विदिशा।जिले के कागपुर कस्बे में एक ऐसा प्राचीन देवी मंदिर है, जो परमारकालीन विरासत का सबसे बड़ा उदाहरण है. इस प्राचीन मंदिर को देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालू आते हैं. यहां के मंगला देवी मंदिर, अठखंबी और खेड़ापति माता मंदिर के स्मारक दर्शनीय होने के साथ-साथ शिल्प के अद्भुद नमूने भी हैं. खेड़ापति मंदिर तो कागपुर के आसपास की कई प्रतिमाओं को एकत्रित कर दिए जाने से एक परमारकालीन देवालय के रूप में नजर आता है.
मंगला देवी मंदिर ऊंचा और खंडित है, लेकिन इसके मुख्य द्वार के दोनों ओर अत्यंत कलात्मक प्रतिमाओं को उत्कीर्ण किया गया है. मंदिर के दोनों ओर नाग कन्याओं की प्रतिमाएं हैं. पास ही बारहखंबों पर टिका छत वाला एक मंडप भी है. ऐसे माना जाता है कि पूर्व में मंदिर में होने वाले अनुष्ठानों के वक्त इस बारहखंबी मंडप का उपयोग होता होगा.
आस्था का केंद्र है खेड़ापति मंदिर
गांव के बीचो-बीच खेड़ापति माता का मंदिर अभी भी ग्रामीणों की आस्था का केंद्र है. माना जाता है कि 10वी-11वीं सदी का यह परमारकालीन मंदिर देवी का था, जो ध्वस्त होने के बाद क्षेत्र के लोगों द्वारा एक बार फिर बनवाया गया होगा. यह मंदिर अभी भी शिखर विहीन है. गर्भग्रह में अभी भी खेड़ापति माता की प्रतिमा है, जो अब सिंदूर पूजित है. यहां ग्रामीण उत्सव, त्यौहारों पर पूजा करने आते हैं. खेड़ापति की मूल प्रतिमा के ठीक पीछे वाले हिस्से में एक पाषाण की छोटी लेकिन सुंदर प्रतिमा मौजूद है. देवी की यह प्रतिमा दुर्गा और पार्वती के रूप को दर्शाती है.