जयपुर. परकोटे के बाजार और यहां बने बरामदे अपनी बनावट और एकरूपता के कारण विश्व पटल पर अपनी अलग ही पहचान रखते हैं. परकोटे के बाजार की बनावट और रौनक पर्यटकों को हमेशा से ही आकर्षित करते आ रहे हैं. अब स्मार्ट सिटी बीते दो साल से इन बरामदों को संवारने का काम कर रही है, लेकिन यह काम 100 साल पुराने 'मखमल में टाट के पैबंद' साबित हो रहा है.
अब से कुछ दशक पहले तक जयपुर परकोटे में ही सिमटा हुआ था. तब इसका भव्य और कलात्मक रूप हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देता था. आज भी यहां के बाजारों की चौड़ी सड़कें, एक जैसे दिखने वाले बाजार और इन बाजारों में बने बरामदे सैलानियों का मन मोह लेते हैं. हाल ही में जयपुर के परकोटे को विश्व विरासत की सूची में भी शामिल किया गया है. लेकिन इसी विरासत के अंग 100 साल पुराने बाजारों के बरामदे अब अपनी रंगत और मजबूती खो रहे हैं.
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दरअसल सवाई मान सिंह द्वितीय ने बाजारों में आम उपभोक्ता के चलने के लिए बरामदों का निर्माण कराया था. फिर यहां धीरे-धीरे व्यापारियों ने अतिक्रमण शुरू कर दिया. हालांकि 1944 में मिर्जा इस्माईल ने बाजारों के बरामदों को खाली कराने की मुहिम छेड़ी, लेकिन बाद में यहां व्यापारियों ने दोबारा कब्जा कर लिया. इसे फरवरी 2000 से अगस्त 2001 तक जयपुर नगर निगम के सीईओ रहे मनजीत सिंह ने खाली कराया था जिसके बाद जयपुर के बाजारों में फुटपाथ की कमी महसूस नहीं हुई.
आधुनिकता की मार झेल रहे बरामदे
ये बरामदे गर्मी और बारिश में आमजन के लिए बेहद सुविधाजनक साबित होते हैं, लेकिन मेट्रो रेल के निर्माण के दौरान इन बरामदों को भी आधुनिकता की मार झेलनी पड़ी. चांदपोल और त्रिपोलिया बाजार में मेट्रो के काम के चलते बरामदों के गिरने की आशंका के कारण जगह-जगह लोहे के एंगल लगा दिए गए हैं. वहीं अब इन बरामदों के जीर्णोद्धार के नाम पर स्मार्ट सिटी प्रशासन मनमाना काम कर रही है.