पुष्कर का प्राचीन वराह मंदिर अजमेर.तीर्थ नगरी गुरु पुष्कर हिन्दू धर्मावलंबियों (Tirthraj Pushkar) के लिए एक बड़ा स्थान है. सदियों से तीर्थ दर्शन के लिए लोगों का यहां आना जाना (Unique statue of Dharmaraj) रहा है. यही वजह है कि लोगों ने यहां अपनी श्रद्धा के अनुसार कई मंदिरों का निर्माण भी करवाया. यूं तो पुष्कर जगतपिता ब्रह्मा की नगरी के नाम से विख्यात (God calculates sins and virtues) है, लेकिन यहां सैकड़ों छोटे बड़े मंदिर भी है जो अपने धार्मिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक विशेषता लिए हुए हैं. इनमें से एक पुष्कर में इमली मोहल्ले में स्थित 900 वर्ष पुराना वराह मंदिर और परिसर में स्थित धर्मराज की मूर्ति है.
मान्यता है कि धर्मराज हर प्राणी के पुण्य और पाप का लेखा जोखा रखते हैं. उनके हिसाब में राई के बराबर भी चूक की गुंजाइश नहीं है, यानी पाप और पुण्य का राई के बराबर भी हिसाब उनके पास होता है. ऐसा माना जाता है कि यमराज के दूत हर प्राणी की मौत के बाद उसकी आत्मा (Pushkar Hindu pilgrimage destination) को यमलोक लेकर जाते हैं, जहां धर्मराज प्राणी के पाप और पुण्य का लेखा जोखा उसे बताते है और उसके अनुसार ही आत्मा को स्वर्ग और नर्क में स्थान मिलता है. मतलब साफ है पाप अधिक है तो प्राणी की आत्मा को नरक भोगना पड़ता है और पुण्य का पलड़ा भारी है तो स्वर्ग में उसे स्थान मिलेगा. यही वजह है कि वराह मंदिर में आने वाले श्रद्धालु धर्मराज का आशीर्वाद लेना नही भूलते.
900 वर्ष प्राचीन वराह मंदिरः पुष्कर में वराह मंदिर का इतिहास काफी पुराना है. बताया जाता है कि यहां भगवान विष्णु के तीसरे अवतार वराह की प्रतिमा स्वंय विग्रह ( स्वंय प्रकट ) हुई है. पाताल से वराह के रूप में भगवान विष्णु ने अपने दांतों पर धरती को रखकर बाहर निकाला था. मंदिर के पुजारी पंडित आशीष पाराशर बताते हैं कि 10वीं शताब्दी में राजा रुद्रदेव ब्राह्मण देव ने मंदिर का निर्माण करवाया था. बाद में अजमेर के चौहान वंश के राजा अर्णोराज चौहान ने मंदिर को भव्यता प्रदान की थी. मंदिर की सुरक्षा के लिए महाराणा प्रताप के भाई शक्ति सिंह ने मंदिर के चारों ओर सुरक्षा दीवार बनवा कर इसे किले का रूप दिया.
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इस मंदिर ने कई आक्रांताओं के हमले झेले हैं. मुगल शासक औरंगजेब ने भी मंदिर को नष्ट करने का पूरा प्रयास किया था, तब जोधपुर से राजा अजीत सिंह ने औरंगजेब की सेना को मुंहतोड़ जवाब दिया था. लेकिन इस युद्ध के बीच औरंगजेब ने मंदिर परिसर के कई हिस्सों को तोड़ दिया था. मंदिर में स्थानीय लोग की गहरी आस्था है. धरती से करीब 20 फिट ऊंचा किले नुमा वराह मंदिर पुष्कर आने वाले श्रद्धालुओं को अपनी और आकर्षित करता है. वहीं मंदिर में भगवान विष्णु के वराह अवतार की मूर्ति के दर्शन के बाद धर्मराज की प्रतिमा का दर्शन श्रद्धालुओं के लिए अनूठा अनुभव लिए रहता है.
वराह मंदिर परिसर में धर्मराज की प्रतिमाःबताया जाता है कि वराह मंदिर में धर्मराज की प्रतिमा की स्थापना करीब 250 वर्ष पहले हुई थी. इस प्रतिमा को कब और किसने स्थापित किया इसका कोई प्रमाणिक इतिहास नहीं है. लेकिन लोगों की जितनी श्रद्धा वराह मंदिर से है उतनी ही धर्मराज की प्रतिमा से भी है. पुजारी आशीष पाराशर बताते हैं कि धर्म परायण लोग वर्ष भर धर्मराज की कथा करवाने या व्रत रखने का (Makar Sankranti 2023) संकल्प लेते हैं. यह संकल्प संक्रांति से अगली संक्रांति तक लिया जाता है. संकल्प पूरा होने पर लोग संक्रांति पर उजमना करते हैं. कई लोग संक्रांति पर यहां अपनी आवश्यकता की वस्तुएं भी अर्पित करते हैं. इनमे छाता, पलंग, बर्तन आदि शामिल है. हर पूर्णिमा पर लोग धर्मराज की प्रतिमा के समक्ष दीपक जलाते हैं और एक कटोरी राई अर्पित करते हैं. ऐसा माना जाता है कि धर्मराज को राई अर्पित करने से पाप कट जाते हैं.
श्रद्धालुओं के लिए रहता है अनूठा अनुभवःपुष्कर आने वाले श्रद्धालु जगतपिता ब्रह्मा मंदिर के दर्शन के बाद अन्य प्राचीन मंदिरों के भी दर्शन करते हैं. इनमें वराह मंदिर भी शामिल है. अपने किला नुमा आकार से बड़ा मंदिर श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है. मंदिर की सीढ़ियां चढ़ने के बाद ही पता चलता है कि परिसर में वराह मंदिर भी है. मंदिर परिसर में ही धर्मराज की बड़ी सी प्रतिमा है. पुष्कर में बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए धर्मराज की प्रतिमा हैरान कर देने वाली है.
दरअसल धर्मराज ( यमराज ) की प्रतिमा के लोग पुष्कर में आकर (Statue of Dharmaraja in Varaha temple) यहां पहली बार दर्शन करते है और उनसे जुड़ी मान्यताओं के बारे में जानते हैं. कोलकाता से अपनी मां के साथ आकर राजस्थान के धार्मिक स्थलों का भ्रमण कर रही डॉ मीठी मोली बताती है कि धर्मराज की प्रतिमा पहली बार उन्होंने पुष्कर में देखी है. मरने के बाद हम कहां जाएंगे यह धर्मराज तय करते है यह वास्तव में अनूठा अनुभव रहा है. पुष्कर के प्राचीन वराह मंदिर में मौजूद धर्मराज की यह राजस्थान की इकलौती प्रतिमा है. जहां लोग वराह मंदिर में दर्शन के बाद धर्मराज से अपने पापों को कम करने की प्रार्थना करते हुए उन्हें राई अर्पित करते हैं.