रायसेन।सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में इटली से आई एक शोधार्थी ने ब्रजभाषा में शोध पर विशेष व्याख्यान दिया. रोसीना पास्तोरे स्विट्जरलैंड के लूज़ेन विश्वविद्यालय के भारतीय दर्शन विभाग में शोधार्थी हैं और इसी विश्वविद्यालय में ग्रेजुएट असिस्टेंट के तौर पर कार्य करती हैं. रोसीना वर्तमान में विश्व भारती शांति निकेतन के भारतीय दर्शन विभाग में पीएचडी पूर्ण करने के लिए एक साल के लिए आई हैं, जिन्हें शांति निकेतन का हिंदी विभाग अपना पूरा सहयोग प्रदान कर रहा है.
रोसीना पास्तोरे ने ब्रजवासीदास की ब्रजभाषा के माध्यम से “प्रबोधचंद्रम के अनेक रूप और स्त्रोत” पर सांची विश्वविद्यालय के सभी विभागों के प्राध्यापकों और छात्रों, विशेषकर हिंदी विभाग के छात्रों के सामने अपना व्याख्यान दिया. रोसीना पास्तोरे, संस्कृत में लिखे गए प्रबोधचंद्रम में दर्शन के पक्ष को ढूंढने का प्रयास कर रही हैं.
विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की ओर से आयोजित किए गए इस व्याख्यान में रोसीना पास्तोरे ने बताया कि उन्होंने अपने अब तक के शोध में यह पाया है कि ब्रजवासीदास के द्वारा लिखे नाट्य प्रबोधचंद्रम पर संस्कृत में लिखे गए भरतमुनि के नाट्य का प्रभाव ना होकर तुलसीदास की रामचरित्रमानस का अधिक प्रभाव है.
ग्यारहवीं सदी में संस्कृत में लिखे गए प्रबोधचंद्रम को ब्रजवासीदास ने 17वीं शताब्दी में व्याख्यायित किया है. रोसीना का कहना है कि ब्रजवासीदास ने दरअसल ब्रज भाषा में ही प्रबोधचंमद्र को व्याख्यायित किया है क्योंकि उस दौर में ब्रज हिंदी का जोर था. हिंदी भाषा भी संस्कृत से होते हुए पहले ब्रज भाषा बनी और उसके बाद हिंदी भाषा बनी.