जयपुर.मौजूदा समय में बालश्रम सिर्फ राजस्थान ही नहीं समूचे विश्व के लिए एक गंभीर समस्या बन चुका है. आंकड़े बताते हैं कि दुनियाभर के कुल बच्चों में करीब 19 फीसदी बालश्रमिक भारत में हैं. ये मासूम भारत के भविष्य हैं. लेकिन, त्रासदी इस बात की है कि इनको शिक्षा से अलग कर उस अंधेरी सुरंग में धकेल दिया जाता है, जिसका रास्ता कहीं नज़र नहीं आता है.
बालश्रम का दंश झेल रहे समाज को कोरोना महामारी ने एक अच्छा मौका दिया था. इन नौनिहालों की जिंदगी संवारने और भविष्य को निखारने का. आंकड़े बताते हैं कि कोरोना महामारी की वजह से 70 से 80 फीसदी मासूम अपने घरों को लौट गए थे. लेकिन, एक बार फिर ठेकेदार सक्रिय हो गए हैं और बाल श्रमिक फिर उसी काल कोठरी का रूख़ करने लगे हैं.
लॉकडाउन के बाद फिर शुरू हुआ बच्चों को यात्नाएं देने का दौर 1 महीने में 4 से 5 हजार मासूमों का छिना गया बचपन
एक सामाजिक संगठन के आंकड़ों के मुताबिक पिछले 1 महीने में 4 से 5 हजार बच्चों को बाल श्रम के लिए फिर से जयपुर लाया गया है. इनमें से 300 से अधिक बच्चों को पिछले दिनों रेस्क्यू किया गया है. प्रदेश में हर दिन बच्चों को मानव तस्करी यूनिट, चाइल्ड लाइन और सामाजिक संगठनों की मदद से रेस्क्यू किया जाता है.1 महीने में इस तरह की कई तस्वीरें सामने आ चुकी हैं.
कोरोना जैसी वैश्विक महामारी ने जहां आम जनजीवन को बुरी तरह प्रभावित किया. जिसके चलते लॉकडाउन लगा दिया गया. लॉकडाउन ने भारत की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से हिलाकर रख दिया. लेकिन समाज का एक का ऐसा भी तबका था जिसके लिए लॉकडाउन वरदान बन गया. यह तबका उन मासूम नौनिहालों का है, जो सालों से बाल श्रम की काली कोठरी में तप रहे थे.
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लॉकडाउन से बिगड़े हालातों के बीच बाल श्रम के ठेकेदारों ने बच्चों को घर भेज दिया. इसके बाद एक उम्मीद जगी थी कि अब यह बच्चे वापस इस दलदल में लौट कर नहीं आएंगे. इसको लेकर सामाजिक संगठनों जिम्मेदार विभागों ने कोशिश भी की, लेकिन दुर्भाग्य इस बात का है कि अनलॉक शुरू होने के साथ ही बाल श्रम के ठेकेदार फिर एक्टिव हो गए. एक बार फिर से बच्चों को यात्नाएं देने का सिलसिला शुरू हो चुका है.
बिहार-झारखंड से लाए जाते हैं बच्चे
बाल श्रम को रोकने का काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता विजय गोयल बताते हैं कि जयपुर में करीब 10 से 12,000 बच्चे बाल श्रमिक के रूप में काम कर रहे थे. लॉकडाउन के बाद 70 से 80 फीसदी बच्चे वापस लौट गए, लेकिन अब इन बच्चों को काम करवाने के लिए वापस लाया जा रहा है. बिहार-झारखंड से अब तक 4 से 5 हजार बच्चे वापस कालकोठरी में पहुंच चुके हैं.
दिनभर में करवाया जाता है काम बच्चों की ट्रैफिकिंग को रोकने के लिए मानव तस्करी यूनिट, पुलिस, चाइल्ड लाइन और सामाजिक संगठन लगातार काम कर रहे हैं. जयपुर के जालूपुरा, गलता गेट, ट्रांसपोर्ट नगर, खोनागोरियां , विद्याधर नगर सहित कई थाना इलाकों में पिछले दिनों बाहरी राज्यों से आने वाले 300 से अधिक बच्चों को छुड़ाया जा चुका है.
बच्चों को समझा जाता है काम करने की मशीन चाइल्ड लाइन समन्वयक सुमन सिंह बताती हैं कि लॉकडाउन के बाद बाल श्रम करवाने वाले ठेकेदार अलग-अलग साधनों के जरिए इन बच्चों को बाल मजदूरी के लिए जयपुर ला रहे हैं. अलग-अलग थानों से करीब 300 से अधिक बच्चों को रेस्क्यू किया जा चुका है.
श्रम विभाग के सचिव नीरज के पवन बताते हैं कि बाल श्रम के मामलों में हो रही वृद्धि को रोकने को लेकर विभाग गंभीर है. सभी जिला कलेक्टर को तस्करी रोकने के निर्देश दिए गए हैं. लगातार स्टेट टास्क फोर्स की बैठक हो रही है. इसके अलावा जिस राज्य से भी बच्चों को लाया जा रहा है, उन राज्यों के सचिवों को चिट्ठी लिखकर उन्हें वहां पर बच्चों को रोकने के लिए कहा गया है.
अंधेरी सुरंग में नौनिहालों का बचपन श्रम विभाग और गणना के आंकड़े दोनों अलग-अलग
श्रम विभाग का दावा है कि वह बाल श्रम रोकने के लिए गंभीर है. लेकिन आंकड़ों पर नजर डालें तो श्रम विभाग के सर्वे के अनुसार प्रदेश में कुल प्रदेश में 2100 के करीब ही बाल श्रमिक है, जबकि सेंसेक्स के आंकड़ों के अनुसार 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे विषम परिस्थितियों में कार्य कर रहे हैं. राज्य में 5 से 18 साल के बच्चों की संख्या 2.37 करोड़ है. जिसमें 28 लाख 11 हजार यानी 11 फीसदी बच्चे किसी न किसी प्रकार से काम करने में लगे हैं, जबकि 5 से 14 साल के बच्चों को आंकड़ों पर देखें तो 6:30 लाख के करीब बच्चे बाल श्रम में लिप्त हैं.
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अगर बाल श्रम की श्रेणी की बात करें तो बच्चों से जैम, फॉल सीलिंग, आरा तारी, कारपेट बनाने, ईट भट्टों पर काम करने, घरों में काम, कचरा बीनने, भिक्षावृत्ति , उद्योग खदानों में काम करना, कृषि व्यवसाय, ढाबों पर काम करने सहित अनेक कार्यों में कार्यरत हैं. जयपुर में विशेष कर बच्चों से चूड़ी कारखानों, आरा तारी के काम कराए जाते हैं.
स्वस्थ समाज और राष्ट्र के लिए बालश्रम एक अभिशाप है. इससे मुक्ति पाए बिना किसी भी राष्ट्र के विकास का दावा बेइमानी होगा. ऐसे में सरकारों को अपनी नीतियों में बदलाव करते हुए बालश्रम उन्मूलन को अपनी योजनाओं में ऊपर रखना होगा और इसका सख्ती से पालन करना होगा.