रीवा। एक वक्त था जब मिट्टी के बर्तनों का भरपूर प्रयोग होता था. रोजाना खाना बनाने के लिए या खास मौकों पर पूजा पाठ के लिए मिट्टी के बर्तन ही उपयोग किये जाते थे. लेकिन प्लास्टिक और स्टील के बर्तनों ने अब किचन से मिट्टी के बर्तनों को दूर कर दिया है. ऐसे में कुम्हारों के सामने अब रोजी- रोजी का संकट आ गया है.
दरअसल रीवा में बसे कुम्हार परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी से इस शिल्पकला से अपनी रोजी-रोटी चलते आ रहे हैं. मिटटी के बर्तन बनाना इनका मुख्य व्यवसाय है. लेकिन आधुनिक युग में स्टील, प्लास्टिक और बोन चाइना के बर्तनों के चलते इनके इस मिटटी के बर्तनों को पूछने वाला कोई नहीं है. वहीं अब इनकी मांग सिर्फ त्योहारों तक ही रह गयी है.
गौरतलब है कि दिवाली और कुछ ख़ास त्योहारों तक ही इनकी पूछ परख होती है. जिससे ये अपना परिवार चला रहे हैं. वहीं शासन-प्रशासन इनकी तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा है, जिसकी वजह से इनके सामने रोजगार के संकट आ गये हैं.
कुम्हारों का कहना है कि बर्तन बनाने के लिए मिटटी काफी दूर से खरीद कर लाना पड़ता है. उसके बाद उस मिटटी को बर्तन बनाने के लिए उपयुक्त बनाने में काफी समय लगता है. वहीं मंहगाई इतनी बढ़ गयी इन बर्तनों को बनाने का सामान भी महगा हो गया है. इसके साथ ही मार्केट में कई तरह के डिस्पोजल आ गए हैं जिसकी वजह से हमारे इस बर्तनों को पूछने वाला कोई नहीं है.
अब सरकार से कुम्हारों को काफी उम्मीदें हैं. बता दें कि देश में कई ऐसे शहर हैं जहां पर मिट्टी के बर्तनों का फिर से प्रयोग किया जा रहा है.