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Special : विकास की भेंट चढ़ गए जयपुर के ऐतिहासिक कुंड..पहले चौराहा बने और अब मेट्रो स्टेशन का हिस्सा - jaipur news

अपनी वास्तुकला और बसावट के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध जयपुर को यूनेस्को से खिताब दिलाने में यहां की तीनों प्रमुख चौपड़ों का बड़ा योगदान रहा है. हालांकि ये चौपड़ पहले जयपुर के प्रमुख जल स्त्रोत कुंड के रूप में बनाई गई थीं. हालांकि समय के साथ-साथ ये कुंड चौपड़ बन गए और इनमें भी छोटी चौपड़ और बड़ी चौपड़ अब मेट्रो स्टेशन का हिस्सा बन चुके हैं.

जयपुर के ऐतिहासिक कुंड
जयपुर के ऐतिहासिक कुंड

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Published : Oct 16, 2021, 7:49 PM IST

Updated : Oct 16, 2021, 9:23 PM IST

जयपुर. महाराजा सवाई जयसिंह ने 1727 में जब जयपुर शहर की स्थापना की, तब यहां कोई जल स्त्रोत नहीं था. ऐसे में शहर के बीचोंबीच तीन कुंड बनाए गए. जहां से लोग जलापूर्ति किया करते थे. बताया जाता है कि छोटी चौपड़ पर सरस्वती, बड़ी चौपड़ पर महालक्ष्मी और रामगंज चौपड़ पर मां काली का यंत्र भी स्थापित किया गया थी.

इन्हीं कुंडों के अनुसार आसपास के इलाकों में लोगों की बसावट भी की गई. छोटी चौपड़ के पास पुरानी बस्ती क्षेत्र में पुरोहित, पंडितों और विद्वानों को बसाया गया. बड़ी चौपड़ के आसपास वैश्य समाज और रामगंज चौपड़ के आसपास योद्धाओं को बसाया गया. उस दौर में शहर के बीच बहने वाली गुप्त नहर का पानी इन चौपड़ों पर बने गोमुख से कुंड में आता था और फिर आगे निकलता था.

जयपुर शहर के प्राचीन कुंड पहले चौपड़ बने, फिर मेट्रो स्टेशन

हालांकि समय बीतने के साथ-साथ यहां पानी की आवक कम हुई और बाद में इन्हें पर्यटन की दृष्टि से चौपड़ों का स्वरूप दे दिया गया. लेकिन विकास के दौर में ये चौपड़ें भी अब अपना मूल स्वरूप खो चुकी हैं. आज छोटी चौपड़ और बड़ी चौपड़ पर मेट्रो स्टेशन, जबकि रामगंज चौपड़ पर अतिक्रमण नजर आता है.

जयपुर स्थापना के बाद प्राचीन चौपड़ कुंड

शहर की इस विरासत को लेकर ईटीवी भारत ने धरोहर बचाओ समिति के अध्यक्ष भारत शर्मा से बात की. उन्होंने बताया कि शहर की तीनों चौपड़ों को आधार बनाकर यूनेस्को ने परकोटे को विश्व धरोहर सूची में शामिल किया. जयपुर एक प्राण प्रतिष्ठित शहर है. यहां तंत्र-मंत्र और वास्तु के अनुसार चारदीवारी क्षेत्र को बसाया गया था. तीनों चौपड़ों पर सरस्वती, महालक्ष्मी और मां काली के यंत्र स्थापित किए गए थे. लेकिन जयपुर की इस विरासत को समझे बिना यहां विकास के नाम पर इन चौपड़ों को उजाड़ दिया गया.

मेट्रो स्टेशन बनने से पहले चौपड़ पर चलते थे फव्वारे

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उन्होंने बताया कि मेट्रो स्टेशन की खुदाई के दौरान यहां प्राचीन कुंड भी मिले. जिन्हें नेस्तनाबूद किया गया. हालांकि प्रशासन ने दावा किया था कि दोबारा इन कुंड को मूल स्वरूप दिया जाएगा. लेकिन अब इसकी प्राचीनता खत्म हो चुकी है. आलम ये है कि यहां जो गोमुख निकले थे, वो कहीं धूल फांक रहे हैं. नव निर्माण के रूप में चौपड़ों का बिगड़ा हुआ स्वरूप शहर के सामने हैं. यही नहीं, बड़ी चौपड़ पर बारिश का पानी भरा हुआ है, शैवाल जमी हुई है और इनकी कोई देखरेख करने वाला नहीं है.

बड़ी चौपड़ का बदला रूप, भरा बारिश का पानी

भारत शर्मा ने बताया कि जयपुर शहर के ये प्राचीन कुंड शहर के प्रमुख जल स्त्रोत थे. एक ही स्थान से जलापूर्ति करने के चलते शहर की सामाजिक समरसता भी बनी रहती थी. बाद में इन्हें पाट कर चौपड़ों का स्वरूप दिया गया और फिर रही सही कसर मेट्रो ने पूरी कर दी. हालांकि रामगंज चौपड़ पर अभी भी प्राचीन कुंड मौजूद है, ऊपर पर्यटन दृष्टि से फाउंटेन लगा है. लेकिन यह चौपड़ अतिक्रमण का शिकार हो गई है. जल्द ही यहां भी मेट्रो विस्तार की तैयारी की जा रही है.

जयपुर में इन्हीं कुंडों के माध्यम से वर्षा जल का भी संचय हुआ करता था. शहर की सड़कों पर कभी पानी नहीं भरता था. यूनेस्को को भी इसकी जानकारी है. लेकिन विकास के नाम पर पहले नहरों में अतिक्रमण हुआ, कुंडों को तोड़ दिया गया और आज जरा सी बारिश में ही जयपुर लबालब हो जाता है. यदि विकास के नाम पर इसी तरह विरासत को उजाड़ते हुए यूनेस्को की गाइडलाइन को फॉलो नहीं किया जाता, तो परकोटे को मिला विश्व विरासत का तमगा भी छिन सकता है.

Last Updated : Oct 16, 2021, 9:23 PM IST

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