जयपुर. बच्चे घर के बाद सबसे ज्यादा वक्त स्कूल में बिताते हैं. स्कूल का समय ही ऐसा होता है जब बच्चे अपने पेरेंट्स से दूर होते हैं. लेकिन राजस्थान में पिछले कुछ सालों में मासूम बच्चियों के साथ स्कूलों में होने वाली यौन उत्पीड़न की घटनाओं ने चिंता बढ़ा दी हैं. मासूम बच्चियां शिक्षा के मंदिर में भी अपने आप को असुरक्षित महसूस कर रही हैं. हाल ही में विधानसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में सामने आया कि वर्ष 2018 से 2021 तक स्कूली बच्चियों के साथ यौन उत्पीड़न के 388 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं. जबकि चिंता की बात यह है कि पिछले चार साल में दर्ज मामलों में सिर्फ 8 आरोपियों को ही सजा हुई है.
क्या कहते हैं विधानसभा के आंकड़े : विधानसभा में विपक्ष के विधायक वासुदेव देवनानी ने एक जनवरी 2018 से 31 दिसंबर 2021 तक स्कूल में मासूम बच्चियों के साथ (Question on School Girl Student) होने वाली यौन उत्पीड़न के आंकड़ों की जानकारी मांगी थी. गृह विभाग की और से दिए गए जवाब सामने आया कि तीन साल में कुल 388 मामले दर्ज हुए हैं. इसमें से कुल 303 प्रकरणों में 474 आरोपियों की गिरफ्तारी हुई. जबकि 298 के खिलाफ चालान पेश किया गया. 69 मामलों को पुलिस ने जांच में सही नहीं मानते हुए एफआर लगाई है.
वहीं, 13 मामलों में जांच की जा रही है और तीन साल में सिर्फ 8 आरोपियों को कोर्ट से सजा हो पाई है. बच्चों के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता विजय गोयल कहते हैं कि यह बहुत बड़ी चिंता की बात है प्रदेश में पिछले कुछ सालों में स्कूलों में शिक्षक ही मासूम बच्चियों को यौन उत्पीड़न का शिकार बना रहे हैं. तीन साल में 388 से ज्यादा मामले सामने आना अपने आप में बड़ी चिंता का बात है. 2015 से 2017 के आंकड़े बताते हैं कि उस वक्त तीन साल में 83 मामले दर्ज किए गए. लेकिन 2018 से 2021 के बीच में जिस तरह से आंकड़े तेजी से बढ़ें हैं, इसको लेकर सरकार को गंभीरता से काम करने की जरूरत है. बड़ी बात यह है कि 2020 और 2021 में तो लगभग स्कूल कोरोना काल के बीच न के बराबर खुले हैं. गोयल कहते हैं कि यह तो वो मामले हैं जिनमें बच्चियों और उनके परिजनों ने हिम्मत दिखाकर मुकदमे दर्ज कराए. लेकिन अभी कई मामलों को दबाया जा रहा है. ऐसे में जरूरत है कि सरकार के स्तर पर स्कूलों में अभियान के जरिए बच्चियों को यौन उत्पीड़न की घटनाओं के खिलाफ जागरूक किया जाए.
1 जनवरी 2018 से 31 दिसंबर 2018 तक के आंकड़े :
1 जनवरी 2018 से 31 दिसंबर 2018 तक के आंकड़े... 1 जनवरी 2019 से 31 दिसंबर 2019 तक के आंकड़े :
1 जनवरी 2019 से 31 दिसंबर 2019 तक के आंकड़े... 1 जनवरी 2020 से 31 दिसंबर 2020 तक के आंकड़े :
1 जनवरी 2020 से 31 दिसंबर 2020 तक के आंकड़े... 1 जनवरी 2021 से 31 दिसंबर 2021 तक के आंकड़े :
1 जनवरी 2021 से 31 दिसंबर 2021 तक के आंकड़े... पॉक्सो में मामला दर्ज होने पर सजा समय पर नहीं मिलना बड़ी चिंता : लम्बे समय से पॉक्सो को लेकर लीगल एक्सपर्ट रूप में काम कर रहे एडवोकेट कुलदीप सिंह पूनिया बताते हैं कि नाबालिग बच्चियों के साथ होने वाली छेड़छाड़, यौन उत्पीड़न की घटनाओं के लिए केंद्र सरकार पॉक्सो एक्ट लेकर आई. इसमें कई प्रावधान किए गए जिसमें त्वरित आरोपी को सजा मिले, इसके लिए अलग से पॉक्सो कोर्ट भी खोले गए. पूनिया ने कहा कि पॉक्सो कोर्ट की प्रोसेडिंग सेशन न्यायाल की तरह है. सुनवाई का वही तरीका है जो कोर्ट के लिए है, लेकिन पॉक्सो कोर्ट में सिर्फ 18 वर्ष कम उम्र के बच्चों के साथ घटित होने वाले मामलों में ही सुनवाई होगी. इसका एक मकसद पीड़ित को जल्द न्याय दिलाना है.
