अजमेर. राजस्थान में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं. प्रदेश में सियासत जोर पकड़ने लगी है. आरोप-प्रत्यारोप के दौर तेज हो चुके हैं. वहीं, नेताओं ने अपनी दावेदारी ठोंकना भी शुरू कर दिया है. बात करें अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र की तो विगत 20 वर्ष से यहां भाजपा का कब्जा है. वासुदेव देवनानी लगातार चौथी बार यहां से विधायक हैं. देवनानी पांचवीं बार भी किस्मत आजमाने तैयार हैं. इधर अजमेर उत्तर सीट पर कांग्रेस भी कब्जा जमाने की फिराक में है लेकिन गुटबाजी से कांग्रेस पार नहीं पा रही है.
अजमेर शहर में अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र कई खूबियां समेटे हुए है. क्षेत्र में ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह है तो अजमेर शहर को चार चांद लगाती ऐतिहासिक मानव निर्मित आनासागर झील है. झील के चारों ओर बसा हुआ अजमेर उत्तर विधानसभा का बड़ा क्षेत्र है. क्षेत्र में संभाग का सबसे बड़ा जेएलएन अस्पताल और जनाना अस्पताल है. वहीं, जिला मुख्यालय समेत सभी महत्वपूर्ण सरकारी दफ्तर भी अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र में हैं.
राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, रेलवे भर्ती बोर्ड, आरपीएससी, राजस्व मंडल, आयुर्वेद निदेशालय, संभाग आयुक्त कार्यालय, नगर निगम, अजमेर विकास प्राधिकरण समेत सभी बड़े कार्यालय क्षेत्र में हैं. वहीं, शैक्षणिक दृष्टि से देखें तो सभी बड़ी शिक्षण संस्थाएं भी अजमेर उत्तर में है. विगत 5 वर्षों में अजमेर उत्तर का तेजी से विकास हुआ है, लेकिन यह विकास मौजूदा विधायक के खाते में ना जाकर केंद्र सरकार और राज्य सरकार के खाते में जाता है. अजमेर स्मार्ट सिटी लिमिटेड की ओर से 900 करोड़ रुपये की लागत से विकास कार्य हुए. इनमें एलिवेटेड ब्रिज भी शामिल हैं. इसके अलावा पर्यटन, चिकित्सा, शिक्षा, मुख्य सड़क को लेकर भी विकास हुए हैं.
RSS के चहेते हैं देवनानी : अजमेर शहर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का गढ़ रहा है. अजमेर शहर की उत्तर और दक्षिण विधानसभा क्षेत्र की सीटों में टिकट से लेकर चुनाव लड़वाने तक आरएसएस की सक्रियता काफी रहती है. यूं कहें कि शहर की दोनों सीटें आरएसएस का कोटा मानी जाती हैं तो गलत नहीं होगा. वर्तमान में अजमेर उत्तर से विधायक वासुदेव देवनानी आरएसएस के चहेते हैं. माना जाता है कि देवनानी का टिकट बीजेपी कार्यालय से नहीं, बल्कि नागपुर में संघ मुख्यालय से आता है. देवनानी लगातार 20 वर्षों से क्षेत्र में विधायक हैं. क्षेत्र में देवनानी की सक्रियता और कार्यकर्ताओं के लिए हमेशा खड़े रहना ही उनकी ताकत है. यही वजह है कि देवनानी इस बार भी अपने टिकट को लेकर आश्वस्त हैं. हालांकि, देवनानी 75 वर्ष की आयु पार कर गए. ऐसे में अटकलें लगाई जा रहीं हैं कि बीजेपी इस बार यहां नए चेहरे पर दांव खेल सकती है. दूसरी ओर अब टिकट के दावेदार भी भाजपा में बढ़ने लगे हैं.
कांग्रेस को गुटबाजी ले डूबी : अजमेर शहर की दोनों सीटों पर कांग्रेस कमजोर स्थिति में रही है. 20 वर्षों में कांग्रेस शहर की दोनों सीटें जीतना तो दूर नगर निगम में अपना बोर्ड तक नहीं बना पाई है. हालांकि, अपवाद के तौर पर सीधे मेयर के चुनाव में कांग्रेस ने बाजी मारी थी. इस बार नगर निगम चुनाव में कांग्रेस की शर्मनाक हार हुई. इसका कारण कांग्रेस में गुटबाजी ही रही. संगठनात्मक रूप से अजमेर शहर में कांग्रेस कमजोर रही है. वहीं, पार्टी कम व्यक्तिगत निष्ठा पर यहां कांग्रेस के नेता ज्यादा विश्वास करते हैं. यही वजह है कि यहां कांग्रेस के जितने नेता हैं उतने ही गुट यहां सक्रिय हैं. पिछले चुनाव में देवनानी के सामने कांग्रेस से महेंद्र सिंह रलावता ने लड़ा था. उससे पहले दो बार देवनानी के सामने कांग्रेस से पूर्व विधायक श्रीगोपाल बाहेती चुनाव लड़ चुके हैं.
