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Published : Aug 23, 2020, 3:05 PM IST

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जोधपुर: कोरोना से रिकवर मरीजों को दोबारा संक्रमण का खतरा...पोस्ट कोरोना ओपीडी में होगी फेंफड़ों की जांच

जोधपुर में कोरोना संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. वहीं राहत की बात ये है कि मरीजों की रिकवरी रेट भी काफी अच्छी है. लेकिन अब डॉक्टरो को चिंता इस बात की सता रही है कि कहीं जो मरीज ठीक हो चुके हैं, वे फिर से बीमार तो नहीं हो रहे. ऐसे में जोधपुर के डॉक्टर ठीक हुए मरीजों की पोस्ट कोरोना ओपीडी में एक बार फिर जांच करेंगे.

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पोस्ट कोरोना ओपीडी में बुलाया जाएगा कोराना के रिकवर मरीजों को

जोधपुर.कोरोना संक्रमण मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है. हालांकि बड़ी संख्या में लोग ठीक भी हो रहे हैं. अब तक जोधपुर जिले में 10 हजार से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं. इनमें करीब 8 हजार लोग ठीक भी हो चुके हैं. लेकिन अब डॉक्टरों को चिंता इस बात की सता रही है कि कहीं जो मरीज ठीक हो चुके हैं, वे फिर से बीमार तो नहीं हो रहे, क्योंकि दुनियाभर में अब तक तो रिसर्च हुई, उसमें सामने आया है कि 20 से 25 फीसदी लोग कोरोना से ठीक होने के बाद फिर से संक्रमित हो रहे हैं.

पोस्ट कोरोना ओपीडी में बुलाया जाएगा कोराना के रिकवर मरीजों को

जोधपुर में प्रदेश के सर्वाधिक मामले आए हैं. ऐसे में मथुरादास माथुर अस्पताल ने एक रिसर्च प्रोजेक्ट शुरू करने का निर्णय लिया है. जिसमें कोरोना से रिकवर हुए मरीजों को फिर से बुलाया जाएगा और उनकी जांच की जाएगी. अस्पताल के अधीक्षक डॉ. एमके आसेरी ने बताया कि पोस्ट कोरोना ओपीडी, अस्पताल के मेडिसिन विभाग के सीनियर प्रोफेसर डॉ. नवीन किशोरिया की अगुवाई में अगले सप्ताह शुरू होगी.

फेंफड़ों की जांच पर फोकस

डॉ. नवीन किशोरिया के अनुसार ठीक होने वाले मरीजों के फेंफड़े, हार्ट और दिमाग की जांच की जाएगी, क्योंकि दुनिया में जो पैटर्न सामने आया, उसमें यह पता चल रहा है कि ठीक होने वाले लोगों के फेंफड़े सर्वाधिक प्रभावित हुए हैं, वे पूरी तरह से ठीक नहीं होते हैं. जबकि मरीज पूरी तरह से ठीक हो जाता है और उसमें कोई लक्षण भी नजर नहीं आते हैं. इसके अलावा कुछ जगहों पर मरीज दिमागी स्तर पर बीमार हो रहे हैं. साथ ही हृदय और गुर्दे से जुड़ी बीमारियों की जांच होगी. अगर कोई इनसे पीड़ित पाया जाता है, तो उसका उपचार किया जाएगा.

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क्यों है फेंफड़े महत्वपूर्ण

कोरोना वायरस का सीधा असर फेंफड़ों पर हो रहा है. इससे श्वसन क्रिया बाधित होती है. जो निमोनिया और सांस की तकलीफ के मरीजों के लिए सबसे बड़ी परेशानी का सबब बनता है. हाल ही में जोधपुर में जो मौतें हुईं, उन मरीजों का भी निमोनिया डाइग्नोस किया गया था.

डॉ. किशोरिया बताते हैं कि ठीक होने वाले मरीजों के भी फेफड़ें पूरी तरह से दुरस्त नहीं होते हैं. उनके फेफड़ों में फाइब्रोसिस हो जाता है, जिससे वे सिकुड़ जाते हैं, क्योंकि फेंफड़ें में डेड सेल्स मौजूद रहती है. लेकिन समय रहते उपचार नहीं मिलता है, तो लंग डेमेज होने का खतरा बना रहता है. ऐसे में उनकी जांच जरूरी है.

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