पॉक्सो एक्ट क्या है ? : इस कानून के जरिए नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में कार्रवाई की जाती है. समाज में बच्चों के साथ यौन अपराधों के मामले सामने आ रहे हैं, जो किसी भी सभ्य समाज को शर्मसार करती हैं. लिहाजा, इस तरह के मामलों की बढ़ती संख्या को देखते हुए सरकार ने वर्ष 2012 में एक विशेष कानून पॉक्सो एक्ट यानी POCSO Act (Protection of Children from Sexual Offences Act – POCSO) बनाया. इस कानून के तहत दोषी व्यक्ति को उम्रकैद तक की सजा हो सकती है.
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खास बात यह कि वर्ष 2018 में इस कानून में संशोधन किया गया, इसके बाद 12 साल तक की बच्ची से दुष्कर्म के दोषियों को मौत की सजा (Girls Security in Rajasthan) देने का प्रावधान किया गया. यह एक्ट किसी भी जेंडर में भेद नहीं करता. अधिनियम एक बच्चे को अठारह वर्ष से कम उम्र के किसी भी व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है. इस कानून के तहत अलग-अलग प्रकृति के अपराध के लिए अलग-अलग सजा तय की गई है. जिसका कड़ाई से पालन किया जाना भी सुनिश्चित किया गया है.
चार साल में 388 मामले दर्ज, लेकिन सजा सिर्फ 8 को : स्कूल में मासूम बच्चियों के साथ स्कूल टीचर या स्टाफ की ओर से किए जाने वाले यौन उत्पीड़न ज्यादा चिंताजनक है. क्योंकि जब बच्चे अपने गुरु जिन्हे भगवन से ऊपर का दर्जा दिया गया है, उनके पास सुरक्षित (Pocso Act Case in Rajasthan) नहीं हैं तो कहां होंगे. चिंता इस बात की भी ज्यादा है कि जिस तरह से अब तक चार साल के 388 मामलों में से सिर्फ 8 आरोपियों को सजा मिली है. 2018 के 23 मामलों में से एक भी मामले में चार साल बाद भी आरोपी को सजा नहीं मिलाना बड़ी बात है.
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हेड मास्टर का घिनौनी करतूत : ऐसा नहीं है राजस्थान बच्चियों के यौन उत्पीड़न के मामले इन तीन साल में बढ़े हैं, लेकिन जिस तरह से कोरोना काल में स्कूल आधे से ज्यादा वक्त बंद रहने के बाद भी इतने मामले सामने आना चिंता की बात है. महिला उत्पीड़न के मामलों में पहले दूसरे पायदान पर पिछले कई सालों से एक कलंक के साथ बना हुआ है. इस बीच अब बच्चियों से जुड़े मामले सामने आने पर सभी की चिंता बढ़नी लाजमी है. पहले राजधानी के एक निजी स्कूल, फिर झुंझुनू, भीलवाड़ा, जालौर और अब सीकर में हेड मास्टर के घिनौनी करतूत ने अभिभावकों को चिंतित कर दिया है. दीप्ती चौधरी और शिखा तिवारी कहती हैं कि शिक्षण संस्थानों में नाबालिग बालिकाओं का यौन शोषण का शिकार होना वाकई बड़ी चिंता का विषय है. उन्होंने कहा कि सरकार को चाहिए कि इन आरोपियों को कड़ी से कड़ी और त्वरित सजा मिले, जिससे दूसरे लोगों के मन में डर पैदा हो सके.