टीकमगढ़। जिले के कुंडेश्वर मंदिर में महाशिवरात्रि का पर्व हर साल की तरह इस साल भी धूम-धाम से मनाया जा रहा है. इस मंदिर में मौजूद शिवलिंग के बारे में मान्यता है कि ये शिवलिंग हजारों साल पहले भूगर्भ से प्रकट हुआ था. इस शिवलिंग के बारे में एक और चमत्कारिक बात यह है कि इसका हर साल आकार बढ़ता जा रहा है, जो आज भी निरंतर जारी है.
कुंडेश्वर धाम शिव मंदिर के शिवलिंग की यूं तो कई विशेषताएं बताई जाती हैं, लेकिन इसकी एक खास बात इसका पंचमुखी शिवलिंग है. बुंदेलखंड अंचल में इसे कलयुग का कैलाश भी कहते हैं. कहा जाता है कि कुंडेश्वर शिवलिंग के दर्शन मात्र से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं.
महाशिवरात्रि पर्व पर कुंडेश्वर मंदिर की अनूठी परंपरा निभाई जाती है, जो सालों से चली आ रही है. दरअसल महाशिवरात्रि के पर्व पर देर रात यहां भोलेबाबा की शादी मां पार्वती के साथ की जाती है, जिसकी सबसे खास विशेषता यह है कि भगवान शिव की शादी बुंदेलखंडी रस्मों से संपन्न कराई जाती है. इस परंपरा के गाजे-बाजे के साथ भोले बाबा की बारात भी निकाली जाती है. इस दौरान भगवान शिव का 52 किलो चांदी के आभूषणों से विशेष शृंगार भी किया जाता है.
वहीं रतलाम के बिलपांक गांव में भी इसी तरह का एक अति प्रचीन विरूपाक्ष शिव मंदिर है. यहां आने वाले भक्तों में मान्यता है कि निसंतान दंपति को विरूपाक्ष महादेव के दर्शन मात्र से संतान की प्राप्ति हो जाती है. इसके अलावा यहां पिछले 76 सालों महाशिवरात्रि के पर्व पर महारूद्र यज्ञ का भी आयोजन किया जा रहा है. कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण मौर्य और परमार काल के दौरान किया गया था.