जयपुर.लोगों को ब्लैकमेल करने के अलग-अलग प्रकरणों में गिरफ्तार किए गए गोवर्धन सिंह के खिलाफ दर्ज पुराने प्रकरणों को अब पुलिस रीओपन (old cases reopened against Govardhan Singh) कर रही है. पुराने प्रकरणों में की गई जांच यदि गलत साबित हुई तो करीब एक दर्जन पुलिस अधिकारियों पर गाज गिरना तय माना जा रहा है. इस संबंध में डीजीपी एमएल लाठर ने एटीएस से जांच करवाई है, जिसकी तथ्यात्मक रिपोर्ट डीआईजी एटीएस अंशुमान मुनिया ने डीजीपी को सौंप दी है.
एटीएस की ओर से दी गई तथ्यात्मक रिपोर्ट में गोवर्धन सिंह के खिलाफ दर्ज पुराने प्रकरणों में की गई जांच पर सवाल खड़े किए गए हैं. 10 साल पहले स्वतंत्रता सेनानी रामनारायण शर्मा के घर में घुसकर गोवर्धन सिंह और उसके साथियों ने मारपीट की थी, जिसमें क्रॉस केस दर्ज हुए थे. एटीएस डीआईजी अंशुमान भोमिया ने गोपनीय जांच कर तथ्यात्मक रिपोर्ट डीजीपी को सौंप दी है. इन मुकदमों में पहले चालान पेश किया था, बाद में गोवर्धन सिंह के खिलाफ केस में एफआर लगा दी गई थी.
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डीजीपी एमएल लाठर ने बताया कि गोवर्धन सिंह के मामले में पुराने केसों की दोबारा जांच कराई जा रही है. यदि जांच गलत साबित होती है और नतीजा बदलता है तो संबंधित जांच अधिकारी के विरुद्ध विभागीय कार्रवाई की जाएगी. गोवर्धन के खिलाफ पूर्व में दर्ज 20 में से 15 मुकदमों में एफआर लगी थी, जिनमें से तीन ही मंजूर हुई, वहीं कोर्ट में पेंडिंग 11 में से 6 एफआर अब तक रीओपन हो चुकी हैं.
गौरतलब है कि जयपुर की सदर थाना पुलिस ने 27 अप्रैल को गोवर्धन सिंह को लॉकडाउन के दौरान 3 अप्रैल 2020 को एक महिला पुलिस अधिकारी के साथ दुर्व्यवहार करने और आपत्तिजनक टिप्पणी करने के मामले में गिरफ्तार किया था. इसके बाद गोवर्धन सिंह के खिलाफ जयपुर में ब्लैकमेलिंग के 4 मामले दर्ज हुए. इस पर उसे जमानत मिलने पर अलग-अलग प्रकरणों में लगातार गिरफ्तार किया जा रहा है.
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वकालत की आड़ में कर रहा था लोगों को ब्लैकमेल- गोवर्धन सिंह हाईकोर्ट का वकील था जो वकालत की आड़ में लोगों को ब्लैकमेल करने का काम कर रहा था. 27 अप्रैल को जब गोवर्धन सिंह को गिरफ्तार किया गया तो उसके बाद राजस्थान हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने न्यायपालिका की छवि धूमिल करने और आपराधिक प्रकरणों की जानकारी छिपाकर बीसीआर में पंजीकरण कराने पर गोवर्धन सिंह की सदस्यता रद्द कर दी. एसोसिएशन ने गोवर्धन सिंह पर आरोप लगाए कि उसने सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए फर्जी वीडियो वायरल किए और वकालत के पेशे की आड़ में खुद के निजी स्वार्थ को पूरा किया. गोवर्धन सिंह ने न्यायपालिका की गरिमा और वकील समुदाय की छवि को धूमिल करते हुए अदालत की अवमानना की और खुद के विरुद्ध दर्ज अपराधिक प्रकरणों की जानकारी छुपाकर बीसीआर में रजिस्ट्रेशन करवाया.