भरतपुर.वैदिक काल से ही माना जाता है कि गंगा माता सभी कष्टों को हर लेती हैं, लेकिन भरतपुर का ऐतिहासिक गंगा मंदिर इन दिनों संकट के दौर से गुजर रहा है. इस ऐतिहासिक मंदिर को आज खुद के उद्धार के लिए 'भागीरथ' का इंतजार है.
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रियासत कालीन ऐतिहासिक गंगा मंदिर की बदहाली का आलम यह है कि बीते 2 वर्ष से मंदिर प्रांगण की छत टपक रही है. आकाशीय बिजली से बचाने के लिए लगाया गया तड़ित चालक भी बीते कई वर्षों से टूटा हुआ पड़ा है. ईटीवी भारत की टीम ने मंदिर के हालातों का जायजा लिया तो ऐतिहासिक मंदिर में कई बदहाली के दृश्य दिखाई दिए.
दो साल से टपक रही छत, दीवारों में सीलन
मंदिर के पुजारी चेतन शर्मा ने बताया कि साल 2019 में देवस्थान विभाग और पुरातत्व विभाग की ओर से लाखों रुपए खर्च कर मंदिर के जीर्णोद्धार के तहत छत का पुनर्निर्माण कराया गया, लेकिन जब से मंदिर में जीर्णोद्धार का कार्य किया गया है तभी से ऐतिहासिक मंदिर के प्रांगण की छत टपक रही है.
गंगा मंदिर के पूरे प्रांगण में मंदिर की छत टपक रही बीते 2 सालों से मंदिर की छत में बरसात के मौसम में सीलन आ जाती है और पूरे प्रांगण में पानी टपकता रहता है. इससे श्रद्धालुओं को भी काफी परेशानी होती है. वहीं, ऐतिहासिक मंदिर को भी नुकसान पहुंच रहा है. देवस्थान विभाग के सहायक आयुक्त केके खंडेलवाल ने बताया कि पुरातत्व विभाग के माध्यम से यह कार्य कराया गया था. इसको लेकर ठीक कराने के लिए पुरातत्व विभाग को पत्र लिखा गया है.
मंदिर को फर्श पर टपकता पानी आकाशीय बिजली का भी खतरा
ऐतिहासिक गंगा मंदिर को आकाशीय बिजली से बचाने के लिए निर्माण के समय ही मंदिर के शिखर पर तड़ित चालक लगाया गया था, लेकिन अब मंदिर के शिखर का तड़ित चालक मुड़ा हुआ है और उसका करीब आधा भाग गायब है. गंगा मंदिर आज की तारीख में आकाशीय बिजली से भी सुरक्षित नहीं है. इस संबंध में जब देवस्थान विभाग के सहायक आयुक्त केके खंडेलवाल से बात की तो उन्होंने बताया कि इस संबंध में जल्द ही प्रस्ताव बनाकर देवस्थान आयुक्त को भेजा जाएगा.
गंगा मंदिर इन दिनों संकट के दौर से गुजर रही टूट गईं सजावटी लाइट
रात के वक्त मंदिर के भवन पर सजावटी रोशनी फेंकने के लिए सालों पहले पर्यटन विभाग ने चारों तरफ की छतरियों में बिजली की बड़ी-बड़ी लाइटें लगवाई, लेकिन देखभाल और रखरखाव के अभाव में ये कीमती लाइटें भी टूट कर बर्बाद हो चुकी हैं.
चोरी हुई पीतल की क्लिप
मंदिर भवन के निर्माण के समय कारीगरों ने मंदिर के पत्थरों और दीवारों को मजबूती प्रदान करने के लिए पीतल की मजबूत क्लिपों से जोड़ा था. इससे दीवारों के पत्थर आपस में जुड़े रहते थे, लेकिन असमाजिक तत्व इन क्लिपों को तोड़कर ले गए हैं इससे अब पत्थरों के बीच में गैप आने लगा है.
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गौरतलब है कि पुत्र प्राप्ति के बाद भरतपुर के महाराजा बलवंत सिंह ने वर्ष 1845 में गंगा मंदिर की नींव रखी, जिसका निर्माण करीब 90 साल में पूरा हुआ. सन 1937 में महाराज सवाई बृजेंद्र सिंह ने गंगा मैया की मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कराई. तभी से ये ऐतिहासिक मंदिर अपनी भव्यता और आस्था के लिए खासी पहचान रखता है.