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'देसी फ्रिज' के नहीं मिल रहे खरीदार...कारीगरों के सामने दो जून की रोटी की भी चुनौती - राजस्थान की खबर

गर्मी का सीजन का चुका है, ऐसे में हर लोग शीतल जल की चाह रखते है. इस बीच हमारे जहन में एक नाम आता है और वो है गरीबों का फ्रिज कहे जाने वाला मटका, जो निम्न और मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए किसी फ्रिज से कम नहीं है. लेकिन इस बार कोरोना के बढ़ते संक्रमण के बीच इस मटके पर भी संकट के बादल घिर गए है. इसके चलते अब मटका बनाने वाले कुम्हार परिवारों पर भी आर्थिक संकट छा गया है.

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कुम्हार परिवारों पर छाया संकट का बादल

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Published : May 28, 2020, 4:31 PM IST

अजमेर.कोरोना संकट काल के बीच हुए लॉकडाउन ने छोटे-बड़े लगभग सभी उद्योगों को प्रभावित किया है. इस संकट काल में प्रभावित हुए लोगों में कुम्हार परिवार भी अछूता नहीं है. इन कुम्हार परिवारों पर भी कोरोना की नजर लग गई है. देशभर में हुए लॉकडाउन के चलते कुम्हार हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते है, बाजार में कोई ग्राहक तक नहीं बचा है. ऐसे में अब उन पर रोजी-रोटी का संकट आ गया है.

कुम्हार परिवारों पर छाया संकट का बादल

दरअसल, अजमेर में 150 से अधिक ऐसे परिवार है, जो मिट्टी के पात्र बनाने का कार्य करते है. वहीं, 100 से अधिक परिवार ऐसे है जो मिट्टी के बने बर्तन खरीद कर उनका कारोबार करते है. लेकिन, देश में लगे इस लॉकडाउन ने अब इन कामगारों के रोजगार पर लॉक लगा दिया है. हालांकि, लॉकडाउन- 4 में जाकर उन्हें अब कुछ राहत मिली है, लेकिन यह काफी नहीं है.

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मिट्टी के बर्तन के व्यवसाय से जुड़े अनिल प्रजापत बताते है कि लॉकडाउन के दौरान सबक कुछ सुनसान था तब उनके सामने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए संकट खड़ा हो गया. इस दौरान ना ही मिट्टी लाई जा सकती थी और ना ही तैयार माल बेचा जा सकता था. 4 महीने के सीजन में अब कुछ ही वक्त बचा है, बारिश होने के बाद सीजन भी खत्म हो जाएगा और फिर दिवाली से सीजन की शुरुआत होगी.

उन्होंने बताया कि शादियों के सीजन में घड़े, लस्सी एवं चाय के लिए कुल्हड़ और शीतल जल के लिए लोग मटके खरीदा करते थे. पहले अजमेर के बाहर से भी माल के लिए आर्डर मिला करते थे, लेकिन लॉकडाउन ने सब खत्म कर दिया. वहीं, कामगारों को राज्य सरकार की ओर से ढाई हजार रुपए दिए जा रहे हैं, लेकिन दस्तावेज की पूर्ति नहीं होने से उन्हें यह राहत भी नहीं मिल पा रही है.

लॉकडाउन में खाली हाथ बैठे बुजुर्ग परिवार अपने घर के लोगों के पालन-पोषण के लिए चौक पर फिर से मिट्टी के बर्तन बना रहा है. जाहिर है कि विनाश के भय से निर्माण नहीं रुकता, मिट्टी को आकार देते उनके हाथ भी शायद यही कह रही है. बुजुर्ग कैलाश प्रजापत का कहना है कि लॉकडाउन में काम-धंधा बंद था, मुश्किल से अब मटकिया बिकने लगी है. लेकिन दुकानों पर माल नहीं जाने से रोजगार की दृष्टि से सभी कुम्हार परिवारों की हालत बहुत ही कमजोर हो चुकी है.

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गरीबों के इस फ्रिज पर लॉकडाउन का ग्रहण आंशिक रूप से शायद कुछ कम हुआ है, लेकिन सीजन का समय कम रहने से कुम्हारों पर रोजगार की दोहरी मार पड़ रही है. पहले से तैयार माल बिक नहीं रहा और अब केवल मटकियों और परांडे के सहारे 2 जून की रोटी कमाने की कवायद हो रही है.

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