भरतपुर.पहले लिख, पीछे दे, फिर भी घटे तो मुझ से ले...एक लिखा सौ कहा...कागज पर लिखी हुई हिसाब की विश्वसनीयता इन पंक्तियों से साफ पता चलती है. लिखे हुए हिसाब की विश्वसनीयता की डोर थामे हुए आज के डिजिटल जमाने में भी व्यवसायी बही-खातों के हिसाब की परंपरा को निभा रहे हैं. दीपावली के अवसर पर नई नए खाते तैयार होने लगे हैं. व्यवसाई भी इन्हें खरीदने लगे हैं. लक्ष्मी पूजन (Laxmi Pujan 2021) के साथ ही ये व्यवसायी बही- खातों का भी पूजन करेंगे और नए वित्तीय वर्ष में नए हिसाब का संधारण शुरू कर दिया जाएगा.
इसलिए जिंदा है परंपरा
पुराने व्यापारियों का बही खाता पर भरोसा कपड़ा व्यवसायी चरणजीत ने बताया कि भले ही आज डिजिटल जमाना हो और युवा पीढ़ी इस पर विश्वास करती हो लेकिन हिसाब किताब के मामले में बही-खातों का कोई मुकाबला नहीं. डिजिटल हिसाब किताब में तो फिर भी फेरबदल संभव है. लेकिन बही-खातों में जो हिसाब एक बार लिख दिया, उसे बदला नहीं जा सकता. इसलिए बही -खातों का हिसाब विश्वसनीय है और यही वजह है कि आज भी बड़े संख्या में व्यवसायी बही खातों का हिसाब परंपरागत तरीके से अपनाए हुए हैं.
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नई पीढ़ी को समझ नहीं आता बही खाता
व्यवसायी चरणजीत ने बताया कि बही खातों के हिसाब का तरीका नई पीढ़ी की समझ से बाहर है. बही- खाते का विस्तृत हिसाब किताब नई पीढ़ी के युवा संभाल नहीं पाते. वहीं डिजिटल जमाने में लैपटॉप और कंप्यूटर पर संधारित किया जाने वाला हिसाब बुजुर्ग व्यवसायियों की समझ से बाहर है. ऐसे में कहें तो वही खाते का हिसाब धीरे-धीरे बुजुर्ग व्यवसायियों के साथ ही लुप्त हो जाएगा.
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दीपावली पर होता है पूजन
बही में हिसाब लिखते व्यापारी व्यवसाय चरणजीत ने बताया कि पूरे साल भर के हिसाब किताब के लिए दीपावली से पहले नए बही-खाता खरीदे जाते हैं. फिर उनका दीपावली पर लक्ष्मी पूजन के साथ पूजन किया जाता है. उसके बाद वित्तीय वर्ष शुरू होने से पहले 31 मार्च को नए बही खातों का फिर से पूजन कर 1 अप्रैल से नए वर्ष के हिसाब किताब के संधारण की शुरुआत होती है.
कम हुआ जिल्दसाजों का व्यवसाय
शहर के जिल्दसाज और बही खाता व्यवसायी अनिल कुमार तिवारी ने बताया कि डिजिटल जमाने के चलते बही-खातों की मांग पहले की तुलना में काफी कम हो गई है. यही वजह है कि उनका व्यवसाय भी पहले से काफी कम हो गया है लेकिन कुछ व्यवसाय अभी भी बही खातों के परंपरागत हिसाब में विश्वास रखते हैं. इसीलिए उनका व्यवसाय धीरे-धीरे चल रहा है और उन्हें परिवार पालने के लिए सीमित ही सही लेकिन आमदनी हो रही है.