सागर। देवल चोरी गांव में पिछले 118 सालों से रामलीला का मंचन किया जा रहा है. खास बात ये है कि रामलीला के मंचन के लिए किसी रामलीला मंडली को नहीं बुलाया जाता है, बल्कि गांव के लोग खुद रामलीला की तैयारी करते हैं और खुद रामलीला में अभिनय करते हैं. ब्रिटिश काल से चली आ रही इस परंपरा को जीवित रखने में स्थानीय नवयुवकों का अहम योगदान हैं. देवल चोरी गांव में होने वाली रामलीला को देखने के लिए दूर-दूर से हजारों की संख्या में लोग पहुंचते हैं.
बसंत पंचमी से होती है शुरुआत:सागर शहर से करीब 25 किलोमीटर दूर जैसीनगर विकासखंड मुख्यालय में स्थित देवलचोरी गांव में 118 साल से लगातार रामलीला का मंचन हो रहा है. देवलचोरी गांव की रामलीला को बुंदेलखंड की सबसे प्राचीन रामलीला भी कहा जाता है. रामलीला का आयोजन हर साल बसंत पंचमी से शुरू होता है. एक हफ्ते तक चलता है. हर साल की तरह इस साल बसंत पंचमी के पावन पर्व से रामलीला के मंचन की शुरुआत हुई है. रामलीला में बुधवार को सीता स्वयंवर और धनुष यज्ञ का आयोजन किया गया. जिसमें राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता के विवाह के लिए स्वयंवर का आयोजन किया गया. सीता स्वयंवर के धनुष यज्ञ में बड़े-बड़े पराक्रमी असफल हो गए और धनुष नहीं तोड़ सके. अंत में अपने गुरू की आज्ञा से जब अयोध्या के राजकुमार राम ने धनुष उठाया, तो पूरा देवलचोरी गांव जय श्रीराम के उद्घोष से गूंज उठा और श्री राम ने जनकपुर की राजकुमारी सीता से विवाह संपन्न हुआ.
1905 में शुरू हुआ था रामलीला:देवल चोरी गांव में रामलीला की यह परंपरा ब्रिटिश काल में सन 1950 में शुरू हुई थी. जब स्थानीय मालगुजार छोटेलाल तिवारी द्वारा रामलीला के मंचन का फैसला लिया गया था. तय किया गया था कि, गांव के लोग ही रामलीला के पात्रों का अभिनय करेंगे. गांव में ही रामलीला का मंचन किया जाएगा. मालगुजार छोटेलाल तिवारी के फैसले के बाद स्थानीय युवकों और बुजुर्गों ने मिलकर पात्र तय हो जाने के बाद कई दिनों तक अभ्यास किया. सीमित संसाधनों में रामलीला के मंचन की शुरुआत की गई. रामलीला के पहली आयोजन में आसपास के गांव के लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी. तय किया गया कि अब हर साल बसंत पंचमी के अवसर पर 7 दिन की रामलीला का मंचन किया जाएगा.