उज्जैन। विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग धार्मिक नगरी जिसे हर कोई अलग अलग नामों से जानता है. अवंतिका, अवंतिकापुरी,कनकश्रन्गा, उज्जैनी जैसे और भी कई नाम पुराणों में दिए गए हैं. देशभर के बारह ज्योतिर्लिंगों में 'महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग' की इस नगरी का अपना एक अलग महत्व है, क्योंकि यहां बाबा महाकाल को तांत्रिक क्रिया अनुसार दक्षिण मुखी पूजा प्राप्त है और विश्व भर में बाबा ही दक्षिण मुख में विराजमान हैं. महाकाल के इस मंदिर का अधिक महत्व इसलिए भी है, क्योंकि यहां ही तड़के 4 बजे भस्म आरती करने का विधान है.
बाबा महाकाल में भस्म आरती का महत्व भस्मारती को मंगला आरती नाम भी दिया गया है, यह प्रचलित मान्यता थी कि श्मशान कि ताजी चिता की भस्म से ही भस्म आरती की जाती थी. वर्तमान में गाय के गोबर से बने गए कंडो की भस्म से भस्म आरती की जाती है. एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि भगवान शिव को भस्म धारण करते हुए केवल पुरुष ही देखते हैं. महिलाओं को उस वक्त घूंघट लेना अनिवार्य है. जिन पुरुषों ने बिना सिला हुआ चोला पहना हो वही भस्म आरती से पहले भगवन शिव को को जल चढ़ाकर छू कर दर्शन कर सकते हैं.
रंगारंग लाइटों से सजा महाकाल मंदिर कहा जाता है कि जो महाकाल का भक्त है, उसका काल भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता है. साथ ही हर साल के हर एक त्योहार बाबा के प्रांगण में ही सर्वप्रथम मनाने की परंपरा है.
आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम, भूलोके च महाकालो लिंड्गत्रय नमोस्तुते.
इसका तात्पर्य यह है कि आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर लिंग और पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही मान्य शिवलिंग है.
महाकाल मंदिर की अनादी काल से ही उत्तपत्ति मानी गयी है. मान्यता है की महाकाल मंदिर में शिवलिंग स्वयंभू है. विश्व भर में कालगणना की नगरी कहे जाने वाली उज्जैन में मान्यता है की भगवन महाकाल ही समय को लागातर चलाते हैं और कालभैरव काल का नाश करते हैं. महाकाल मंदिर में सामन्यत चार आरती होती है, जिसमें से अल सुबह होने वाली भस्म आरती के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से उज्जैन पहुंचते हैं. कहते हैं यहां आने वाले श्रद्धालु जो भी वर या कहें इच्छा भगवान महाकाल से मांगते हैं, वो हर इच्छा भगवन पूरी करते हैं. इसी के चलते हजारों संख्या में श्रद्धालु रोजाना महाकाल मंदिर पहुंचते हैं.
बाबा महाकाल का श्रृंगार करते पुजारी महाकाल मंदिर में सभी हिन्दू त्यौहार सबसे पहले मनाने की परम्परा भी है. विश्व भर में भगवन शिव के विवाह उत्सव से पूर्व 9 दिन बाबा का अलग अलग रूप में श्रृंगार किया जाता है. जिसको शिवनवरात्र कहा जाता है. आखिर में महा शिवरात्रि के दिन बाबा महाकाल को दूल्हे की तरह सजाया जाता है. वर्ष भर में एक बार दिन में होने वाली भस्म आरती भी महा शिवरात्रि के दूसरे दिन होती है. जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं.
महाशिवरात्रि पर पंचामृत-फलों से हुआ बाबा महाकाल का अभिषेक, भक्तों का तांता
मान्यता महाकाल राजा के होते हुए कोई राजा रात नहीं रुक सकता
मान्यता है की उज्जैन शहर में एक ही राजा हो सकता है और वो राजा है महाकाल. यहां कोई दूसरा राजा रात नहीं रुक सकता, क्योंकि उनसे बड़ा इस श्रष्टि में कोई नहीं तो आम आदमी की बिसात ही क्या, ये किवदंतिया है की कोई राजा रात रुकेगा तो उसकी मौत हो जायेगी. कोई राजनेता रुकेगा तो उसकी सत्ता चली जाएगी. इसके चलते उज्जैन में मुख्यमंत्री भी रात नहीं गुजारते हैं.
