चुनाव सिर पर और मतदाता मौन, सन्नाटा बनी इस चुप्पी के क्या हैं संकेत?
साल 2018 के अंत में हुये एससी-एसटी आंदोलन और सवर्ण आंदोलनों ने विधानसभा चुनाव में खासा प्रभाव छोड़ा था, इसी का नतीजा रहा कि एमपी में तख्ता पलट हुआ. अब लोकसभा में भी एससी-एसटी वर्ग और अल्पसंख्यकों की एकजुटता बदलाव के संकेत दे रही है.
सीएम कमलना, राकेश सिंह
भोपाल। लोकतंत्र के महापर्व यानी लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है, लेकिन मतदाताओं ने चुप्पी ओढ़ रखी है. मतदाता ही वो जादूगर हैं जो चुनाव के वक्त सियासी दलों की कश्ती को डुबोते और पार लगाते हैं. बात अगर मध्यप्रदेश की करें तो यहां भी मतदाता मौन है. राजनीतिक जानकारों की मानें तो प्रदेश के मतदाताओं की ये चुप्पी राजनीति में आने वाले किसी बड़े बदलाव का संकेत दे रही है.
पिछले साल हुए एससी-एसटी आंदोलन और सवर्ण आंदोलनों ने विधानसभा चुनाव में खासा प्रभाव छोड़ा था, इसी का नतीजा रहा कि एमपी में तख्ता पलट हुआ. अब लोकसभा में भी एससी-एसटी वर्ग और अल्पसंख्यकों की एकजुटता बदलाव के संकेत दे रही है. जानकार मानते हैं कि इस बार एमपी में कांग्रेस के अच्छी स्थित में होने के बावजूद मोदी फैक्टर नकारा नहीं जा सकता.
राजनीतिक विषयों के जानकार डॉक्टर कमल दीक्षित कहते हैं कि किसान, मजदूर, युवा, व्यापारी शांत हैं, लेकिन ऐसी शांति एक अलग तरह का रिएक्शन डेवलप करती है, अगर ये रिएक्शन वोटों में तब्दील हुआ तो बदलाव जरूर होगा. उन्होंने कहा कि ये अकेले मध्यप्रदेश में नहीं पूरे देश में लागू होता है क्योंकि पूर्व में मतदाताओं की चुप्पी बदलाव की सुनामी ला चुकी है.
ये बात ग्वालियर चंबल के संदर्भ में इसलिये भी अहम हो जाती है, क्योंकि एससी-एसटी और सवर्ण आंदोलन की आग यहीं से उठी थी. ऐसे में देखना होगा कि मौन मतदाता मौन ही रहेंगे या फिर किसी बड़ी सुनामी के साथ नतीजे बदलेंगे.