नागौर.राजस्थान में खेती को मानसून का जुआ कहा जाता है. इस साल यह कहावत सटीक बैठती दिख रही है. इस साल जिले में मानसून की छितराई हुई और कम बारिश हुई है. इसका नतीजा खरीफ फसलों की बुवाई में कमी के रूप में सामने आया है. इस साल खरीफ की फसलों की बुवाई करीब 10 फीसदी कम हुई है.
मानसून ने थामी बुवाई की रफ्तार जिले में इस साल अभी तक मानसून पूरी तरह मेहरबान नहीं हुआ है. पूरा सावन और आधा भाद्रपद बीत जाने के बाद भी जिले में औसत से कम बारिश दर्ज की गई है. अभी तक मानसून की छितराई हुई और असामान्य बारिश हुई है, जो कृषि प्रधान नागौर जिले के किसानों के सामने बड़ी समस्या साबित हो रही है.
मानसूनी बारिश पर खेती निर्भर
जिले की अधिकांश खेती भी मानसूनी बरसात पर निर्भर है. ऐसे में कम और छितराई हुई बारिश के कारण इस बार खरीफ की फसलों की बुवाई भी घट गई है. देरी से मानसून पहुंचने और उसके बाद भी असामान्य और अंतराल से बरसात होने के कारण नागौर की प्रमुख मानी जाने वाली बाजरे की फसल की बुवाई में भी कमी दर्ज की गई है. आमतौर पर 1 जून के बाद हुई बरसात को मानसून की बरसात के रूप में देखा जाता है.
नागौर में खरीफ फसल की बुवाई पढ़ें-SPECIAL: कमजोर मानसून की बेरुखी झेल रहा हाड़ौती संभाग, 4 लाख बीघा से अधिक भूमि पर नहीं हुई बुवाई
बारिश में कमी...
आंकड़े बताते हैं कि पिछले साल 1 जून से 11 अगस्त तक जिले में औसत 345.7 मिलीमीटर बारिश हुई थी. जबकि इस साल इस अवधि में महज 270 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई है. बीते साल इस अवधि में सबसे कम 151 मिलीमीटर बारिश नागौर तहसील में हुई थी और सबसे ज्यादा 557 मिलीमीटर बारिश रियांबड़ी तहसील में दर्ज की गई थी. वहीं, इस साल 1 जून से अब तक सबसे कम 191 मिलीमीटर बारिश डेगाना तहसील में और सबसे ज्यादा 427 मिलीमीटर बारिश मेड़ता तहसील में दर्ज की गई है.
खरीफ फसल की बुवाई में 10 फीसदी कमी
जिले में औसत से कम बरसात होने का सबसे बड़ा असर यह हुआ है कि इस साल खरीफ की फसलों की बुवाई करीब 10 फीसदी कम हुई है. कृषि विभाग के अधिकारी बताते हैं कि जिले में अब बुवाई का सिलसिला थम गया है और किसान अपने खेतों में अब तक बोई गई फसलों की सार संभाल में जुट गए हैं.
पढ़ें-Special: औसत बारिश में पिछड़ा कोटा, जुलाई में 10 सालों में सबसे कम बरसात, किसानों के सामने गहराया संकट
कृषि विभाग का आंकड़ों के अनुसार जिले में खरीफ के सीजन में 12,46,000 हेक्टेयर में बुवाई का लक्ष्य था. इसमें से 11,20,484 हेक्टेयर इलाके में ही बुवाई हो पाई है, यानि कुल लक्ष्य की 89.93 फीसदी ही बुवाई हुई है. जबकि जिले में अधिकांश खेती मानसूनी बारिश पर आधारित है और खरीफ की फसलों से ही किसानों को ज्यादा उम्मीद रहती है. रबी की खेती उन चुनिंदा इलाकों में ही होती है, जहां सिंचाई के लिए पानी का इंतजाम है.
विभागीय आंकड़ाः
यह आंकड़े बताते हैं कि जिले में मानसून की कमी और असामान्य बारिश का सबसे ज्यादा असर मुख्य फसल बाजरे पर हुआ है. बाजरे की इस बार लक्ष्य से करीब 15 फीसदी बुवाई कम हुई है, जबकि आमतौर पर जिले में बाजरे की बुवाई लक्ष्य से ज्यादा ही होती है. हालांकि, तिल और मूंगफली जैसी तिलहन फसलों की बुवाई लक्ष्य के मुकाबले ज्यादा भी हुई है. तिल की बुवाई लक्ष्य से 31 फीसदी और मूंगफली की बुवाई लक्ष्य से 37 फीसदी ज्यादा हुई है.
टिड्डियों का हमला कम जिम्मेदार
हालांकि, खेती के जानकार इस बार खरीफ की फसलों की कम बुवाई के पीछे जिले में लगातार टिड्डियों के हमले को भी कहीं न कहीं जिम्मेदार मानते हैं. लेकिन कृषि विभाग के उपनिदेशक हरजीराम चौधरी का कहना है कि नागौर में जब खरीफ की बुवाई का सिलसिला शुरू हुआ, तब तक टिड्डियों के हमले की घटनाएं कम हो गई थी और बुवाई के करीब 15 दिन तक टिड्डियों से खेतों में कोई बड़ा नुकसान भी नहीं होता है. इसलिए इस बार खरीफ की फसलों की कम बुवाई के लिए टिड्डियों का हमला कम जिम्मेदार है.
पढ़ें-Report: इस बार मानसून की बेरुखी झेल रहा राजस्थान, औसत से 26 फीसदी बारिश कम
कृषि विभाग के उपनिदेशक का कहना है कि मानसून की कम और असामान्य बरसात इसके लिए मुख्य तौर पर जिम्मेदार है. हालांकि, अभी भी किसानों और कृषि विभाग की चिंताएं कम नहीं हुई हैं. अभी भी जिले में कई जगहों पर टिड्डियों के अंडों से निकले हॉपर्स को नष्ट करना एक बड़ी चुनौती है. इसके अलावा फसलों को आगामी दिनों में संभावित ज्यादा बारिश और कीटों से बचाना किसी चुनौती से कम नहीं है.