हालांकि ये मान्यता भी है की अगर रात गुजराना ही पड़े तो शहर से 15 किमी बाहर रात गुजार सकते हैं. वहीं एक और अंध विश्वास से जुड़ी कहानी ये भी है की बारह साल में एक बार लगने वाला सिंहस्थ का मेला जो भी सरकार के कार्यकाल में होता है, वो सरकार अगले चुनाव में हार जाती है. वे बताते हैं की ये महज एक इत्तेफाक है और कुछ नहीं. हरिद्वार, इलहाबाद, नासिक और उज्जैन में समुद्र मंथन के दौरान अमृत की बूंदे गिरी थी. जिसके बाद से ही सभी जगह कुम्भ का मेला लगता है, लेकिन उज्जैन में इस मेले का नाम सिंहस्थ हैं. वो इसलिए क्योंकि उज्जैन में 12 साल में लगने वाले इस मेले का आयोजन सिंह राशि में होता है. इसलिए इसे सिंहस्थ और बाकी तीनों जगह कुम्भ राशि में होता है. इसलिए कुम्भ का मेला कहा जाता है. सिंहस्थ मेले में सभी 13 प्रमुख अखाड़े हिस्सा लेते हैं और बारी-बारी से तय किये क्रम के अनुसार शाही और सामन्य दिनों में शिप्रा नदी में दुबकी लगाते हैं. जिन्हें देखने के लिए करोड़ों श्रद्धालु उज्जैन पहुंचते हैं.
महाकाल में खास है महाशिवरात्रि पर्व
महाशिवरात्रि पर्व उज्जैन में इसलिए भी खास होता है, क्योंकि यहां 9 दिनों तक शिवनवरात्रि मानाने की परम्परा है. जहां सबसे पहले दिन भगवान कोटेश्वर को हल्दी का लेप लगाया जाता है. पुरे शास्त्रोक विधि से निर्मित हल्दी उबटन को तैयार किया जा रहा है, हल्दी के तैयार होने के बाद भगवान कोटेश्वर का विधि विधान से पूजन कर हल्दी अर्पित की जाती है. भगवान कोटेश्वर को स्थान देवता माना जाता है, इसी कारण उत्सव के प्रारम्भ में नौ दिवसों तक प्रतिदिन विधि विधान से पूजन में हल्दी अर्पित की जाती है. इसके बाद चन्दन केसर उबटन अर्पित किया जाता है. भगवान महाकाल को उत्सव के पहले दिन से रोज रुद्राभिषेक किया जाता है. इसके बाद भगवान महाकाल का चन्दन और वस्त्रों से मनमोहक श्रृंगार किया जाता है. इसी तरह शिवनवरात्र के दूसरे दिन चन्दन केसर सुगन्धित द्रव्यों से अभिषेक पूजन के बाद भगवान महाकाल अपने भक्तों को अर्धनारीश्वर स्वरुप के साथ शेषनाग स्वरुप में दर्शन देते हैं. इसी प्रकार उत्सव के तीसरे दिन भगवान महाकाल का घटाटोप श्रृंगार, चौथे दिन छबीना श्रृंगार, पांचवे दिन होलकर श्रृंगार, छठवें दिन मनमहेश श्रृंगार,सातवे दिन उमा महेश श्रृंगार, आंठवे दिन शिव तांडव श्रृंगार किया जाता है. जिनके दर्शनों को पाकर दर्शनार्थी अभिभूत होते हैं. भगवान महाकाल के नौ दिवसीय शिव उत्सव में डूबा हुआ नवरंग के जैसा दिखाई पड़ता है.
महाशिवरात्रि पर्व: भोलेनाथ के दर्शन के लिए ओंकारेश्वर में लगा श्रद्धालुओं का तांता
महाशिवरात्रि के दिन पंडितों और पुरोहितों द्वारा पंचामृत के साथ फलों के रस और सुगंधित द्रव्यों से भगवान महाकाल का अभिषेक किया जाता है. निरंतर चलते अभिषेक में मन्त्रों की ध्वनि से पूरा वातावरण चेतनायुक्त और शिवमय बन जाता है. हर हर महादेव, जय श्री महाकाल के उदघोशों से मंदिर का हर कोना गूंजता है.
भस्म आरती के बारे में जानिये
मंदिर के मुख्य पुजारी आशीष गुरु बताते हैं कि भस्ममार्ति का एक और नाम मंगला आरती भी दिया गया है. मंगला आरती में बाबा हर रोज निराकार से साकार रूप धारण करते हैं. बाबा भस्म को संसार को नाशवान होने का संदेश देने के लिए लगाते है, नाशवान का संदेश देने के लिए बाबा ताजी भस्म शरीर पर धारण करते हैं, गाय के गौबर का जो उबला होता है, उसकी भस्म बाबा को अर्पण की जाती है. बाबा को जब भस्म अर्पण की जाती है तो 5 मंत्रों के उच्चारण के साथ की जाती है, ये 5 मंत्र हमारे शरीर के तत्व हैं. इसके उच्चारण के साथ ही व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है. पुजारी ने चिता की भस्म का वर्णन करते हुए बताया कि बाबा का निवास शमशान में है. बाबा शमशान में होते है तो ही चिता की भस्म अर्पित की जाती है. यहां पर बाबा वन में विराजमान हैं इसलिए गाय के गौबर की राख से बाबा का श्रृंगार किया जाता है.