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MP की इस चर्चित सीट पर 3 दशक से कांग्रेस ने नहीं चखा जीत का स्वाद, इस बार भी खतरे की घंटी

आंकड़े दर्शाते हैं कि साल 1991 के बाद कांग्रेस मुरैना सीट पर जीत का स्वाद नहीं चख पायी है. इसके साथ ही वोट प्रतिशत कम होना उसके लिये चिंता का विषय है. हालांकि इस बार बीजेपी कांग्रेस में मुकाबला रोचक माना जा रहा है.

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Published : Apr 20, 2019, 12:41 PM IST

बीजेपी-कांग्रेस

मुरैना। लोकसभा चुनाव 2019 के रण की राजनीतिक दलों ने तैयारियां तेज कर दी हैं, लेकिन मुरैना में कांग्रेस के लिये वोट बैंक कम होना खतरे की घंटी बन चुका है. 1991 से मुरैना लोकसभा सीट पर कांग्रेस का वोट प्रतिशत लगातार कम होता जा रहा है. जिसके कारणों की समीक्षा का दावा कांग्रेस करती तो है, लेकिन उसे गंभीर नहीं मानती.

शायद यही वजह है कि तीन दशक पहले यहां 36 फीसदी वोट पाने वाली राष्ट्रीय पार्टी वोट हासिल करने के न्यूनतम स्तर 14 फीसदी तक सिमट गयी है. साल 1991 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मुरैना सीट पर 30 फीसदी वोट मिले थे जिससे कांग्रेस ने इस सीट पर कब्जा जमाया था, कांग्रेस के बारेलाल जाटव को 1 लाख 16 हजार 227 वोट मिले थे, जबकि बीजेपी के छविराम अर्गल को 99 हाजर 482 वोट ही प्राप्त हुये थे. वहीं बसपा ने भी यहां से 67 हजार 406 वोट निकाले थे.

इसके बाद1996 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने वापसी करते हुये जीत दर्ज की. बीजेपी के अशोक छविराम अर्गल को 42 फीसदी यानी 1 लाख 72 हजार 675 वोट मिले थे. इस चुनाव में बसपा के डॉ. पीपी चौधरी को 33 फीसदी वोट मिले जो दूसरे स्थान जबकि कांग्रेस तीसरे स्थान पर लुढ़क गयी.

इसके बाद 1998 में हुये चुनाव में बीजेपी के अशोक छविराम अर्गल को बढ़त मिली और वे 43.44 फीसदी यानी 2लाख 77 हजार 499 वोट लेकर दूसरी बार भाजपा को जिताने में सफल रहे. वहीं बसपा 32 फीसदी वोट यानी 2 लाख 9 हजार 378 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रही. जबकि कांग्रेस के रमेश बाबू तीसरे स्थान पर रहे. इस बार कांग्रेस को केवल 21 फीसदी वोट ही मिले थे.

इसके बाद साल1999 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के अशोक अर्गल को 42 फीसदी यानी 2 लाख 10हजार 790 वोट मिले, जबकि कांग्रेस के गोपाल राय को सिर्फ 29 फीसदी यानी 1 लाख 48 हजार 564 वोट मिले. वहीं तीसरे स्थान पर बसपा के पीपी चौधरी रहे, उन्हें 1 लाख 3 हजार वोट हासिल हुए थे.

बीजेपी-कांग्रेस

इसके बाद साल 2004 में बीजेपी के अशोक अर्गल को लगातार चौथी बार जीत मिली. इस बार अशोक अर्गल को रिकार्ड 52.87 फीसदी यानी 2लाख 61 हजार 337 वोट मिले, तो कांग्रेस को 1लाख13 हजार 919 यानी 29 फीसदी वोट ही मिल सके. वहीं बसपा के पीपी चौधरी को सिर्फ 18 फीसदी यानी 86 हजार 137 वोट मिले थे.

इसके बाद साल 2009 में मुरैना-श्योपुर लोकसभा सीट आरक्षित से बदल कर सामान्य हुई और यहां से बीजेपी के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर चुनाव लड़े. उन्हें 42.30 फीसदी यानी 3 लाख से अधिक मत मिले और वे कांग्रेस के रामनिवास रावत से 1 लाख मतों से जीत गये. कांग्रेस इस बार भी 2 लाख का आंकड़ा छूने से चूक गई. इस बार कांग्रेस को 1 लाख 99 हजार 650 वोट मिले, जबकि बसपा के बलबीर सिंह दंडोतिया को 19 फीसदी यानी 1लाख 42 हजार वोट मिले.


साल 2014 में भाजपा ने अपना प्रत्याशी बदला और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी के भांजे अनूप मिश्रा की मैदान में उतारा. अनूप मिश्रा ने को यहां से 44 फीसदी वोट मिले और जीत बीजेपी की झोली में आ गयी. अनूप मिश्रा ने 1लाख 32 हजार से अधिक वोटों के अंतर से बसपा के वृन्दावन सिंह सिकरवार मात दी थी. इस बार कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही और पूर्व मंत्री गोविंद सिंह को केवल 21 फीसदी वोट ही मिल सके.

आंकड़े दर्शाते हैं कि साल 1991 के बाद कांग्रेस यहां जीत का स्वाद नहीं चख पायी है. इसके साथ ही वोट प्रतिशत कम होना उसके लिये चिंता का विषय है. हालांकि इस बार बीजेपी कांग्रेस में मुकाबला रोचक माना जा रहा है. इस सीट से बीजेपी को जीत दिलाने वाले नरेंद्र सिंह तोमर एक बार फिर मैदान में जबकि कांग्रेस ने दूसरी बार रामनिवास रावत को मैदान में उतारा है. विधानसभा चुनाव के बाद मुरैना सीट के समीकरण बदल चुके हैं. प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि यहां के मतदाता किसे अपना सांसद चुनते हैं.

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