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मंडला में बीजेपी मतलब फग्गन सिंह कुलस्ते, कैसा रहा कार्यकाल, बरकरार रहेगा दबदबा? - faggan singh kulaste

फग्गन सिंह कुलस्ते मंडला लोकसभा सीट की पहचान बन गए हैं. उन्होंने इस सीट पर पांच बार फतह हासिल कर बीजेपी के सिर पर जीत का सेहरा पहनाया है.

फग्गन सिंह कुल्सते।

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Published : Mar 29, 2019, 12:30 PM IST

मंडला। बीजेपी के आदिवासी चेहरे के रूप में पहचाने जाने वाले फग्गन सिंह कुलस्ते मंडला सीट को पांच बार फतह किया है. खास बात ये है कि इस सीट पर बीजेपी भी पांच ही बार जीती है, यानी मंडला में बीजेपी तभी सियासी वैतरणी पार कर सकी जब-जब फग्गन सिंह कुलस्ते उसके माझी बने.

मंडला में फग्गन सिंह कुलस्ते की जीत का सिलसिला शुरू हुआ 1996 में, जब उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी को शिकस्त देकर यहां पहली बार फूल खिलाया. 96 के बाद 98, 99 और 2004 के आम चुनावों में कांग्रेस एक बार भी बीजेपी को टक्कर नहीं दे सकी. लेकिन, 2009 में फग्गन सिंह कुलस्ते की जीत का ये सिलसिला टूट गया और कांग्रेस के बसोरी सिंह मसराम सांसद बने. इसके बाद 2014 की मोदी लहर में कुलस्ते एक बार फिर अपना गढ़ वापस लेने में कामयाब रहे. 2014 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो यहां फग्गन सिंह कुलस्ते को 5 लाख 85 हजार 720 वोट यानी कुल मतों का 48 फीसदी हिस्सा मिला था, जबकि कांग्रेस के ओमकार सिंह ने 4 लाख 75 हजार 521 यानी 39 फीसदी वोट हासिल किये थे.

फग्गन सिंह कुल्सते।

2014 के लोकसभा चुनाव में बड़ी जीत हासिल करने के बाद कुलस्ते को मोदी सरकार में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री बनाया गया, लेकिन बाद में उनसे मंत्री पद छीन लिया गया. इससे पहले 1999 में वे वाजपेयी सरकार में भी केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं.

5 बार सांसद रहे कुलस्ते के पिछले कार्यकाल के बारे में बात की जाए तो संसद में उनकी उपस्थिति 85 फीसदी रही. उन्होंने पिछले पांच साल में 110 सवाल किए और 17 बार बहस में हिस्सा लिया. कुलस्ते सदन में तीन बार प्राइवेट मेंबर बिल भी लाए. उन्हें अपने संसदीय क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए करीब साढ़े 17 करोड़ रुपये आवंटित हुए, जिसमें से उन्होंने 16.11 करोड़ रुपये यानी सांसद फंड का करीब 92 फीसदी खर्च भी कर दिया. इस तरह से उनका करीब पौने दो करोड़ का फंड बिना खर्च किये रह गया.

कुलस्ते का कार्यकाल मंडलावासियों को केंद्रीय विद्यालय, ब्रॉडगेज रेलवे लाइन, प्रसार भारती का प्रसारण और सड़क निर्माण की सौगात देने के लिए जाना जाता है, जबकि स्वास्थ्य मंत्री होते हुए भी जिले की बद्तर स्वास्थ्य सुविधाएं और डॉक्टरों की कमी को उनके कार्यकाल की खामियों के तौर पर देखा जाता है.

प्रदेश में आदिवासियों के सबसे बड़े चेहरे के रूप में पहचान बनाने के बावजूद हर गांव से 60 से 70 फीसदी लोगों का पलायन, लोकसभा क्षेत्र में कोई कारखाना न होना, नदियों के बावजूद पेयजल और सिंचाई की समस्या का स्थाई हल न खोज पाना, डोलोमाइट खनन का स्थानीय लोगों को लाभ न दिलवा पाना. ऐसी समस्याएं हैं जिनका जवाब यहां की जनता चाहती है और यही वो स्थानीय मुद्दे हैं जिनके आसपास इस सीट का चुनावी रण लड़ा जाएगा.

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