जयपुर. राज्य सरकार की ओर से यूडी टैक्स में दी गई छूट के बावजूद प्राइवेट फर्म 3 महीने में महज 9 करोड़ रुपए ही वसूल पाई. जबकि निगम ने अपने संसाधनों से बीते वर्ष इसी दौरान 31 करोड का राजस्व इकट्ठा किया था.
राजस्व अधिकारियों ने उठाए प्राइवेट फर्म के औचित्य पर सवाल ऐसे में कंपनी कर योग्य संपत्तियों के मालिकों से यूडी टैक्स वसूली में फेल साबित हो रही है. वहीं अब राजस्व अधिकारियों को कुर्की के जरिए यूडी टैक्स वसूलने के निर्देश दिए गये हैं. इस आदेश के बाद निगम के राजस्व अधिकारी ही प्राइवेट फर्म के औचित्य पर सवाल उठा रहे हैं.
शहर के दोनों निगम की आर्थिक स्थिति को बेहतर करने की जिम्मेदारी एक प्राइवेट फर्म को सौंपी गई है. यह फर्म 1 साल में 6 लाख संपत्तियों का सर्वे भी करेगी और 80 करोड़ का रेवेन्यू भी कलेक्ट करेगी. लेकिन इस फर्म की कछुआ चाल से टारगेट अचीव होता हुआ नजर नहीं आ रहा. यही नहीं, बीते दिनों नगर निगम के जोन कार्यालय आदर्श नगर, जगतपुरा, सांगानेर, किशनपोल और मुरलीपुरा की ओर से कंपनी को नोटिस जारी कर दोबारा सर्वे करने के लिए भी कहा था.
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अब निगम के राजस्व अधिकारियों को यूडी टैक्स वसूली के लिए कुर्की के आदेश जारी किए गए हैं. हालांकि इन आदेशों में कहीं भी ये स्पष्ट नहीं किया गया कि कुर्की से प्राप्त यूडी टैक्स को कंपनी के खाते में जमा कराया जाएगा या फिर नगर निगम के खाते में. ऐसे में नगर निगम हेरिटेज के एक राजस्व अधिकारी ने राजस्व उपायुक्त (प्रथम) को पत्र लिखकर मार्गदर्शन मांगा है.
उन्होंने स्पष्ट सवाल करते हुए लिखा कि प्राइवेट कंपनी के साथ किए गए समझौते में समझौता पत्र और आरएफपी में फर्म को सिर्फ उसके संसाधनों द्वारा एकत्रित यूडी टैक्स और विज्ञापन शुल्क पर ही कमीशन देय होगा. साथ ही उन्होंने लिखा कि यदि निगम स्वयं के संसाधनों से प्राप्त कर राशि को भी फर्म के खाते में जमा करवाता है, और उस पर कमीशन देता है तो ये समझौते की शर्तों के बाहर होगा और भ्रष्टाचार का कृत्य माना जा सकता है. जिसकी जिम्मेदारी आयुक्त से लेकर समस्त राजस्व शाखा की होगी.
बहरहाल, राजस्व अधिकारी का सवाल वाजिब है. क्योंकि यदि कुर्की के जरिए ही टैक्स वसूली करनी है, तो ये काम तो पहले भी किया जा रहा था. ऐसे में प्राइवेट कंपनी को काम देने का औचित्य क्या है.