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बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण बना सफेद हाथी

बुंदेलखंड के विकास और पिछड़ेपन को लेकर सरकार जनता और राजनेताओं को कोई न कोई झुनझुना पकड़ाकर मुंह बंद करा देती है.

Office commissioner
कार्यालय कमिश्नर

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Published : Apr 6, 2021, 8:33 AM IST

सागर। बुंदेलखंड के विकास और पिछड़ेपन को लेकर सरकार कोई न कोई झुनझुना पकड़ाकर जनता का मुंह बंद करा देती है. कभी बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज की सौगात दे दी जाती है, तो कभी बुंदेलखंड के नाम पर विकास प्राधिकरण बना दिया जाता है, लेकिन मेडिकल कॉलेज मिलती है, तो उसमें कई विभाग नहीं होते हैं और विकास प्राधिकरण में राजनेताओं को पद तो मिलते हैं, लेकिन बुंदेलखंड को विकास हासिल नहीं होता है.

बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण

2007 में हुआ था बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण का गठन

2003 में मध्य प्रदेश में उमा भारती के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी, लेकिन राजनीतिक उठा पटक के चलते उमा भारती को मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा. फिर बाबूलाल गौर और बाद में शिवराज सिंह मुख्यमंत्री बने. उमा भारती के पास बुंदेलखंड होने के कारण शिवराज सिंह के सामने चुनौती थी कि वह बुंदेलखंड का विश्वास जीते. ऐसी स्थिति में उन्होंने बुंदेलखंड के लिए मेडिकल कॉलेज और बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण जैसी सौगातें दी. बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण का गठन 11 मई 2007 को किया गया था. इसका उद्देश्य बुंदेलखंड के सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन को दूर कर बुंदेलखंड को मुख्यधारा में शामिल करना था.

सागर संभाग के 6 और ग्वालियर- चंबल का एक जिला शामिल

बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण का जब गठन किया गया, तो सागर संभाग के 5 जिले सागर, दमोह, छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना और ग्वालियर चंबल संभाग के दतिया जिले को शामिल किया गया. टीकमगढ़ जिले से अलग होकर बनाई निवाड़ी जिले को भी इसमें शामिल किया गया. इस तरह बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण के ऊपर 7 जिलों के विकास की जिम्मेदारी है.

12 साल में मिले सिर्फ 60 करोड़

बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण की सौगात देने के बाद शिवराज सरकार मानव बुंदेलखंड को भूल गई. 2007 से लेकर 2018 तक को बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण के नाम पर ऊंट के मुंह में जीरा समान बजट भी मिलता रहा. इन 11 सालों में बुंदेलखंड को मात्र 60 करोड़ 59 लाख 6 हजार रूपए का बजट हासिल हुआ. पिछले 2 साल में बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण को कोई भी बजट आवंटित नहीं किया गया है. लगातार पत्राचार के बाद भी बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण शून्य बजट हासिल हुआ है.

राजनेताओं के पुनर्वास का जरिया बना प्राधिकरण

बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण सिर्फ राजनीतिक पुनर्वास का जरिया बनकर रह गया है. बुंदेलखंड के उपेक्षित नेताओं को प्राधिकरण में अध्यक्ष बनाकर और कैबिनेट मंत्री का दर्जा देकर सरकार ने अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली. सुरेंद्र सिंह बेबी राजा और रामकृष्ण कुसमरिया जैसे नेता प्राधिकरण के अध्यक्ष रहे हैं, लेकिन के नाम पर कोई उपलब्धि नहीं है.

प्राधिकरण के नाम पर जनता को किया गुमराह

पूर्व मंत्री और मध्य प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष सुरेंद्र चौधरी कहते हैं कि भाजपा ने हमेशा बुंदेलखंड के विकास के नाम पर छलावा किया है. विकास प्राधिकरण का गठन करके अपने नेताओं को बड़े-बड़े पोर्टफोलियो देकर उन्हें उपकृत किया, लेकिन बुंदेलखंड के विकास की चिंता बिल्कुल नहीं की है. इससे भाजपा का चाल चरित्र और चेहरा उजागर होता है.

विकास की योजनाओं के लिए बनाया गया था प्राधिकरण

सागर विधायक शैलेंद्र जैन कहते हैं कि बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण का गठन बुंदेलखंड की विकास योजनाएं बनाने के लिए किया गया था. न कि विकास कार्य करने के लिए, लेकिन इसमें जितने भी नेता बैठे हैं, उन्होंने मामूली बजट में छोटे-मोटे काम करें और बुंदेलखंड के विकास की योजना पर कोई ध्यान नहीं दिया. पिछले एक साल से बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण के पदों पर नियुक्ति नहीं हुई है. हम लोग प्रयास कर रहे हैं, जल्दी नियुक्ति की जाएगी.

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