जयपुर. केंद्रीय कृषि कानून (protest against agricultur law) के खिलाफ किसानों के भारत बंद को समर्थन देने वाले NDA के घटक दल RLP के संयोजक हनुमान बेनीवाल ने 8 दिसंबर के बाद ही एनडीए से समर्थन वापस लेने पर विचार कर निर्णय लेने का बयान दिया था. लगता है उनका ये बयान नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया को रास नहीं आ रहा है. यही कारण है कि कटारिया ने बेनीवाल के लगातार आ रहे मोदी सरकार विरोधी बयानों को लेकर कहा है कि इस प्रकार की फड़फड़ाहट जिन भी लोगों ने भी की है, वो राजनीति में लंबे समय तक नहीं चल पाए.
हनुमान बेनीवाल के बयान पर कटारिया का पलटवार बीजेपी के सहयोग से लोकसभा में पहुंचे हैं बेनीवाल
ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने यह भी कहा कि जिस भाजपा पार्टी के सहयोग से बेनीवाल लोकसभा में पहुंचे हो और जिसके कारण उन्होंने इतनी ऊंचाई पाई हो, यदि उस पार्टी को लेकर ही वह सार्वजनिक रूप से इस प्रकार के बयानबाजी करें तो यह उनके स्वयं के लिए और गठबंधन धर्म के लिए भी उचित नहीं होगा. कटारिया ने कहा कि यदि उन्हें कोई समस्या है भी तो वो व्यक्तिगत रूप से मिलकर पार्टी में बात कर सकते हैं पर इस प्रकार की बयानबाजी उचित नहीं. है.
राजनीतिक हैसियत नापने का मन बना लिया है तो हम भी तैयार है
कटारिया से हनुमान बेनीवाल के हाल ही में पिछले लोकसभा चुनाव को लेकर आए बयान के बारे में पूछा गया तो कटारिया ने कहा की यदि बेनीवाल को ये लगता है कि उनके सहयोग के बिना बीजेपी राजस्थान की 16 लोकसभा सीटों पर हार जाती तो अगली बार इसको भी नाप लेंगे. कटारिया के अनुसार फैसला हनुमान बेनीवाल करना है. बीजेपी गठबंधन के धर्म को निभाती है लेकिन यदि हनुमान बेनीवाल ने राजनीतिक हैसियत नापने का पक्का इरादा कर ही लिया है तो फिर हम तैयार हैं.
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कटारिया के अनुसार गठबंधन तोड़ने का फायदा और नुकसान बेनीवाल जी को देखना है उन्होंने अपने विवेक से सोचना चाहिए कि क्या इस प्रकार के बयान उनके लिए सही है. उन्होंने यह भी कहा कि हनुमान बेनीवाल मेरा छोटा भाई के समान है. इसलिए उन्हें क्या बयान किस समय और कब देना चाहिए, यह पूरे विवेक के साथ सोच कर ही तय करना चाहिए क्योंकि विवेक से लिया गया निर्णय राजनीति में आगे बढ़ाता है. वरना आप अविवेकपूर्ण निर्णय राजनीति में ज्यादा लंबे नहीं चलने देती.
गौरतलब है कि बेनीवाल ने पिछले दिनों मीडिया में बयान दिया था कि पिछले लोकसभा चुनाव में राजस्थान की कई सीटों पर बीजेपी आरएलपी के सहयोग के कारण ही जीत पाई है और यदि ऐसा नहीं है तो इन सीटों पर दोबारा चुनाव करवा कर देख लिया जाए.