाड़ी व्यवस्था कर भेजा घर

लॉकडाउन के बीच कई मजदूर अपने घरों की ओर पैदल ही कूच कर रहे हैं. इस दौरान बांसवाड़ा पुलिस का मानवीय पक्ष सामने आया, जब भीषण गर्मी में पैदल अपने घर जा रहे मजदूरों पर पुलिस को दया आ गई. पुलिस ने ना सिर्फ उनको खाना खिलाया बल्कि भामाशाहों की मदद से गाड़ी कर उन्हें उनके गंतव्य स्थान तक भिजवाया दिया है.

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बांसवाड़ा पुलिस बन गई फरिश्ता

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Published : May 3, 2020, 10:02 PM IST

बांसवाड़ा. सूरत से पैदल ही उत्तर प्रदेश के कानपुर जा रहे 10 युवाओं के लिए बांसवाड़ा पुलिस मददगार बनकर उभरी. करीब 8 दिन से भीषण गर्मी में लगातार पैदल चलने के कारण इन मजदूरों का स्वास्थ्य जवाब दे गया था. वहीं खाने को पर्याप्त भोजन नहीं मिलने के कारण इनकी स्थिति और भी बदतर हो गई थी. चेक पोस्ट पर ड्यूटी दे रहे पुलिस जवानों ने जब उनकी स्थिति देखी तो उनका दिल पसीज गया और तत्काल उच्चाधिकारियों के सामने मामला लाने के साथ उनके खाने-पीने और विश्राम की व्यवस्था की गई.

बांसवाड़ा पुलिस बन गई फरिश्ता

मेडिकल टेस्टिंग के बाद जब इनकी रवानगी की बात सामने आई तो पुलिस ने आर्थिक सहयोग देते हुए गांव के भामाशाह की भी मदद ली और सभी मजदूरों को एक वाहन के जरिए आगरा भरतपुर बॉर्डर के लिए रवाना किया गया.

मजदूरों का दर्द देख छलकी पुलिस की आंखे

पुलिस और गांव के लोगों का यह सहयोग पाकर इन मजदूरों की आंखें छल छला उठी. क्योंकि लगातार 1 सप्ताह से अधिक समय से पैदल चल रहे थे, लेकिन रास्ते में किसी भी व्यक्ति को उनकी दयनीय हालत पर तरस नहीं आया.

आज दोपहर बाद सेना बादशाह स्थित चेक पोस्ट पर 18 से लेकर 25 साल के 10 युवाओं के समूह को निकलते देखा तो चौकी प्रभारी हेड कांस्टेबल लेखराम ने उनसे पूछताछ की तो सामने आया कि रुपये नहीं होने के कारण वह पैदल ही कानपुर जा रहे हैं.

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चौंकाने वाली बात यह थी कि इतना लंबा सफर करने के बावजूद रास्ते में कहीं पर भी इनकी स्क्रीनिंग और मेडिकल जांच तक नहीं की गई. जबकि रास्ते में राजस्थान गुजरात बॉर्डर पर बकायदा चेक पोस्ट कायम है.

स्क्रीनिंग के साथ किया भोजन-पानी का इंतजाम

थाना प्रभारी बाबूलाल मुरारिया ने तत्काल प्रभाव से पुलिस अधीक्षक केसर सिंह शेखावत और जिला प्रशासन को इस बारे में बताया. इस प्रक्रिया के बीच सदर पुलिस द्वारा इन मजदूरों को चाय नाश्ता स्नान की सुविधा देने के साथ भोजन कराया.

आराम कराने के बाद सीएचसी सेनावासा से उनकी मेडिकल जांच करवाई गई. जिसमें प्रारंभिक तौर पर किसी भी प्रकार की कोई बीमारी नहीं पाई गई. मुरारिया ने इसके बाद मदद का हाथ बढ़ाते हुए परिवहन विभाग द्वारा स्वीकृत सुदा टवेरा गाड़ी की व्यवस्था की गई.

भामाशाहों की मदद से इकठ्ठा किया किराया

बता दें कि 10 रुपये प्रति किलोमीटर की दर से इन लोगों को आगरा भरतपुर बॉर्डर तक पहुंचाने के लिए 16000 का किराया बन रहा था. सदर थाना प्रभारी ने स्टाफ के साथ मिलकर 6000 एकत्रित किए और सेनावासा के समाजसेवी हरीश कलाल द्वारा 5100 रुपए की मदद दी गई.

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इसके बाद भामाशाह आजम खान ने 3000 और सरपंच गणपत कटारा ने ग्रामीणों के सहयोग से राशि जुटाई. कुल मिलाकर पुलिस की पहल से 16200 की सहयोग राशि एकत्र करते हुए टवेरा चालक संतोष कुमार को सौंपी गई और उसे इन लोगों को भरतपुर आगरा सीमा तक छोड़ने के लिए पाबंद किया गया.

थाना प्रभारी के अनुसार वाकई उन लोगों की हालत बहुत खराब थी और गांव के लोगों ने उन्हें घर पहुंचाने के लिए जो मदद की, जितनी भी सराहना की जाए कम है.

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