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सूफी संत मोईनुद्दीन चिश्ती की साहिबजादी सैयदा बीबी हाफिजा जमाल का दो दिवसीय उर्स आज से

अजमेर में विश्व प्रसिद्ध सूफी संत हजरत ख्जाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की इकलौती बेटी साहिबजादी सैयदा बीबी हाफिजा जमाल का दो दिवसीय उर्स का आगाज चादर के जुलूस के साथ हुआ. रविवार को सुबह 12 बजे गद्दीनशीन सैयद फखर काजमी चिश्ती की सदरात में महफिल शुरू हुई.

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साहिबजादी सैयदा बीबी हाफिजा जमाल का दो दिवसीय उर्स

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Published : Mar 15, 2020, 10:38 AM IST

अजमेर. हर साल की तरह इस साल भी बरसों से चली आ रही परंपरा के अनुसार विश्व प्रसिद्ध सूफी संत हजरत ख्जाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की इकलौती बेटी साहिबजादी सैयदा बीबी हाफिजा जमाल का दो दिवसीय उर्स का आगाज चादर के जुलूस के साथ हुआ.

साहिबजादी सैयदा बीबी हाफिजा जमाल का दो दिवसीय उर्स

दस्तूर-ए-कदीमा के मुताबिक असर की नमाज के बाद गद्दीनशीन सैयद अब्दुल गनी चिश्ती साहब की जेरे सरपरस्ती में चादर का जुलूस गाजे बाजे के साथ निजाम गेट से शुरु होकर बुलंद दरवाजा, सेहेन चिराग, औलिया मस्जिद, अंजुमन ऑफिस होता हुआ पायती दरवाजे से आस्ताना-ए-आलिआ में पहुंचा. जहां रौशनी से पहले साहिबजादी साहेबा के मजार पर मखमली चादर पेश हुई.

चादरपोशी में रहे यह मौजूद...

सैयद तफज्लजु हुसैन ने फातेहा दी एवं गद्दीनशीन सैयद फखर काजमी चिश्ती ने देश में अमन-शांति, भाईचारे, खुशहाली की दुआ की, जिसमे सैयद फीरोज़ुद्दीन संजरी, सैयद नदीम चिश्ती, सैयद सलीम चिश्ती, सैयद फिरदौस जमाली, सैयद एहतेशाम, शेखजादा जुल्फिखार, सैयद फखरे मोईन, सैयद अजहर, जीशान, सैयद ताज, अमान, रागिब अधिवक्ता इत्यादि सभी खुद्दामों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया, हजारों जायरीनों ने शिरकत की.

पढ़ेंःअजमेर: पश्चिम बंगाल सीएम ममता बनर्जी की ओर से दरगाह में हुई चादर पेश

रविवार को होगी महफिल...

रविवार को सुबह 12 बजे गद्दीनशीन सैयद फखर काजमी चिश्ती की सदरात में महफिल शुरू हुई, जिसमें सैयद फीरोजुद्दीन संजरी, सैयद ख्वाजा अहमद, सैयद सलीम चिश्ती, सैयद जहूर बाबा, शैखजादा जुल्फिखार चिश्ती, शैजादा दौलत अली आदि कई लोगों ने महफिल में शिरकत की. जिसके बाद दोपहर पौने 1 बजे शाही कव्वाल असरार हुसैन और पार्टी रंग गाया और 1 बजे कुल की रस्म के साथ उर्स का समापन हुआ.

सैयद रागिब चिश्ती अधिवक्ता ने बताया, कि बीबी जमाल ख्जावा साहब की इकलौती बेटी थी और पैदाइशी कुरान की हाफिजा थीं, आप ने हैप्पी वैली में चिल्ला किया था और उनकी दुआ से किन्नर यानि नामर्द व्यक्ति के भी औलाद हुई थीं, उन्होंने औरतों को घर-घर जाकर इस्लाम की शिक्षाओं से अवगत करवाया और लोगों को दिनीं तालीमात भी दीं, ख्जावा साहब अपने नजराने में से अपनी बेटी का हिस्सा निकलते थे, इसी परंपरा को निभाते हुए सभी खुद्दाम अपनी अपनी बेहन और बेटियों का उर्साना भेजते हैं और हलवा पूरी पर उनके नाम की नियाज दिलाते हैं.

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