उज्जैन।देशभर में बढ़ते उद्योग-धंधे, तकनीक की नई-नई उपलब्धियां, शहरीकरण के साथ हो रहे विकास कार्यों ने एक नए माहौल को जन्म दिया है. अन्य देशों के मुकाबले हम तेजी से आगे तो बढ़ रहे हैं लेकिन प्रकृति की देखरेख में हम बहुत पीछे भी छूट रहे हैं. लगातार औद्योगिक क्षेत्रों से निकलने वाले काले धुएं, निर्माण कार्यों के कारण पेड़ों की कटाई में इतने व्यस्त हो गए हैं कि ना स्वास्थ्य की ओर ध्यान है और ना ही पशु पक्षियों, जानवरों की ओर. यही कारण है कि एमपी का ये फेमस इकोलॉजिकल पार्क खत्म (Eco Tourism Collapsed) हो रहा है.
उज्जैन के इकोलॉजिकल पार्क का रियलिटी चेक इकोलॉजिकल पार्क क्यों सिकुड़ रहा है?
लोगों को इको सिस्टम और पशु पक्षियों की भी चिंता भी करनी होगी. हालांकि इस को लेकर सरकार सजग होने के दावे करती हैं. देश भर के अलग-अलग राज्यों, शहरों में जहां वन्य जीव जंतुओं की संख्या ज्यादा है, वहां इको पार्क बन रहे हैं. जिससे पशु पक्षियों का ध्यान रखा जा सके. साथ ही लोगों को पर्यावरण का महत्व, पशु पक्षी के महत्व के बारे में बताया जा सके. पशु विशेषज्ञ और वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार उज्जैन जिले में उंडासा तालाब, साहेब खेड़ी, गंभीर डैम जैसे क्षेत्रों में 500 से अधिक प्रवासी पक्षियों का डेरा रहता है. वहीं जानवरों की भी हलचल इन इलाकों में अधिकतर पानी होने के कारण बनी रहती है. ईटीवी भारत की टीम जब शहर से 9 किलोमीटर दूर उंडासा तालाब के समीप मक्सी रोड स्थित नोलखी इको टूरिज्म पार्क में पहुंची तो पार्क के हालात बद से बदतर मिले.
कॉलोनाइजेशन का उज्जैन पर असर
कुछ ही दूरी पर आसपास के इलाकों में कॉलोनी और इंडस्ट्रीज की भरमार देखने को मिली, जो पर्यावरण के लिए बेहद घातक हैं. ये पार्क और आसपास के घने जंगलों में रहने वाले जानवरों के लिए भी नुकसानदायक हैं. यही कारण है कि पार्क में नीलगाय के अलावा कोई जानवर हमें देखने को नहीं मिला. आप जान कर हैरान हो जाएंगे कि ना ही पार्क में सुरक्षा की दृष्टि से सीसीटीवी लगा था और ना ही लाइट या ऐसा कोई सिक्योरिटी सिस्टम जिससे निगरानी हो सके. गार्ड की आमद भी वहां देखने को नहीं मिली जो अंदर जाने वाले को चेक कर सके कि कहीं आगजनी या कोई अवैध सामान तो अंदर नहीं ले जाया जा रहा.
पर्यावरण से जुड़े लोगों की दलील
पर्यावरण को लेकर काम करने वाले डॉ. हरीश व्यास का कहना है कि आज से 10 साल पीछे जाएं तो यह उज्जैन से महज कुछ ही दूरी तक इको पार्क फैला था. लेकिन आज दूर-दूर तक शहर फैलता जा रहा है और पार्क सिकुड़ रहा है. वहीं इसका मुख्य कारण है पेड़ों की कटाई कर अवैध कॉलोनियों की बसाहट. जिसके कारण अब निरंतर प्रदूषण अधिक मात्रा में फैल रहा है. इससे लोगों के स्वास्थ्य पर भी असर हो रहा है और इकोलॉजिकल बैलेंस गड़बड़ हो रहा है.
विभागों के पास नहीं है कोई डेटा
वहीं डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर नरेंद्र पांडवा ने जानकारी देते हुए बताया कि इको पार्क के आस-पास जितनी भी नई कॉलोनियां बन रही हैं, उनमें पेड़ों की कटाई को लेकर हमारे पास कोई डाटा नहीं है और ज्यादा कुछ बता नहीं पाएंगे. लेकिन पेड़ों की कटाई के बाद नुकसान तो होता ही है. उज्जैन में वैसे ही 0.67 प्रतिशत फॉरेस्ट एरिया है और जैसे जैसे पेड़ों की कटाई हो रही है और बसाहट घनी इको टूरिज्म के लिए जाना जाने वाला एमपी का ये फेमस स्पॉट अब दम तोड़ता नजर आ रहा है.