टीकमगढ़। भारत की संस्कृति में त्योहारों का विशेष महत्व है. किसी भी त्योहार की तैयारियां लोग दो से तीन महीने पहले ही शुरू कर देते हैं, लेकिन इस साल कोरोना वायरस ने सभी त्योहारों पर ग्रहण लगा दिया है. देश में हर्ष और उल्लास से मनाया जाने वाला गणेश चतुर्थी का त्योहार भी इस साल कोरोना की भेंट चढ़ गया है.
मूर्तिकारों पर कोरोना ग्रहण
बुंदेलखंड के टीममगढ़ जिले में जहां कोरोना महामारी से मजदूर वर्ग परेशान हैं, वहीं अपनी कला से मिट्टी की मूर्तियों में जान डालने वाले मूर्तिकार, कारीगरों को भी आर्थिक संकट से जूझना पड़ रहा है. ये मूर्तिकार अपने परिवार का भरण-पोषण गणेश उत्सव और नवदुर्गा महोत्सव की मूर्तियां बनाकर मूर्तियां बनाकर करते थे, लेकिन कोरोना वायरस ने सभी का रोजगार छीन लिया है.
आर्थिक संकट में मूर्तिकार
टीकमगढ़ जिले के मूर्तिकारों का ये धंधा सैकड़ों साल पुराना है, यहां के मूर्तिकार भगवान की आकर्षक कलात्मक मूर्तियां बनाकर अपना परिवार चलाते हैं, लेकिन इन मूर्तिकारों के पेट पर कोरोना ने चोट पहुंचाई है. कोरोना संक्रमण के चलते करीब 50 मूर्तिकार और कारीगर बदहाली की जिंदगी जीने को मजबूर हैं. क्योंकि कोरोना संकट के बीच मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार ने फैसला लिया है कि इस साल कोरोना महामारी को देखते हुए भगवान गणेश की मनमोहक झांकियां नहीं सजेंगी और लोग घरों में ही पूजा करेंगे.
परिवार चलाना हो रहा मुश्किल
कोरोना के चलते मूर्ति का व्यापार बेपटरी हो गया है, जिसके कारण मूर्तिकारों और कारीगरों को अपना परिवार चलाना भी मुश्किल हो रहा है. हर साल ये लोग मूर्तियों से लाखों रुपयों की मूर्ति बनाया करते थे, लेकिन इस साल मूर्तियों का धंधा पूरी तरह से मंदा हो गया है. लोग आंसू बहाने को मजबूर हैं. पहले मूर्तिकार हर सीजन में 10 हजार से लाख रुपए तक की कमाई करते थे, आज वे सभी लोग हाथ मलते दिखाई दे रहे हैं.
बड़ी मूर्तियों में होती थी 30 से 40 हजार की कमाई
टीकमगढ़ जिले के जतारा, खरगापुरा, लिधौरा, बल्देवगढ़ में करीब 50 मूर्तिकार और कारीगर हैं, जो इस सीजन में गणेश उत्सव पर विशाल मूर्तियां बनाकर लाखों रुपए कमाते थे. यहां के मूर्तिकारों का कहना है कि वे 40 से लेकर 50 बड़ी-बड़ी मूर्तियां बनाकर बेचते थे और सभी मूर्तियां 30 से 40 हजार रुपए तक में बिकती थी. जिसमें काफी लाभ होता था और साथ ही बड़ी मूर्तियां बनाने में समय भी कम लगता है.
कंगाल होने की कगार पर मूर्तिकार
मूर्तिकारों ने बताया कि ये मूर्तियां मिट्टी, बांस और लकड़ियों से मिलाकर बनाई जाती हैं. प्रति मूर्तिकार हर साल 7 से 10 लाख रुपए कमा लेते थे, लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते बड़ी मूर्तियों पर जिला प्रशासन ने रोक लगा दी है. जिसके कारण इस साल चल समारोह और चौक चौराहों पर मूर्तियां बिठाने पर प्रतिबंध लगा हुआ है. जिससे मूर्तिकार कंगाल होने की कगार पर आ गए हैं.
नहीं मिल रहा मूर्तियों का ऑर्डर
मूर्तियों का ऑर्डर नहीं मिलने से उनका रोजगार चौपट हो गया है. अब ये लोग 1 फिट से लेकर 2 फिट तक की ही मूर्तियां बना रहे हैं, लेकिन इतनी छोटी मूर्तियों की डिमांड नहीं होने से सब कुछ बेकार साबित हो रहा है. अब ये लोग घरों में रखने वाली छोटी-छोटी मूर्तियां तो बना रहे हैं, लेकिन उनका ऑर्डर भी 10 से 5 प्रतिशत ही मिल रहा है, जिससे मूर्तियों को बनाने में लगी मिट्टी का भी पैसा नहीं निकल पा रहा है.
शासन-प्रशासन से नहीं मिली कोई मदद
कोरोना वायरस ने गणेश उत्सव और नवदुर्गा महोत्सव पूरी तरह से चौपट कर दिया है. अब ये अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और पोषण को लेकर परेशान हैं. मूर्तिकारों का कहना है कि शासन और प्रशासन ने उनकी कोई मदद नहीं कि है, साथ ही अब तक उन्हें कोई आर्थिक सहायता भी नहीं मिली है. जिससे ये लोग पूरी तरह से टूट चुके हैं. जिससे सभी ने अपना दर्द साझा करते हुए कहा कि पहली बार पेट की आग बुझाने में इतनी बड़ी लड़ाई लड़नी पड़ रही है.