भीलवाड़ा.मेवाड़ की मिठाइयों की मिठास का कुछ अलग ही अंदाज है. श्रीनाथजी के सागर प्रसाद और सांवरिया सेठ के लड्डू प्रसाद के मिठास के स्वाद से भला कौन परिचित नहीं है. मेवाड़ की मिठाई में भीलवाड़ा के मुरके अपनी अलग ही पहचान रखते हैं. उड़द की दाल के आटे से बने मुरके का रूप जलेबी और इमरती से कुछ मिलता जुलता होता है. इमरती और जलेबी जहां मैदा से बनती है वहीं मुरके के उड़द की दाल के आटे से बनाए जाते हैं.
भीलवाड़ा के आसपास इलाके में प्रचलन ज्यादा
मजेदार बात यह है कि यह मिठाई साल भर में केवल शारदीय नवरात्रि के साथ बाजार में आती है और छोटी दीपावली के साथ ही बनना बंद हो जाती है. मेवाड़ में भी भीलवाड़ा के आसपास के 40 किलोमीटर के दायरे में इस मिठाई का प्रचलन ज्यादा है. दूसरी मिठाइयां तो भीलवाड़ा के बाजारों में 12 महीने मिल जाती है. मगर मुरके की मिठाई की खास बात यह है कि शारदीय नवरात्रि से शुरू होने वाली मिठाई दिवाली तक चलती है. करीब 25 दिन तक लोग इसे चाव से ना केवल खाते हैं बल्कि लक्ष्मी पूजन भी इस मिठाई के साथ करते हैं और लक्ष्मी माता को मुरके का भोग लगाया जाता है.
भीलवाड़ा की खास मुरके मिठाई..घर-घर लगता है लक्ष्मी माता को भोग पढ़ें- दीवाली स्पेशल: जोधपुर में पटाखा मिठाई की धूम, 1600 रुपए प्रति किलो है भाव
दीपावली पर बढ़ती मांग के बाद हर चौराहे पर मिल जाते है मुरके
पुश्तैनी मुरके की मिठाई बनाने वाले भैरूलाल पाटनी कहते हैं कि पहले यह मिठाई उनके दादाजी बनाते थे. फिर उसके बाद उनके पिताजी और अब वो बना रहे हैं. उन्होंने बताया कि अब तक उनको 40 साल हो गए हैं. इस मिठाई को बनाते हुए. भीलवाड़ा में पहले इस मिठाई की काफी कम दुकानें थीं. लेकिन हर वर्ष दीपावली पर इसकी बढ़ती मांग ने आज शहर के हर चौराहे पर मुरके की दुकान मिल जाती है. यह मिठाई मावा और दूध के बगैर बनती है. जिसके चलते इसे शुद्ध माना जाता है. क्योंकि दिवाली सीजन में मावे की मिठाइयों में मिलावट बहुत होती है. इसके साथ ही इसमें मैदा का कोई उपयोग नहीं होता है बल्कि उड़द की दाल का प्रयोग किया जाता है जो काफी स्वास्थ्यवर्धक होती है.
पढ़ें-स्पेशल रिपोर्ट: कपासन में चावल से बने मरके मिठाई का स्वाद खड़ी देशों की जुबान पर भी चढ़ा
लक्ष्मी पूजन में मुरके का सबसे ज्यादा प्रयोग
वहीं दूसरी ओर मिठाई बनाने वाले हलवाई भंवर सिंह ने बताया कि वो इस मिठाई को 35 सालों से मनाते आ रहे है. इस मिठाई की सबसे खास बात यह है कि यह उड़द की दाल की बनती है और दूसरी मिठाइयों से काफी सस्ती भी होती है और बनाने में भी आसान होती है. इस पर मिठाई खरीदने आए जितेंद्र सिंह कहते हैं कि वैसे तो मेवाड़ की मिठाइयों का अंदाज ही कुछ अलग है. यहां पर मुख्य रूप से मुरके का प्रचलन ज्यादा है क्योंकि भीलवाड़ा में लक्ष्मी पूजन में मुरके का प्रयोग ज्यादा किया जाता है. यह शत प्रतिशत शुद्ध होती है और बाजार में कहीं भी मिल जाती है. इसमें ना तो किसी प्रकार के मैदा का प्रयोग होता है और ना ही मावे का. जिससे कि इसमें मिलावट होने की कोई शिकायत नहीं हो सकती.