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महिला दिवस विशेषः रानी अवंतीबाई ने 1857 में मंडला को करवाया था आजाद

रानी अवंतीबाई देश की महान वीरांगनाओं में से एक है. सन 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में रानी लक्ष्मीबाई के साथ रानी अवंतीबाई ने भी अंग्रेजों से लोहा लिया था. इतिहास के पन्नों में भले ही रानी अवंतीबाई कही गुम हो चुकि है, लेकिन आजाद भारत का सपना साकार करने में रानी अवंतीबाई ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. रानी अवंतीबाई ने मंडला को 1857 में आजाद कर दिया था. लेकिन इतिहास के पन्नों में रानी अवंतीबाई गुम हो गई है.

Rani Avantibai Lodhi
रानी अवंतीबाई लोधी

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Published : Mar 5, 2021, 9:43 PM IST

Updated : Mar 5, 2021, 11:38 PM IST

भोपाल।कहा जाता है कि किसी मजबूत इमारत को तोड़ने के लिए उस इमारत पर ताकत से वार करना पड़ता है. इमारत पर यदि पहला प्रहार पूरी ताकत से किया जाए तो नींव भी हिल जाती है. सन 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजी गुलामी की मजबूत लोहे की इमारत पर आजादी का पहला प्रहार रानी लक्ष्मी बाई ने किया था. उस प्रहार को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका रामगढ़ की रानी रानी अवंतीबाई लोधी ने निभाई थी. रानी अवंतीबाई ने मंडला को 1857 में आजाद कर दिया था. रानी अवंतीबाई रेवांचल में मुक्ति आंदोलन की सूत्रधार थी. वीरांगना अवंतीबाई लोधी के अंग्रेजी शासन के विरुद्ध संघर्ष और बलिदान से संबंधित ऐतिहासिक जानकारी समकालीन सरकारी पत्राचार, कागजातों में गायब है.

रानी अवंतीबाई की प्रतिमा
  • 1831 में हुआ था जन्म

वीरांगना रानी अवंतीबाई लोधी का जन्म सिवनी जिले के मनकेहणी गांव में 16 अगस्त 1831 को पिछड़े वर्ग के लोधी राजपूत समुदाय में हुआ था. अवंतीबाई के पिता का नाम जमींदार राव जुझार सिंह था. वीरांगना अवंतीबाई लोधी की शिक्षा-दीक्षा मनकेहणी में ही हुई थी. अपने बचपन में ही अवंतीबाई ने तलवारबाजी और घुड़सवारी करना सीख लिया था. ग्रामवासी बाल कन्या की तलवारबाजी और घुड़सवारी को देखकर आश्चर्यचकित हो जाते थे. वीरांगना अवंतीबाई बाल्यकाल से ही वीर और साहसी थी. जैसे-जैसे वीरांगना अवंतीबाई बड़ी होती गई, वैसे-वैसे उनकी वीरता के किस्से आसपास के क्षेत्र में आग की तरह फैलने लगे.

रानी अवंतीबाई का किला

पिता जुझार सिंह ने कन्या अवंतीबाई लोधी का विवाह मंडला जिले के सजातीय लोधी राजपूतों की रामगढ़ रियासत के राजकुमार से करने का निश्चय किया. जुझार सिंह की साहसी बेटी का रिश्ता रामगढ़ के राजा लक्ष्मण सिंह ने अपने पुत्र राजकुमार विक्रमादित्य सिंह के लिए स्वीकार कर लिया. राजकुमार विक्रमादित्य और अवंतीबाई का विवाह बाल्यावस्था में ही हो गया. इसके बाद जुझार सिंह की यह साहसी कन्या रामगढ़ रियासत की कुलवधू बन गई.

  • रानी अवंतीबाई ने संभाली जिम्मेदारी

1817 से 1851 तक रामगढ़ राज्य के शासक राजकुमार विक्रमादित्य सिंह के पिता लक्ष्मण सिंह थे. लक्ष्मण सिंह के निधन के बाद विक्रमाजीत सिंह ने राज्य की जिम्मेदारी संभाली. विक्रमाजीत सिंह बचपन से ही वीतरागी प्रवृत्ति के थे. अत: राज्य संचालन का काम उनकी पत्नी रानी अवंतीबाई ही करती रहीं. उनके दो पुत्र हुए जिनका नाम अमान सिंह और शेर सिंह रखा गया. एक ओर रामगढ़ राज्य में सबकुछ ठीक चल रहा था, वहीं दुसरी ओर अंग्रेजों ने भारत के अनेक भागों में अपने पैर जमा लिए थे. भारत पर अंग्रेजों का अतिक्रमण देख अवंतीबाई ने मन ही मन में अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने की ठान ली.

