सतना। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत एक दिवसीय प्रवास पर शनिवार सुबह सतना पहुंचे. संघ प्रमुख शहर के कृष्ण नगर स्थित संघ कार्यालय में कार्यकर्ताओं से मुलाकात के बाद चित्रकूट के मझगवां में दीनदयाल शोध संस्थान पहुंचे. जहां पर मोहन भगवत ने वीरांगना रानी दुर्गावती की भव्य प्रतिमा का अनावरण किया. इस मौके पर दीनदयाल शोध संस्थान के पदाधिकारी मौजूद रहे.
स्वाभिमान के साथ जीने का संकल्प:संघ प्रमुख ने वीरांगना रानी दुर्गावती के जीवन पर आधारित प्रदर्शनी और मिलेट्स के एक्जीविशन का अवलोकन किया. इसके बाद उन्होंने जनसभा में संबोधित करते हुए दीनदयाल उपाध्याय संस्थान के कार्यों को आगे ले जाने और अपने लिए नहीं अपनों के स्वाभिमान के साथ जीने का सभी को संकल्प दिलाया. उन्होंने कहा कि रानी दुर्गावती भारत माता की प्रतिमूर्ति का रूप हैं. उनके गुणों का स्मरण करने की आवश्यकता है.
विदेशी ताकत का बहादुरी से मुकाबला:राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने शनिवार को आदिवासी रानी दुर्गावती के शौर्य का गुणगान करते हुए कहा कि "उन्होंने देश को सबसे पहले सर्वोपरि रखा. उन्होंने आक्रमणकारियों का जमकर मुकाबला किया. इतना ही नहीं उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि लोगों को व्यक्तिगत लाभ से ऊपर उठना चाहिए और इस मानसिकता को खत्म करने के लिए एकजुट होना चाहिए. रानी दुर्गावती ने हमलावरों (मुगलों) का बहादुरी से मुकाबला किया. उनकी लड़ाई की रणनीति का इस्तेमाल विभिन्न सशस्त्र बलों द्वारा किया जा रहा है." भागवत ने यहां आदिवासी रानी की प्रतिमा का अनावरण करने के बाद एक समारोह में कहा कि "उन्होंने विदेशी ताकत का बहादुरी से मुकाबला किया. इतिहास के अनुसार, रानी दुर्गावती ने 1550 से 1564 तक तत्कालीन गोंडवाना साम्राज्य पर शासन किया था. उन्हें मुगलों के खिलाफ अपने राज्य की रक्षा करने के लिए याद किया जाता है. अपनी सेना का आगे से नेतृत्व करते हुए वह युद्ध के मैदान में मुगलों से लड़ते हुए घायल हो गईं. उन्हें युद्ध के मैदान से बाहर जाने की सलाह दी गई, लेकिन उन्होंने मना कर दिया और एक कटार निकाली और 24 जून, 1564 को खुद को मार डाला. इस जगह को मध्य प्रदेश में जबलपुर जिले के रूप में जाना जाता है".
वीरता को करें आत्मसात:रानी ने विदेशी हमलावरों को धूल चटा दी थी. यदि उनके लोगों ने विश्वासघात नहीं किया होता तो वह हार नहीं सकती थीं. उन्हें याद करते हुए हमें यह सीखना चाहिए कि तुच्छ व्यक्तिगत लाभ को देश के हितों पर प्राथमिकता नहीं देनी चाहिए. भागवत ने कहा कि रानी दुर्गावती दुश्मन की ताकत से नहीं हारीं, बल्कि अपने ही विश्वासघात के कारण हारी थीं. उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि वे आदिवासी रानी के नक्शेकदम पर चलें और देश की रक्षा के लिए उनके मूल्य और वीरता को आत्मसात करें.