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महाशिवरात्रि: अजमेर के प्राचीन झरनेश्वर महादेव मंदिर में लगा श्रद्धालुओं का तांता

देशभर में जहां महाशिवरात्रि पर्व पर मंदिरों में भगवान शिव के भक्तों का तांता लगा है तो वहीं अजमेर के झरनेश्वर महादेव मंदिर में भी सुबह से ही भक्त भगवान शिव की पूजा अर्चना के लिए मंदिर में पहुंचने लगे हैं.

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Published : Feb 21, 2020, 11:55 AM IST

प्राचीन झरनेश्वर महादेव मंदिर अजमेर, jhanneshwar Mahadev Temple Ajmer
प्राचीन झरनेश्वर महादेव मंदिर में लगा श्रद्धालुओं का तांता

अजमेर. महाशिवरात्रि के मौके पर सुबह से ही श्रद्धालुओं का शिव मंदिरों में ताता लगा रहा, तो वहीं अरावली पहाड़ियों के बीच प्राचीन झरनेश्वर महादेव मंदिर पर सुबह 4 बजे से ही लोगों की भगवान शिव के दर्शन करने के लिए लंबी कतारें देखने को मिली. बता दें की झरनेश्वर महादेव मंदिर मराठा काल का मंदिर है. जहां मराठा काल से पूजा अर्चना की जा रही हैदरगाह बाजार अंदरकोट स्थित प्राचीन झरनेश्वर महादेव मंदिर सांप्रदायिक सौहार्द का एक प्रतीक है.

प्राचीन झरनेश्वर महादेव मंदिर में लगा श्रद्धालुओं का तांता

जहां झरनेश्वर मंदिर से कुछ ही दूरी पर ही विश्व प्रसिद्ध सूफी संत ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह है. जहां मंदिर पर सुबह से ही श्रद्धालुओं का तांता बना रहा तो वहीं सुबह से दूध और पुष्प चढ़ाने वाले श्रद्धालु लाइन में लगे नजर आए. ईटीवी भारत की खास बातचीत में श्रद्धालुओं ने जानकारी देते हुए बताया कि काफी सालों से वह इस मंदिर पर आ रहे हैं, जो काफी प्राचीन है मंदिर पर सभी संप्रदाय के लोग पहुंचते हैं. बाबा विश्वनाथ का आशीर्वाद लेकर अपने कार्य को शुरू करते हैं.

सेवादारी पीयूष गोयल ने जानकारी देते हुए बताया कि सुबह से ही भक्तों का ताता बना रहा जहां 6 बजे महाआरती का आयोजन किया गया जिसके बाद सभी श्रद्धालुओं के लिए मंदिर में आवाजाही को शुरू कर दिया गया जो रात 11 बजे तक इसी प्रकार जारी रहेगा रात 12 बजे महा आरती के बाद शिवरात्रि का समापन हो जाएगा , वही ऐसा माना जाता है कि इस दिन अगर पूरे मन से भगवान शिव की आराधना की जाए तो भक्तों की मनोकामना भी पूर्ण होती है.

पढे़ं- आज है महाशिवरात्रि, भोलेनाथ के मंदिरों में उमड़े भक्त

आखिर क्यों मनाई जाती है शिवरात्रि

बता दें कि महाशिवरात्रि मनाई जाने के संबंध में कई पुराणों में बहुत सारी कथाएं प्रचलित है. जहां भागवत पुराण के अनुसार समुद्र मंथन के समय वासुकी नाग के मुख्य में भयंकर विष की ज्वाइन उठी और वह समुद्र में मिश्रित हो विश्व के रूप में प्रकट हो गई. वहीं व्हिस्की आग की ज्वाला है पूरे आकाश में फेल कर सारे जगत को जलाने लगे. इसके बाद सभी देवता ऋषि मुनि भगवान शिव के पास मदद के लिए गए. जिसके बाद भगवान शिव प्रसन्न हुए और उस विष पी लिया जिसके बाद से ही उन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा.

भगवान भोलेनाथ की असीम अनुकंपा माने का महापर्व महाशिवरात्रि का सभी भक्तों को पूरे साल इंतजार रहता है. जहां महाशिवरात्रि फाल्गुन महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है. जबकि पूरे साल में कुल 12 शिवरात्रि आती है, लेकिन फाल्गुन मास की शिवरात्रि का इनमें सबसे अधिक महत्व रहता है. इसलिए इसे महाशिवरात्रि कहा जाता है.

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