जयपुर. जयपुर का गौरवमयी इतिहास किसी से छिपा हुआ नहीं है. यहां के गढ़ और महलों की खूबसूरती इसके इतिहास में चार चांद लगाते हैं. इन्हीं में शामिल है, जयपुर का जलमहल.
हजारों मछलियों की मौत पर भी नहीं जागा प्रशासन मानसागर झील के बीचों-बीच स्थित जलमहल की आभा 200 सालों के बाद आज भी बरकरार है. देसी हो या विदेशी ये सभी को आकर्षित करता है. लेकिन आज यही मानसागर झील 'जल की रानी' यानि मछलियों की कब्रगाह बनी हुई है.
जलमहल का निर्माण जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह ने अश्वमेध यज्ञ के बाद वर्ष 1799 में करवाया था. वे राजसी उत्सव और अपनी रानी के साथ वक्त बिताने के लिए जलमहल का इस्तेमाल करते थे.
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इस महल के निर्माण से पहले सवाई जयसिंह ने जयपुर की जलापूर्ति के लिए गर्भवती नदी पर बांध बनाकर मानसागर झील का निर्माण करवाया था. इसके निर्माण के लिए राजपूत शैली से तैयार की गई नौकाओं की मदद ली गई थी.
हालांकि, मानसागर झील अब पक्षी अभयारण्य के रूप में विकसित हो रही है. एक समय तो मानसागर झील में पक्षियों की गणना में 70 फीसदी प्रवासी पक्षी होते थे. जो 60 से भी ज्यादा अलग-अलग प्रजाति के थे. लेकिन प्रशासन की लापरवाही के चलते इनके जीवन पर खतरा मंडरा रहा है.
मानसागर झील में प्रदूषण के चलते पानी की गुणवत्ता दिनों-दिन खराब होती जा रही है. यही वजह है, कि आज मानसागर झील मछलियों की कब्रगाह बनता जा रहा है.
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इस सच्चाई को ईटीवी भारत ने प्रमुखता से प्रशासन के सामने रखा है. इसके बाद जिला प्रशासन से लेकर निगम प्रशासन और पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के कर्मचारी मौके का निरीक्षण करने पहुंचे. लेकिन ये निरीक्षण महज खानापूर्ति साबित हुआ. अधिकारी यहां कुछ देर रुके और लौट गये.
जानकारी के अनुसार ब्रह्मपुरी और नागतलाई नालों का गंदा पानी एक बार फिर मानसागर झील में छोड़ा जा रहा है. जिसके चलते पानी लगातार प्रदूषित हो रहा है.
मानसागर झील में मछलियां काफी संख्या में हैं. यहां कुछ साल पहले भरतपुर से लाई गई विशेष घास भी भोजन के लिए उपलब्ध है. भले ही यहां का पानी काफी प्रदूषित है. लेकिन यहां पक्षियों को अच्छा भोजन मिल रहा है. ऐसे में पक्षियों की आवाजाही तो बनी हुई है, लेकिन दूषित पानी से मछलियों के प्राण लगातार संकट में हैं.