रायसेन। अगर हौसले बुलंद हों, इरादे मजबूत हों, तो दिव्यांग शरीर भी दौड़ने लगता है. यह बात औद्योगिक नगर मंडीदीप से सटे गांव हमीरी के 38 वर्षीय युवा किसान ने साबित कर दिखाया है.
युवा किसान जीवन छह वर्ष के थे, जब पोलियो ने उनके शरीर को जकड़ लिया था. उनके बड़े भाई अर्जुन सिंह और भरत सिंह उन्हें पीठ पर बैठाकर स्कूल ले जाते थे, लेकिन जीवन को ऐसी जिंदगी जीना रास नहीं आई. 10 वर्ष की उम्र में उन्होंने बड़े भाई के साथ खेती पर जाना शुरू कर दिया. वह जब 18 साल के हुए, तो उन्होंने ट्रैक्टर का स्टेरिंग संभालना शुरू कर दिया.
जीवन बताते हैं कि उन्हें शुरुआत में ट्रैक्टर और जीप चलाने में दिक्कत आई, लेकिन अब आसानी से सारे काम हो जाते है. बता दें कि, परिवार की 30 एकड़ जमीन का सारा काम जैसे बोनी और फसल काटने के बाद मंडी ले जाने का कार्य जीवन ही करते हैं. जीवन 18 वर्ष की उम्र से ट्रैक्टर और जीप चला रहे हैं, पर नियमों के चलते अभी तक उन्हें लाइसेंस नहीं मिल सका है.
38 वर्षीय किसान की जिंदादिली की कहानी घूम-घूम कर इस अंदाज में अलख जगा रहा दिव्यांग भजन गायक
जीवन का दिव्यांगों के लिए संदेश
जीवन ने उन सभी दिव्यांगों को संदेश देते हुए कहा ति कभी अपनी दिव्यांगता को अपने सपनों के आगे आने मत दों. कभी हिम्मत मत हारों. मन में अगर ठान लोगे, तो हर काम कर सकोगे, जो आप करना चाहते हों.