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चटोरे लंगूर और दुकानदार की मोहब्बत, हर दिन चखता है कचौड़ी का स्वाद...ठेलों पर बैठकर खाता है फल और सब्जी

इन दिनों कचौड़ियों का स्वाद एक लंगूर को इस कदर भा गया है कि वह हर दिन कचौड़ी का नाश्ता करने के लिए बिजली घर चौराहा स्थित बौला कचौड़ी वाले की ठेल पर पास आता है. दुकानदार और लंगूर में अगाढ़ रिश्ता है. दुकानदार उसे कचौड़ी परोस कर देता है.

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ठेलों पर बैठकर खाता है फल और सब्जी

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Published : Feb 17, 2021, 1:59 PM IST

भरतपुर.अक्सर आपने लंगूर और बंदरों को जंगल में या फिर अपने घरों की छतों पर धमा चौकड़ी मचाते देखा होगा. लेकिन हम आपको भरतपुर के एक चटोरे लंगूर के बारे में बताने जा रहे हैं. यह लंगूर न केवल हर दिन ठेले पर जाकर कचौड़ी का स्वाद चखता है. बल्कि आसपास के ठेले पर रखीं सब्जियां, फल आदि भी उठाकर खा लेता है. इतना ही नहीं, ठेले चालक भी खुशी-खुशी इसको खाने का सामान देते हैं. भरतपुर का यह चटोरा लंगूर आज कल लोगों में चर्चा का विषय बना हुआ है.

ठेलों पर बैठकर खाता है फल और सब्जी

शहर के बिजली घर चौराहे पर जलेबी और कचौड़ी बिक्री का काम करने वाले बौला कचौड़ी वाले ने बताया कि करीब 15-20 दिन पहले अचानक से कहीं से घूमता हुआ एक लंगूर उसके ठेले के पास आकर बैठ गया. फिर ठेले के ऊपर आ बैठा और कचौड़ी खाने लगा. पहले दिन 8-10 कचौड़ी खाई और उसके बाद चला गया.

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जलेबी का स्वाद नहीं पसंद

बौला कचौड़ी वाले ने बताया कि उसके बाद यह सिलसिला शुरू हो गया हर दिन लंगूर आता है और ठेले पर बैठकर कचौड़ी खाता है. उसके बाद कुछ देर ठेले के नीचे लेट कर आराम करता है. लंगूर को जलेबी का स्वाद नहीं भाता. लंगूर को कई बार खाने के लिए जलेबी भी दी. लेकिन वह जलेबी नहीं खाता, सिर्फ कचौड़ी खाता है. इस चटोरे लंगूर को कचौड़ी के साथ ही फल और सब्जियां भी खूब भाते हैं. हालांकि लंगूर और बंदर के लिए फल खाना आम बात है. लेकिन यह चटोरा लंगूर ठेलों पर बैठकर बिना डरे अंगूर, मटर और अन्य फल सब्जी खाता है.

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बता दें कि यह लंगूर इतना ह्यूमन फ़्रेंडली हो गया है कि किसी को भी नुकसान नहीं पहुंचाता. चुपचाप आता है और अपनी पसंद की कचौड़ी, फल, सब्जी खाकर बिना किसी को नुकसान पहुंचाए चला जाता है. कई बार तो लोग खुद अपने हाथों से इसे मटर और अन्य सामान खिलाते हैं और लंगूर देर तक बैठकर खाता रहता है. जब भी लंगूर आता है, उसे देखने के लिए लोगों की भीड़ लग जाती है. पेट भरने के बाद लोगों के बीच से निकलकर चुपचाप चला भी जाता है.

कुछ दिन आना बंद हुआ तो बेचैन हो गए दुकान वाले

बौला कचौड़ी वाले ने बताया कि बीच में करीब चार-पांच दिन तक लंगूर कचौड़ी खाने नहीं आया, तो मन बड़ा बेचैन रहा. बार-बार मन में बुरे ख्याल भी आए कि कहीं उसे कुछ हो तो नहीं गया या किसी ने कुछ कर तो नहीं दिया. लेकिन अब फिर से लंगूर ने आना शुरू कर दिया है.

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