  • रानी अवंतीबाई ने किया शंखनाद

आजादी की लड़ाई में मंडला क्षेत्र का बहुत बड़ा योगदान है, जिसकी जानकारियां लोगों के सामने नहीं आई. महाकौशल क्षेत्र में आजादी की क्रांति में मंडला की अग्रणी भूमिका रही है, इसकी शुरुआत देखा जाए तो रानी अवंतीबाई के नेतृत्व में रामगढ़ (डिंडौरी) से शरू हुई थी. सबसे पहले आजादी का सपना उन्होंने ही देखा और आजादी के शंखनाद में महत्यपूर्ण योगदान दिया. अवंतीबाई लोधी ने शंकर शाह की अध्यक्षता में एक सम्मेलन किया, जिसमें करीब 300 लोग जुटे और सबने ये शपथ ली कि अब अंग्रेजों को भगा कर ही दम लेंगे.

1857 में ही आजाद हो गया था मण्डला, 22 लोगों को एक साथ दी गई थी फांसी

  • 1857 में राजा विक्रमादित्य का निधन

सन 1857 में रामगढ़ के राजा विक्रमादित्य अस्वस्थता के चलते निधन हो गया. राजा के निधन के बाद रानी लक्ष्मीबाई की तरह ही रानी अवंतीबाई ने राज्य का कारभार संभाला. ब्रिटिश शासन के तात्कालीन गवर्नर लार्ड डलहौजी को रानी का राज करना पसंद नहीं आया. डलहौजी ने रामगढ़ रियासत को कोर्ट ऑफ वार्डर के आधीन कर लिया. ब्रिटिश शासन ने रामगढ़ में तहसीलदार नियुक्त कर दिया. यह बात रानी अवंतीबाई को पसंद नहीं आई. रानी अवंती बाई ने कोर्ट ऑफ वार्डर के अधिकारियों को रामगढ़ से भगा दिया. इस घटना के बाद अंग्रेज और रानी अवंतीबाई प्रत्यक्ष रुप से सामने आ गए.

  • 1857 में आजाद हो गया था मंडला

रामगढ़ सम्मेलन से ही आजादी के आंदोलन की रणनीति बनी और धीरे-धीरे शहपुरा के जमींदार विजय, मंडला के जमींदार उमराव सिंह जिनका मुख्यालय खरदेवरा था और नारायणगंज के जमींदार सभी ने रानी अवंतीबाई के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया और अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए. इतिहासकार नरेश जोशी के अनुसार एक समय ऐसा भी आया, जब 22 या 23 नवंबर को अट्ठारह सौ सत्तावन में मंडला के खैरी में आजादी के इन जांबाज योद्धाओं की सेना और अंग्रेजी सेना के बीच एक भीषण युद्ध हुआ, जिसमें अंग्रेजी सेना परास्त हो गई और मंडला का डिप्टी कमिश्नर वाडिंग्टन को जान बचाकर भागना पड़ा, जिसके बाद यहां के तहसीलदार और थानेदार भी भाग खड़े हुए और मंडला पूरी तरह से अंग्रेजी हुकूमत की गुलामी से स्वतंत्र हो गया.

  • देश के लिए दे दिया बलिदान

रानी और ब्रिटिश हुकूमत के आमने-सामने आने के बाद तात्कालीन मंडला डिप्टी कमिश्नर वांडिगटन लम्बे ने रिवा नरेश के साथ मिलकर रामगढ़ पर हमला बोल दिया. ब्रिटिश और रिवा की सेना के सामने रानी अवंतीबाई की सेना छोटी पड़ गई. रानी अवंतीबाई ने युद्ध के दौरान किला छोड़कर देवहारगढ़ की पहाड़ियों की तरफ प्रस्थान किया. रानी को अंग्रेज और रिवा की सेना ने घेर लिया. रानी अवंतीबाई को अंग्रेजों ने आत्मसमर्पण करने को कहा. रानी अवंतीबाई ने झुकने से ज्यादा मरना मुनासीफ समझा और अपने सैनिक के हाथ से तलवार छीनकर स्वयं को तलवार भोंककर देश के लिए बलिदान दे दिया.

Last Updated : Mar 5, 2021, 11:38 PM IST

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