कोटा. बूढ़ी मां के अंतिम संस्कार में बेटे नही आए. बहन ने मां के अंतिम वक्त में उसकी सेवा की और मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार भी उसी ने किया. शहर के विक्रम चौक लाडपुरा निवासी 100 वर्षीय अशर्फी देवी अग्रवाल का शनिवार को प्रातः निधन हो गया था. 46 वर्षीय पुत्री ने ही अपनी मां को कांधा दिया और विधिवत् अंतिम संस्कार किया.
बेटी ने दी मां को मुखाग्नि अशर्फी देवी के तीन पुत्र और दो पुत्रियां अंतिम दर्शन तक के लिए नहीं आए. अशर्फी देवी के पति रामभरोसी लाल अग्रवाल का 1989 में ही निधन हो गया था. वे पीछे अशर्फी देवी के साथ 3 पुत्र एवं तीन पुत्रियां छोड़कर गए थे. लेकिन, तीनों पुत्र पिता के निधन के पश्चात संपत्ति में से अपना हिस्सा लेकर बूढी और बीमार मां को छोड़कर चले गए. उसके बाद वे आज तक नहीं लौटे. वहीं दो बेटियां भी मां से कभी हालचाल पूछने नहीं आई. ऐसे में, अपनी मां को असहाय देखकर सबसे छोटी बेटी 46 वर्षीय लीना अग्रवाल ने ही मां की सेवा की.
बेटी ने किया मां का अंतिम संस्कार पढ़ें-बर्ड फ्लू का असर: एक सप्ताह में ही अंडे की 40 फीसदी गिरी बिक्री, दाम भी हुए कम
मां की सेवा करते हुए लीना ने ग्रेजुएशन की. इसके बाद लीना का विवाह हुआ तो एक बेटे और एक बेटी को पालने लगी. मां की सेवा को लेकर पति से अनबन होने लगी. जिसके बाद 2004 में पति भी छोड़कर चला गया. तब लीना ने 17 वर्षीय पुत्र एवं 16 वर्षीय पुत्री को भी मां के साथ पाला. इस दौरान लीना ने कभी हिम्मत नहीं हारी. वह ट्यूशन करके अपनी मां व बच्चों का पालन करती रही.
बेटे साथ छोड़ गए, बेटी ने की मां की सेवा और अंतिम संस्कार अब लीना की शतायु मां भी सेवा और साथ छोड़कर चली गई. मां की मृत्यु पर भी जब बेटे नहीं लौटे तो लीना ने ही मां का अंतिम संस्कार किया. लीना ने कर्मयोगी सेवा संस्थान के अध्यक्ष राजाराम जैन कर्मयोगी से संपर्क किया. कर्मयोगी ने अंतिम संस्कार की व्यवस्थाएं करते हुए किशोरपुरा मुक्तिधाम पर अंतिम संस्कार की व्यवस्थाएं कीं. अलका दुलारी कर्मयोगी ने लीला अग्रवाल के साथ खड़े रहकर अंतिम संस्कार में सहयोग किया. लीना ने स्वयं ही अपनी मां को कंधा दिया. मुक्तिधाम पर विधिवत अंतिम संस्कार किया गया. कर्मयोगी ने बताया कि परिवार का कोई सदस्य अंतिम संस्कार में मौजूद नहीं था. कर्मयोगी संस्था परिवार के चार सदस्यों की उपस्थिति में अंतिम संस्कार किया गया.