जयपुर. एसबीएम 2.0 में बदले मानकों के बाद अब प्रशासनिक अमले का फोकस मिलियन प्लस टाउन की रैंकिंग सुधारने से ज्यादा छोटी अर्बन लोकल बॉडीज पर रहेगा. सीधे शब्दों में कहें तो अब जयपुर, कोटा, जोधपुर नहीं बल्कि केशोरायपाटन, झालावाड़, बाड़मेर जैसे शहर जहां कंपोस्टिंग की फैसिलिटी है, उनको आगे लाने का प्रयास किया जाएगा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत की. जिसमें साफ-सुथरे भारत का सपना साकार करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया. देश को खुले में शौच से मुक्त करने, ठोस कचरा प्रबंधन को लेकर योजनाएं तैयार की गई और उन्हें धरातल पर उतारने का काम प्रदेश की सरकारों ने किया. साल दर साल बजट में विशेष प्रावधान भी किए गए. साथ ही इस अभियान को एक प्रतियोगिता के रूप में शुरू करते हुए स्वच्छ सर्वेक्षण मिशन शुरू किया गया. इस अभियान का दूसरा चरण शुरू हो गया है.
स्वच्छ भारत मिशन के तहत बदले मापदंड, राजस्थान अब छोटे शहरों पर करेगा ज्यादा फोकस पढ़ें:स्वच्छ भारत मिशन 2.0 में अब पहले से बड़ी चुनौती, सिटीजन वॉइस के 2250 अंक निभाएंगे अहम भूमिका
स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) के नोडल अधिकारी डीएलबी चीफ इंजीनियर भूपेंद्र माथुर ने बताया कि भारत सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) 2.0 की शुरुआत की जानी है जिसमें ओडीएफ और सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के अलावा वेस्ट वाटर मैनेजमेंट का कंपोनेंट भी जोड़ा गया है. यानी आबादी विस्तार के साथ अब दोबारा घरेलू शौचालय, सामुदायिक/सार्वजनिक शौचालय का काम किया जाएगा. लेकिन अब इससे जुड़ता हुआ वेस्ट वाटर मैनेजमेंट भी करना है. इसके तहत हाउस सीवर कनेक्शन, मेनहॉल की सफाई और 50 फीसदी आबादी को सीवर नेटवर्क से कनेक्ट करना शामिल है. ऐसे में छोटे टाउन में अब एफएसटीपी बनाए जाएंगे. इसे लेकर राजस्थान सरकार के आगामी बजट में 50 शहरों को शामिल किया जाएगा.
स्वच्छ भारत मिशन के तहत बदले मापदंड, राजस्थान अब छोटे शहरों पर करेगा ज्यादा फोकस हालांकि राजस्थान अब तक एसबीएम 1.0 के मानकों पर ही खरा नहीं उतर पाया. नतीजतन राजस्थान की जगह फिलहाल टॉप 10 में भी नहीं है. यही नहीं मिलियन प्लस टाउन में राजस्थान का एक भी शहर कभी टॉप टेन की सूची में शामिल नहीं हुआ. राजस्थान भले ही ओडीएफ स्टेट में शामिल हो, लेकिन ठोस कचरा प्रबंधन में आज भी फिसड्डी है. लगभग सभी नगरीय निकायों में गार्बेज कलेक्शन, ट्रांसपोर्ट, प्रोसेसिंग और डिस्पोजल को लेकर दावे किए जाते हैं. लेकिन हकीकत इससे जुदा है. आलम ये है कि सेग्रीगेशन तो आज भी दूर की कौड़ी साबित हो रहा है. इसे लेकर भूपेंद्र माथुर ने बताया कि हालांकि डूंगरपुर छोटे शहरों में अव्वल जरूर रहा.
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माथुर ने बताया कि डूंगरपुर को क्लीन सिटी और 3 स्टार रेटिंग के अवार्ड जरूर लिए हैं और अब स्वच्छ भारत मिशन 2.0 में प्रोसेसिंग और डिस्पोजल के कंपोनेंट को ही जोड़ा गया है. स्वच्छ सर्वेक्षण मार्च में शुरू होगा. ऐसे प्लानिंग की गई है कि हर जिले से एक-एक अर्बन लोकल बॉडी जिसमें सेग्रीगेशन, क्लीनिंग, ट्रांसपोर्टेशन, प्रोसेसिंग, डिस्पोजल जैसे कंपोनेंट वाले छोटे टाउन जिनमें पॉसिबिलिटी ज्यादा है, उन पर फोकस किया जाएगा. ताकि जिलेवार एक-एक शहर भी आता है, तो प्रदेश के 33 शहर को आगे ला पाएंगे. लेकिन ये बात भी तय है कि जब तक डोर टू डोर कचरा कलेक्शन नहीं होगा, तब तक प्रोसेसिंग और डिस्पोजल की बात भी बेमानी ही है.
हालांकि राज्य के सामने एक चुनौती ये भी है कि कई अर्बन लोकल बॉडीज के पास पर्याप्त बजट नहीं है. इस पर नोडल अधिकारी ने कहा कि स्वच्छ भारत मिशन 1.0 में पर्याप्त बजट नगरीय निकायों को दिया गया था. उसके तहत जहां कंपोस्टिंग प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट जैसे काम किए गए हैं, ऐसे शहरों को आगे लाने का प्रयास भी किया जाएगा. उन्होंने स्पष्ट किया कि इस बार मिलियन प्लस टाउन की रैंकिंग सुधारने से ज्यादा फोकस छोटी अर्बन लोकल बॉडीज पर रहेगा. जयपुर, कोटा जोधपुर से ज्यादा केशोरायपाटन, झालावाड़, बाड़मेर जैसे शहर जहां कंपोस्टिंग की फैसिलिटी है. उनको आगे लाने का प्रयास किया जाएगा. क्योंकि वहां प्रोसेसिंग पर काम हो रहा है, ऐसे में दूसरे पैरामीटर पर भी काम किया जा सकेगा.
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आपको बता दें कि स्वच्छ भारत मिशन के पहले चरण में राज्य में घर-घर शौचालय के तहत 3 लाख 50 हजार व्यक्तिगत और घरेलू शौचालय बनाए जाने थे. जबकि असल में 3 लाख 68 हजार शौचालय बनाए गए. वहीं सामुदायिक और सार्वजनिक शौचालय की बात की जाए तो करीब 18 हजार सीट्स का लक्ष्य निर्धारित किया गया था. इसकी तुलना में 22 हजार 547 सीट्स लगाई गईं. कोशिश यही रही कि सभी निकायों में खुले में शौच से मुक्ति मिले. चूंकि आबादी का विस्तार लगातार हो रहा है, ऐसे में ये एक सतत प्रक्रिया है जिसके चलते इसे प्रशासन शहरों के संग अभियान से भी इसे जोड़ा गया है.