जोधपुर. जोधपुर डिस्कॉम की आखिरी उम्मीद को भी शुक्रवार को झटका लग गया. सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश एमआर शाह और न्यायाधीश बीवी नागरत्ना ने राजस्थान उच्च न्यायालय की खंडपीठ के 12 अप्रैल 2022 के निर्णय पर विशेष अनुमति याचिका प्रारंभिक स्तर पर ही यह कहकर खारिज कर दी कि यह एकल पीठ के अंतरिम आदेश पर जारी होने से पोषणीय नहीं है. इस बीच अतिरिक्त जिला न्यायालय की ओर से पारित कुर्की आदेश से डिस्कॉम प्रबंध निदेशक और अधीक्षण अभियंता की टेबल कुर्सी और कार्यालय कुर्क होने से बचने के वास्ते परिवादी को मुआवजा राशि 9 लाख 11 हजार रुपए मय 9 फीसदी ब्याज और पांच हजार रुपए परिवाद व्यय चुकता (supreme court order discom had to pay compensation) करनी पड़ी.
जोधपुर विद्युत वितरण निगम ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिर दायर कर कहा कि उनकी विशेष अपील को राजस्थान उच्च न्यायालय ने यह कहकर गलत खारिज कर दिया कि स्थाई लोक अदालत की ओर से पारित आदेश में हाईकोर्ट की एकल पीठ की ओर से पारित अंतरिम अथवा अंतिम आदेश के खिलाफ अपील पोषणीय नहीं है. डिस्कॉम की ओर से यह कहा गया कि राजस्थान उच्च न्यायालय की खंडपीठ का आदेश कानूनन सही नहीं होने से अपास्त घोषित किया जाए.
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सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश एमआर शाह और न्यायाधीश बीवी नागरत्ना ने राजस्थान उच्च न्यायालय के विशेष अपील में पारित आदेश जो कि एकल पीठ की ओर से दिए गए अंतरिम आदेश के खिलाफ होने से विशेष अनुमति याचिका को पोषणीय नहीं होने से खारिज कर दिया और कहा कि परिवादी को जो कोई भी भुगतान किया जाता है वह राजस्थान उच्च न्यायालय की एकल पीठ के अंतिम निर्णय पर निर्भर रहेगा.
उल्लेखनीय है कि परिवादी नंद किशोर मेहता के विनायक विहार स्थित फ्लैट में डिस्कॉम कर्मियों की लापरवाही से एकाएक हाई वोल्टेज से उपकरणों में आग लग गई जिस पर दायर परिवाद में गत वर्ष 23 जून को स्थाई लोक अदालत ने जोधपुर विद्युत वितरण निगम के प्रबंध निदेशक और अधीक्षण अभियंता को मुआवजा राशि 9 लाख 11 हजार रूपए मय 9 फीसदी ब्याज और परिवाद व्यय पांच हजार रुपए परिवादी को अदा करने के आदेश किए. जिसके खिलाफ डिस्कॉम की ओर से राजस्थान उच्च न्यायालय के समक्ष दायर रिट याचिका में एकल पीठ ने 25 जनवरी 2022 को अंतरिम आदेश दिया कि परिवादी को मुआवजा राशि का भुगतान डिस्कॉम करे. एकल पीठ के आदेश से व्यतीथ होकर डिस्कॉम की ओर से दायर विशेष अपील को परिवादी अधिवक्ता की ओर से चलने योग्य नहीं बताए जाने पर खंडपीठ ने संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत पोषणीय नहीं मानते हुए गत 12 अप्रैल 2022 को खारिज कर दिया.