जयपुर. राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन शुरू होने के बाद देशभर के शहरों में आश्रय स्थलों के संचालन का जिम्मा एनयूएलएल को सौंपा गया. इसी के तहत जयपुर में भी एनयूएलएल ने इन आश्रय स्थलों के संचालन का जिम्मा उठाया. निगम इन आश्रय स्थल या रैन बसेरे के संचालन का काम पंजीकृत एनजीओ के माध्यम से करता आया है. इस संबंध में नगर निगम के एडिशनल कमिश्नर अरुण गर्ग की मानें तो ग्रेटर और हेरिटेज में कुल 14 स्थाई रैन बसेरे संचालित हैं.
अस्थाई रैन बसेरे सर्दी के मौसम में चलाए जाते हैं, जो अमूमन दिसंबर से फरवरी तक रहते हैं. फिलहाल स्थाई रैन बसेरों में 215 लोग रह रहे हैं. इनमें कुछ एनजीओ तो कुछ निगम के द्वारा संचालित किए जाते हैं. हर महीने इनके संचालन पर 35 हजार से 50 हजार रुपए का भुगतान किया जाता है. यहां ठहरने वालों को सोने के लिए बिस्तर, नजदीकी सुलभ शौचालय का उपयोग और दानदाताओं की तरफ से कई बार भोजन भी उपलब्ध कराया जाता है. इनमें कुछ रैन बसेरा विशेषकर महिलाओं के लिए हैं. जबकि कुछ रैन बसेरों में महिला पुरुषों के लिए अलग-अलग व्यवस्था की गई है.
निगम द्वारा संचालित आश्रय स्थलों में कोई वृद्धाश्रम है तो कोई आरोग्य आश्रय स्थल है. यही नहीं महिला और बाल बसेरा भी बनाया गया है. निगम के दावों की हकीकत जानने के लिए ईटीवी भारत शहर के कुछ आश्रय स्थल पहुंचा. एसएमएस अस्पताल स्थित गांधी घर रैन बसेरे पर मौजूद कर्मचारी ने बताया कि दिन-रात रैन बसेरा लोगों के लिए संचालित रहता है. यहां सामान रखने के लिए लॉकर, सोने के लिए बिस्तर और चारपाई की भी व्यवस्था है. हालांकि इन रैन बसेरों में पहुंचने वाले लोगों का कोविड-19 के मद्देनजर तापमान मापने का कोई संसाधन मौजूद नहीं है.
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