शहडोल। देश में कोरोना काल को एक साल हो चुके हैं और उसकी दूसरी लहर भी अपना कहर बरपाना शुरू कर चुकी है. कोरोना के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए देश में अचानक ही ऐतिहासिक लॉकडाउन का ऐलान किया गया, और उस लॉकडाउन के दौरान देशभर के मजदूर इधर से उधर जिसे जो साधन मिल रहा था कोई पैदल ही तो कोई किसी भी साधन से अपने घर की ओर रवाना हो रहे थे. उस दौरान ही एक बड़ा और दर्दनाक हादसा हुआ था, जब शहडोल संभाग के 16 मजदूर ट्रेन हादसे के शिकार हो गए थे. आखिर उस ट्रेन हादसे के इतने महीने गुजर जाने के बाद उन मजदूर परिवार के परिजनों की जिंदगी में क्या कुछ बदला, उन्हें क्या कुछ दिक्कतें अभी भी हैं, यह जानने के लिए ईटीवी भारत उस गांव पहुंचा, जहां के 9 लोग एक साथ ट्रेन हादसे के शिकार हुए थे. देखें ईटीवी भारत की स्पेशल ग्राउंड रिपोर्ट.
कोरोना काल शुरू होते ही अचानक लगे लॉकडाउन से देश में अफरा-तफरी मच गई थी. मजदूर इधर से उधर अपने घरों के लिए रवाना हो रहे थे. आलम ये था कि मीलों पैदल सफर करके मजदूर अपने घर पहुंच रहे थे. इतना ही नहीं इस दौरान तो कई ऐसे भी थे जिनका रास्ते में ही सफर खत्म हो जा रहा था, मजदूरों के पैदल ही घर लौटने के दौरान ही एक दर्दनाक हादसा महाराष्ट्र के औरंगाबाद में हुआ था. जो पूरे देश को हिला कर रख दिया था. इस दौरान औरंगाबाद में एक ट्रेन हादसा हुआ था. जिसमें मध्य प्रदेश के 16 मजदूर उस ट्रेन हादसे के शिकार हो गए थे और उनकी स्पॉट पर ही मौत हो गई थी. यह सभी मजदूर थक हार कर मीलो सफर तय करने और हिम्मत हारने के बाद इनकी ट्रेन की पटरी पर ही अचानक ही आंख लग गई थी. जिसके चलते इनकी मौत हुई थी, ये सभी 16 मजदूर मध्यप्रदेश के शहडोल संभाग के रहने वाले थे. जिसमें से 11 मजदूर शहडोल जिले के तो मजदूर उमरिया जिले के रहने वाले थे.
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इतना ही नहीं इस दौरान एक गांव पर तो ऐसी आफत टूटी थी कि उस गांव के 9 युवा एक साथ इस दुर्घटना के शिकार हुए थे. शहडोल जिले के अंतौली गांव के 9 लोग इस हादसे के शिकार हुए थे. नौ युवाओं के शव एक साथ किसी ग़ांव में पहुंचना किसी को भी हिला सकता है. वो दर्द आज भी इस ग़ांव में देखने को मिलता है. बात बात पर उनकी आंखों में आने वाले आंसू ही वो दर्द बयां करते रहते हैं. यह दर्दनाक ट्रेन हादसा मई के महीने में हुआ था. 8 मई को इस हादसे की खबर आई थी. इतने महीने में क्या कुछ बदला ? ईटीवी भारत जब जिला मुख्यालय से लगभग 75 किलोमीटर दूर जिले के अंतौली गांव पहुंचा तो एक बार फिर से उन मजदूरों के परिजन एक उम्मीद भरी निगाह से देखने लग गए और उन्होंने अपनी समस्याएं बतानी शुरू कर दी. ये वही अंतौली गांव है जहां के 9 लोग एक साथ इस ट्रेन हादसे के शिकार हुए थे. उनके परिजनों का कहना है कि उनके बच्चों के मौत के इतने दिन तो हो गए लेकिन हालात वैसे की वैसे ही है. आज भी उनकी आंखों में आंसू उनके दर्द को बयां कर देते हैं.उनके परिजन बताते हैं कि साल भर होने को आए लेकिन कुछ नहीं बदला सरकार ने कुछ घोषणाएं की थी, वो तो मिल गईं, लेकिन आज भी कई ऐसी सरकारी योजनाएं हैं जिनका फायदा उन्हें नहीं मिल पा रहा है. उसके पीछे भी एक बड़ी वजह है.