अलवर : दिल्ली, जयपुर और अन्य महानगरों से सीधी एप्रोच होने के बाद भी सरिस्का से पर्यटक ओझल रहे हैं. वहीं, रणथम्भौर में हर साल सरिस्का से करीब तीन गुना ज्यादा पर्यटक सफारी के लिए पहुंच रहे हैं. यह स्थिति तो तब है जब रणथम्भौर में बाघों की संख्या सरिस्का से करीब दो गुना हैं, लेकिन यहां सफारी के लिए रूट सरिस्का से तीन गुना से ज्यादा होने के कारण पर्यटकों को घूमने एवं बाघों की साइटिंग के अवसर ज्यादा हैं.
सरिस्का टाइगर रिजर्व राजधानी दिल्ली और जयपुर के मध्य में स्थित है. दिल्ली-मुम्बई एक्सप्रेस वे से सीधी कनेक्टिविटी के चलते पर्यटकों की सीधी एप्रोच में है, लेकिन यहां हर साल करीब 50 से 60 हजार पर्यटक ही सफारी के लिए पहुंच पाते हैं. वहीं, रणथम्भौर टाइगर रिजर्व की एप्रोच दिल्ली व जयपुर से सीधी नहीं होने के बाद भी वहां हर साल डेढ़ लाख से ज्यादा पर्यटक घूमने पहुंचते हैं. इस कारण सरिस्का की तुलना में रणथम्भौर टाइगर रिजर्व देश-विदेश में अपनी ख्याति बढ़ाने में कामयाब रहा है.
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रणथम्भौर में बाघों की साइटिंग आसान : रणथम्भौर में ज्यादा संख्या में पर्यटकों के पहुंचने का बड़ा कारण वहां बाघों की साइटिंग आसानी से होना है. रणथम्भौर में पर्यटकों को सफारी के लिए 10 रूट हैं, जबकि वहां बाघों की संख्या 75 से ज्यादा है. इस कारण पर्यटकों को घूमने के ज्यादा अवसर हैं और बाघ भी ज्यादा होने से हर रूट पर पर्यटकों को बाघ दिख ही जाते हैं, जबकि सरिस्का में सफारी के लिए पांच रूट हैं, जिसमे बफर रेंज में दो रूट हैं. कोर एरिया के रूट में से एक रूट ऐतिहासिक पांडुपोल हनुमान मंदिर का है, जिस पर धार्मिक पर्यटन ज्यादा रहता है. मानवीय दखल ज्यादा होने के कारण इस रूट से बाघ दूर ही रहते हैं, जबकि दो अन्य रूटों पर ही बाघों की साइटिंग हो पाती है. सरिस्का में बाघों की संख्या भी 43 है और इनमें एक तिहाई शावक हैं, जो कि बाघ-बाघिन के साथ ही रहते हैं. इस कारण कई बार पर्यटको को बाघों की साइटिंग नहीं होने से मायूस होना पड़ता है.
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सरिस्का में बाघों के लिए कोरिडोर का अभाव : सरिस्का के सीसीएफ संग्राम सिंह ने बताया कि रणथम्भौर और सरिस्का टाइगर रिजर्व कई मायनों में समान हैं. दोनों ही पार्क अरावली की पवर्तमाला के बीच स्थित हैं. दोनों की पार्कों में प्रेबेस की कमी नहीं है. रणथम्भौर करौली, कैलादेवी एवं रामगढ़ विषधारी अभयारण्य से जुड़ा होने के कारण यहां बाघों के लिए बड़ा कोरिडोर है, जबकि सरिस्का में बड़े कोरिडोर की कमी है. पूर्व में सरिस्का व रणथम्भौर दोनों पार्क में आपस में जुड़ा होने से बाघों के लिए कोरिडोर मिल जाता था, लेकिन अब बीच में शहर आदि बस जाने से यह संभव नहीं रहा. वहीं, रणथम्भौर में 10 रूट होने से वहां पर्यटकों को घूमने का ज्यादा जंगल मिलता है. वहीं, सरिस्का के कोर एरिया में अभी तीन रूट हैं. बाघ भी सरिस्का में रणथम्भौर से कम है. इस कारण सरिस्का प्रशासन टाइगर कंर्जवेशन प्लान तैयार कर रहा है, जिसमें बाघों की संख्या बढ़ाने के साथ ही सफारी के लिए रूट बढ़ाने की आवश्यकता को भी शामिल किया जाएगा.
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रणथम्भौर शुरू से ही बाघों से आबाद : रणथम्भौर टाइगर रिजर्व शुरू से ही बाघों से आबाद रहा है, जबकि सरिस्का में 2004 से पहले 20-25 बाघ होते थे. वर्ष 2005 में बाघों के शिकार के चलते सरिस्का बाघ विहिन हो गया था. बाद में 2008 में रणथम्भौर से बाघों का पुनर्वास सरिस्का में कराया गया और यहां अब बाघों की संख्या 43 तक पहुंच गई है.