जयपुर.राजस्थान में सरकार और राजभवन के बीच लगातार टकराव चल रहा है. हालात यह हैं कि कैबिनेट के विधानसभा सत्र बुलाने के प्रस्ताव को दूसरी बार राज्यपाल ने लौटा दिया है. एक बार फिर जब राज्यपाल कलराज मिश्र ने यह प्रस्ताव लौटाया है तो उसमें लिखा गया है कि 25 जुलाई की रात को राजभवन को यह प्रस्ताव मिला कि राज्य सरकार 31 जुलाई को सत्र बुलाना चाहती है.
सरकार के प्रस्ताव में लिखा गया है कि अनुच्छेद 174 (1) में मंत्रिमंडल की सलाह मानने के लिए राज्यपाल बाध्य है और स्वयं विवेक से कोई निर्णय नहीं ले सकते हैं. इस मामले पर राज्यपाल की ओर से सर्वोच्च न्यायालय के नबाम रविया और बमांग फेलिक्स बनाम विधानसभा उपाध्यक्ष अरुणाचल प्रदेश के निर्णय के पैरा 150 से 162 का अध्ययन किया गया है. जिसमें यह सामने आया है कि संविधान के अनुच्छेद 174(1)की पालना के लिए मंत्रिमंडल की सलाह मान्य है, लेकिन परिस्थितियां विशेष हो तो ऐसी स्थिति में राज्यपाल यह सुनिश्चित करेंगे कि विधानसभा सत्र संविधान की भावना के अनुरूप बुलाया जाए या ना बुलाया जाए.
तीन बिंदुओं पर परामर्श देते हुए पत्रावली राजभवन की ओर से सरकार को भेजी गई है...
1. विधानसभा का सत्र 21 दिन का क्लियर नोटिस देकर बुलाया जाए. जिससे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के अंतर्गत प्राप्त मौलिक अधिकारों की मूल भावना के अंतर्गत सभी को समान अवसर की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके अत्यंत महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक प्रकरणों पर स्वस्थ बहस देश की शीर्ष संस्थाओं तथा सर्वोच्च न्यायाल, उच्च न्यायालय आदि की भांति ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर किए जाते हैं. ताकि सामान्य जनता को कोविड-19 के संक्रमण से बचाया जा सके.
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2. यदि किसी भी परिस्थिति में विश्वास मत हासिल करने की विधानसभा सत्र में कार्रवाई की जाती है तब ऐसी परिस्थितियों में जबकि विधानसभा अध्यक्ष की ओर से स्वयं माननीय सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुज्ञा याचिका दायर की गई है. विश्वास मत प्राप्त करने की संपूर्ण प्रक्रिया संसदीय कार्य विभाग के प्रमुख सचिव की उपस्थिति में की जाए और संपूर्ण कार्रवाई की वीडियो रिकार्डिंग कराई जाए.