अजमेर.अजमेर नगर निगम चुनाव में भाजपा 30 साल से अपना बोर्ड बनाती आ रही है. कांग्रेस के हाथ से इस बार फिर अजमेर नगर निगम निकल गया. खास बात ये है कि कांग्रेस की ऐसी हार अजमेर शहर निकाय चुनाव में पहले कभी नहीं हुई. राजनीति के जानकार लोग कांग्रेस की हार को स्थानीय नेताओं में गुटबाजी का परिणाम मानते हैं. देखिये यह खास रिपोर्ट...
नगर निगम में भाजपा के पिछले बोर्ड पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद भी भाजपा नगर निगम में फिर से कमल खिलाने में कामयाब हो गई. अजमेर शहर निकाय चुनाव में सन 1990 से लगातार भाजपा अपना बोर्ड बनाती आ रही है. एक बार फिर अजमेर नगर निगम में कमल का फूल खिला है. चुनाव परिणाम बताते हैं कि पूरी गंभीरता के साथ भाजपा ने चुनाव लड़ा बल्कि असंतुष्ट कार्यकर्ताओं से होने वाले डैमेज को भी कंट्रोल किया.
टिकट वितरण के असंतोष से भाजपा समय रहते निपटी
भाजपा की ओर से चुनाव की कमान निकाय प्रभारी अरुण चतुर्वेदी और अजमेर उत्तर से विधायक वासुदेव देवनानी और दक्षिण क्षेत्र से विधायक अनिता भदेल के हाथ में रही. टिकट वितरण को लेकर भाजपा में कुछ असंतोष रहा लेकिन भाजपा ने समय रहते हुए अपने कार्य योजना से सकारात्मक दिशा में ला दिया. 80 में से भाजपा के 48 पार्षद जीत कर आए. जाहिर है यह आंकड़ा बहुमत से भी ज्यादा रहा है. लेकिन सवाल यहां आंकड़ों का नहीं बल्कि जीत और हार का है.
कांग्रेस को झेलनी पड़ी मुस्लिम समुदाय की नाराजगी
स्थानीय राजनैतिक विश्लेषक एस पी मित्तल का कहना है कि कांग्रेस ने वार्ड 11, 12 और 13 मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में टिकट ही नही दिए. इस कारण मुस्लिम समुदाय की नाराजगी भी कांग्रेस को झेलनी पड़ी. अजमेर में शहरी मतदाता के तौर पर करीब 40 हजार मुस्लिम है. केवल इन वार्डो में ही नहीं मुस्लिम समुदाय की नाराजगी का असर उन वार्डो में भी कांग्रेस पर पड़ा है जिनमें मुस्लिम समुदाय की आबादी कम है. जाहिर है मुस्लिम समुदाय कांग्रेस का वोट बैंक रहा है. हालांकि कांग्रेसी इसको रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं. टिकटों को लेकर इन तीन वार्डो में काफी रस्साकशी थी. ऐसे में कांग्रेस ने नुकसान से बचने के लिए तीनो वार्डो को ओपन रखा लेकिन कांग्रेस के लिए यह उल्टा पड़ गया. भाजपा ने तीनों वार्डो से प्रत्याशी खड़े किए थे. लेकिन वह ज्यादा वोट नही ले पाए. तीनों वार्डो में निर्दलीय जीतकर आये हैं.
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विपक्ष के रूप में भी कांग्रेस कमजोर
प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है ऐसे में नगर निगम चुनाव में कांग्रेस का ऐसा हश्र हुआ है कि विपक्ष में भी कांग्रेस अल्प नजर आ रही है. जबकि भाजपा ने पूरी एकजुटता के साथ चुनाव लड़ा और उसी का परिणाम है कि नगर निगम में मेयर और डिप्टी मेयर पद पर भाजपा का कब्जा बरकरार रहा. पूर्व शहर अध्यक्ष अरविंद यादव बताते हैं कि चुनाव पूरी रणनीति के साथ लड़ा गया. जबकि कांग्रेस में कोई रणनीति ही नहीं थी. कांग्रेस में गुटबाजी बहुत ही ज्यादा हावी रही. अरविंद मानते हैं कि पिछली वसुंधरा राजे सरकार के कार्यों और नगर निगम बोर्ड के कार्यों पर जनता ने मोहर लगाई है.