20 वर्षों से नहीं टूटा सिंधी सीट होने का मिथक : अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र सिंधी बाहुल्य है. देवनानी सिंधी समाज से आते हैं. ऐसे में अजमेर उत्तर के बारे में एक मिथक बन गया कि यह सिंधी सीट है. कांग्रेस ने पिछले 15 वर्षों से गैर सिंधी को टिकट देकर देख लिया है, लेकिन यहां देवनानी चार बार से अपनी जीत बरकरार रखे हुए हैं. 20 वर्षों से देवनानी अजमेर उत्तर से विधायक हैं. ऐसे में सिंधी सीट होने के मिथक को और बल मिला है.
दरअसल देवनानी से पहले भी सीट से सिंधी समाज से कांग्रेस के टिकट पर किशन मोटवानी 3 बार, बीजेपी से भगवान दास शास्त्री, कांग्रेस से एक बार नानकराम जगतराय एवं बीजेपी से हरीश झामनानी एक बार चुनाव जीत चुके हैं. देवनानी ने उदयपुर से आकर अजमेर में पहला चुनाव वर्ष 2003 में लड़ा. उनके सामने कांग्रेस से नरेन शाहनी थे. शाहनी चुनाव हार गए और देवनानी स्थाई रूप से यहीं जम गए.
इस बार यह दावेदार : 75 वर्ष की उम्र के बाद भी वासुदेव देवनानी चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं. बीजेपी अपने फार्मूले को लागू करती है तो देवनानी को कोई बड़ा पद देकर संतुष्ट किया जा सकता है और उनकी जगह नए चेहरे पर बीजेपी दांव खेल सकती है. बीजेपी में दावेदारों की कमी नहीं है. दावेदारों में सुरेंद्र सिंह शेखावत, सुनील जैन, सुभाष काबरा, हरीश गिदवानी, नीरज जैन, जेके शर्मा, कंवल प्रकाश किशनानी का नाम है. इधर कांग्रेस में आरटीडीसी चेयरमैन धर्मेंद्र सिंह राठौड़ भी अजमेर उत्तर से ताल ठोंकने की तैयारी में हैं. उनकी सक्रियता ने कांग्रेस में अन्य दावेदारों की बेचैनी बढ़ा दी है. पिछला चुनाव हारे महेंद्र सिंह रलावता दोबारा से अपना भाग्य आजमाना चाह रहे हैं. डॉ. श्रीगोपाल बाहेती की पहली पसंद अब पुष्कर है, लेकिन उत्तर से टिकट की दावेदारी भी वह करेंगे. दीपक हासानी, विजय जैन भी दावेदार हैं.
अजमेर उत्तर का राजनीतिक समीकरण : अजमेर उत्तर में विगत 20 वर्षों से भाजपा का प्रभुत्व रहा है. प्रदेश में 20 वर्ष में दो बार कांग्रेस की सरकार बनी है, लेकिन अजमेर उत्तर की सीट पर भाजपा का ही कब्जा रहा. क्षेत्र की जनता का झुकाव बीजेपी की ओर रहा है. दरअसल, अजमेर उत्तर में मतदाता का अटैचमेंट पार्टी से है. बीजेपी के हिंदूवादी विचारधारा का वोटर पर ज्यादा प्रभाव यहां देखा गया है. हिंदूवादी कई संगठन भी क्षेत्र में संक्रिय हैं जो विभिन्न सामाजिक और धार्मिक आयोजनों के माध्यम से हिंदूवादी विचारधारा को पोषित करते रहते हैं. इसका प्रभाव चुनाव में भी देखने को मिलता है. हिंदू मतदाताओं का झुकाव बीजेपी की ओर रहता है, जबकि कांग्रेस हमेशा से गुटबाजी में ही उलझ कर रह जाती है.
यह जातिगत समीकरण : जातिगत समीकरण की बात करें तो अजमेर उत्तर में 2 लाख 5 हजार 833 मतदाता हैं. इनमें 1 लाख 3 हजार 512 पुरुष और 1 लाख 2 हजार 321 महिलाएं मतदाता शामिल हैं. राजनीतिक पार्टियां खासकर भाजपा इस सीट को सिंधी बाहुल्य मानती आई है. जातिगत समीकरण पर एक नजर...
सिंधी - 18 हजार
एससी- 28 हजार
रावणा राजपूत - 25 हजार
वैश्य - 17 हजार
ब्राह्मण - 19 हजार
मुस्लिम - 23 हजार