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चंदरेह में मौजूद है एक हजार साल पुराना शिव मंदिर, चेदिवंश के शासकों ने कराया था निर्माण

चंदरेह में बने शिव मंदिर और गढ़ी चेदिवंश के राजा प्रबोध शिव द्वारा 950 ई.पूर्व. बनाया गया था. पत्थरों को जोड़कर बनाया गया शिव मंदिर आज भी जैसा पहले था वैसा ही खड़ा हुआ है. जबकि राजा की गढ़ी अब खंडहरों में तब्दील हो रही है. यदि शासन प्रशासन इस पर ध्यान दे, तो यह स्थल पर्यटक के रूप में विकसित हो सकता है.

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Published : Oct 31, 2020, 10:28 AM IST

Updated : Oct 31, 2020, 5:34 PM IST

सीधी। सीधी के रामपुर नेकिन इलाके के चंदरेह में बने शिव मंदिर और गढ़ी चेदिवंश के राजा प्रबोध शिव द्वारा 950 ई.पूर्व. बनाया गया था. पत्थरों को जोड़कर बनाया गया शिव मंदिर आज भी जैसा पहले था वैसा ही खड़ा है. जबकि राजा की गढ़ी अब खंडहरों में तब्दील हो रही है. वहीं पांच साल पहले राज्य शासन ने इसे पर्यटक स्थल के रूप में शामिल किया था लेकिन अब तक इसके सुधार के लिए कोई पहल नहीं की गई है.यहां एक हजार साल पहले चेदिवंश का राज था. चेदिवंश मुख्य रूप से आर्य के प्राचीन वंश माने जाते हैं. यह राज्य मुख्यतः गंगा नदी से लेकर नर्मदा नदी के बीच में स्थापित था, जिसमें विंध्य क्षेत्र भी शामिल था.

चेदिवंश के शासकों का गौरवशाली इतिहास

चेदि अंग्रेजी शब्द, जिसे कहा जाता है आर्य

सीधी में सनू 850 से लेकर 1075 ईसा पूर्व तक चेदिवंश का राज था, जो सोन नदी किनारे चंदरेह गांव में इसके प्रमाण मिलते है. चेदि अंग्रेजी शब्द है जिसे आर्य कहा जाता था. चेदिवंश के राजा शिशुपाल भी हुआ करते थे. इनका मुख्य राज्य गंगा नदी से लेकर केन, सोन और नर्मदा नदी तक फैला था. सीधी जिले में चंदरेह गांव जो चेदिवंश कहा जाता है. प्रबोध शिव नाम के राजा ने शिव मंदिर और अपने लिए एक गढ़ी यानी महल का निर्माण कराया था.

पयर्टक

अनोखी है मंदिर की नागर शैली

पहाड़ों के बीच बने इस शिव मंदिर और गढ़ी का निर्माण पत्थरों से किया गया है. सबसे पड़ी बात यह है इन पत्थरों को जोड़ने में न चूना का उपयोग किया न ही सीमेंट का उपयोग किया गया है. पत्थरों में कलात्मक शिल्पकला देख कर कोई भी चकित हो जाएगा. मंदिर के प्रांगड़ में गढ़ी आज बिखर कर गिर रही है. पत्थर इधर-उधर बिखरे पड़े हैं. हालांकि शिव मंदिर आज भी वैसा खड़ा है, जैसे एक हजार साल पहले था, लेकिन गढ़ी अब टूट रही है.

ऐतिहासिक धरोहर चेदिवंश

बिना गारे और सीमेंट के जुड़े हैं मंदिर के पत्थर

स्थानीय युवक कुबेर तोमर और प्रभात तोमर का कहना है कि इस मंदिर की बनावट खजुराहो से मिलती जुलती है. सीमेंट का इस्तेमाल किए बगैर पत्थरों को जोड़ा गया है. शिव मंदिर में स्थापित शिव पिंडी अपने आप बेजोड़ दिखाई देती है. गढ़ी के भीतर से एक सुरंग भी बनाई गई थी, जो सोन नदी तक जाती थी, जिसमें महल की रानी सोन नदी में स्नान के लिए जाया करती थी. इसके साथ ही गढ़ी के पीछे एक हवन कुंड बनाया गया है, जहां राजा शिव की उपासना होती थी.

बुंदेलखंड से लेकर बघेलखण्ड तक फैला चेदि साम्राज्य

राज्य सरकार ने कुछ साल पहले इस एतिहासिक परिसर की बाउंड्री वॉल का निर्माण कराया था, लेकिन पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था नहीं होने के चलते, आसामाजिक तत्त्वों द्वारा नुकसान पहुंचाया जा रहा है. इतिहासिकार रितेश शुक्ला बताते हैं कि चेदिवंश के राजाओं का बुंदेलखंड से लेकर बघेलखण्ड तक साम्रज्य फैला हुआ था. इस वंश में अनेक शूरवीर राजा रहे हैं. जानकारों के मुताबिक इन मंदिरों की निर्माण शैली हू-ब-हू ग्वालियर के सास-बहू मंदिर और तेली मंदिर जैसी है. उन्होंने बताया कि शिव मंदिर और गढ़ी में जिन पत्थरों पर बारीकी से नक्कासी की गई है, जो आज के युग में असंभव है. इतिहारकार ने कहा कि बड़े-बड़े पत्थरों को वगैर मशीनों की मदद से किस तरह लाया गया होगा, और इन पत्थरों को उठाकर महल तक लाना एक बड़ा शोध का विषय है. भारत प्राचीन काल से समृद्ध इलाका रहा है. जहां अनेक राजाओं ने राज किया है.

ऐतिहासिक मंदिर को बचाने के लिए सरकार को उठाना होगा कदम

बहरहाल पत्थरों से बना शिव मंदिर और राजा की गढ़ी आज भी सुरक्षित है और लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है. इस शिव मंदिर में सैकड़ों पयर्टक दर्शन के लिए यहां पहुंचते हैं लेकिन शासन प्रशासन की उदासीनता के चलते इस भव्य रचना का प्रचार प्रसार नहीं हो रहा है. जिसके चलते अभी भी पर्यटकों की कमी महसूस की जा सकती है यदि शासन प्रशासन इस पर ध्यान दे, तो यह स्थल पर्यटक के रूप में विकसित हो सकता है, और हजारों लोग इसे देखने के लिए पहुंचेंगे. अब देखना होगा कि जिला शासन इसके जीर्णोद्धार के लिए क्या कदम उठाती है.

Last Updated : Oct 31, 2020, 5:34 PM IST

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