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बुंदेलखंड की कला-संस्कृति का संगम है यहां! दामोदर अग्निहोत्री ने बुंदेली संग्रहालय के लिए जोड़ा 'तिनका-तिनका'

मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो इंसान क्या नहीं कर सकता, बस इसी जुनून ने एक मामूली से कर्मचारी को संग्रहालय का मालिक बना दिया. उसका जुनून ऐसा था कि नगर निगम की ड्यूटी खत्म करने के बाद साइकिल पर झोला टांगकर बुंदेलखंड की विरासत संजोने निकल पड़ते थे. जिनके 31 साल की मेहनत का परिणाम बुंदेली संग्रहालय के रूप में आप सबके सामने है, जहां बुंदेलखंड की समृद्ध कला-संस्कृति की झलक देखने को मिलती है.

Bundeli Museum in sagar
बुंदेलखंड की कला-संस्कृति का संगम

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Published : Oct 7, 2021, 10:14 PM IST

सागर। अपनी कला और संस्कृति से किसी व्यक्ति को किस हद तक प्रेम हो सकता है, इसका जीता-जागता उदाहरण सागर जिले के अहमदनगर इलाके में रहने वाले दामोदर अग्निहोत्री हैं. उन्हें किशोरावस्था से ही बुंदेलखंड की कला-संस्कृति और धरोहर को सहेजने की ऐसी धुन लगी कि जिंदगी की सारी कमाई और जमा पूंजी बुंदेलखंड की धरोहर को संजोने में लगा दी. सागर नगर निगम में तृतीय श्रेणी की नौकरी करने वाले दामोदर अग्निहोत्री ने रिटायरमेंट पर मिली राशि भी संग्रहालय बनाने में लगा दी. साइकिल पर एक झोला टांगकर वह कहीं भी बुंदेलखंड की विरासत ढूंढ़ते हुए मिल जाते हैं. उनकी इच्छा है कि आने वाली पीढ़ी बुंदेलखंड की समृद्ध संस्कृति और विरासत को समझे और जान सके कि बुंदेलखंड की कला-संस्कृति और विरासत कितनी समृद्ध है.

बुंदेलखंड की कला-संस्कृति का संगम है यहां!

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ऐतिहासिक विरासत संजोने की शुरू से थी ललक

अहमदनगर वार्ड में रहने वाले दामोदर अग्निहोत्री बताते हैं कि बचपन से ही ऐतिहासिक चीजें संजोने की उनकी आदत थी. बचपन में उन्हें कोई भी पुराना अखबार मिलता था या कोई भी ऐसी वस्तु मिलती थी, जोकि ऐतिहासिक महत्व की होती थी तो वह अपने पास रख लेते थे. अपने इसी शौक के चलते उन्होंने हायर सेकेंड्री में इतिहास विषय से ही पढ़ाई की थी, नौकरी मिलने के बाद उन्होंने अपने शौक को पूरा करने के लिए एक अभियान छेड़ दिया, जैसे ही वह ड्यूटी से फ्री होते तो घर पहुंचकर साइकिल पर थैला टांगकर बुंदेलखंड की ऐतिहासिक विरासत की तलाश में निकल पड़ते थे, उनका रोजाना का यही काम था.

खेती में काम आने वाले औजार

छोटी सी नौकरी में भी बना डाला संग्रहालय

बुंदेली संग्रहालय बनाने वाले दामोदर अग्निहोत्री की बात करें तो वह सागर नगर निगम में तृतीय श्रेणी के कर्मचारी थे और पेयजल परियोजना के पंप हाउस पर कार्यरत थे. उनको बुंदेलखंड की ऐतिहासिक विरासत जुटाने का शुरू से शौक था, जिसके पास कुछ भी होने की जानकारी मिलती, वह उसे खरीदने के लिए पहुंच जाते. छोटी सी नौकरी में यह काफी मुश्किल था तो उन्होंने चाय पीना छोड़ दिया और बाहर का खाना-पीना भी बंद कर दिया. परिवार के लोगों ने भी उनके इस अभियान के लिए छोटी-छोटी बचत कर उनकी भरपूर मदद की, यही वजह है कि अब उनके संग्रहालय में बेशकीमती और अनमोल बुंदेली धरोहर आसानी से देखने को मिल जाती है.

बुंदेलखंडी ग्रामीण परिवेश

बुंदेली विरासत को संग्रहालय में संजोने की कोशिश

संग्रहालय पर नजर डालें तो बुंदेलखंड की समृद्ध विरासत से जुड़ी अनेक चीजें देखने को मिल जाएंगी. प्राचीन खेती संबंधी उपकरण देखने को मिल जाएंगे, जबकि मिट्टी के बर्तन बनाने की विधि की झलक भी देखने को मिल जाएगी. बुंदेलखंड में दूल्हों का लिबास कैसा होता था और महिलाओं के कपड़े किस तरह के होते थे, इसकी झलक भी संग्रहालय में देखने को मिल जाएगी. बुंदेलखंड के प्राचीन औजार और बिजली के अभाव में रोशनी के लिए उपयोग किये जाने वाले उपकरण भी संग्रहालय में संजोया गया है. प्राचीन काल में साफ-सफाई और पुताई के लिए उपयोग होने वाली झाड़ू के अलावा, रसोईघर की जरूरी चीजें, महिलाओं के शानदार कढ़ाई वाले बटुए खेती के अलावा दूसरे कामों में उपयोग होने वाले औजार और कई तरह की चीजें इस संग्रहालय की शोभा बढ़ा रही है.

बुंदेली बटुआ

बुंदेलखंड की समृद्ध विरासत बताने की कोशिश

दामोदर अग्निहोत्री चाहते हैं कि बुंदेलखंड की समृद्ध विरासत पर आने वाली पीढ़ी नाज करे, ऐसी उनकी इच्छा है. वह चाहते हैं कि आधुनिकता की अंधी दौड़ में लोग अपनी समृद्ध विरासत और कला-संस्कृति को भूल न जाएं, इसके लिए उन्होंने ये संग्रहालय बनाने की पहल की है. वह संग्रहालय की जगह-जगह प्रदर्शनी लगा चुके हैं. मुंबई विश्वविद्यालय, सागर विश्वविद्यालय और कई महत्वपूर्ण स्थानों पर वह अपनी प्रदर्शनी लगाकर बुंदेलखंड की समृद्ध विरासत से लोगों को परिचित करा चुके हैं.

घरेलू सामान

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