मंडला।कुपोषण के खिलाफ जंग के लिए केंद्र सरकार ने सभी जिलों में कुपोषण राहत केंद्र बनवाया है. जिससे सरकार लगातार कुपोषण को दूर करने की तमाम कोशिशें कर रहा है, लेकिन जब एनआरसी का ही कोई ठौर ठिकाना ना हो और लोगों को दर-दर भटकना पड़े तो आप सोच सकते हैं कि कुपोषण को दूर करने के लिए जिम्मेदार कितने गंभीर हैं. वहीं बार-बार स्थान बदलने के चलते बच्चों और उनके पालकों को आवश्यक सुविधाओं से वंचित होना पड़ रहा है.
मंडला जिले में पहले पुरानी बिल्डिंग को तोड़ने के नाम पर कुपोषण राहत केंद्र को स्थानांतरित किया गया. जहां जब तक सारी व्यवस्थाएं हो पाती वहां से कोरोना के मरीजों के लिए बच्चों को चाइल्ड वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया. जिसके बाद करीब एक महीने के लिए इसे बंद ही कर दिया गया. अब कुपोषण राहत केंद्र जिला अस्पताल से करीब एक किलोमीटर दूर रेड क्रॉस सोसायटी की किराए की बिल्डिंग में संचालित हो रहा है, जहां पहले जैसी सुविधाएं नहीं हैं.
कितने बार बदला सेंटर
- फरवरी माह में सबसे पहले इसे पुरानी बिल्डिंग को डिस्मेंटल किए जाने को लेकर पुराने सीएमएचओ कार्यालय में शिफ्ट किया गया. नए सिरे से सारी सुविधाएं, कलर पेंट और अन्य व्यवस्था के साथ इसे सजाया संवारा गया.
- मार्च माह में इस एनआरसी सेंटर को खाली करके कोरोना आइसोलेशन सेंटर में तब्दील कर दिया गया.
- मार्च से अप्रैल तक करीब एक माह कुपोषण राहत केन्द्र बंद रहा.
- अप्रैल माह से जून के पहले हफ्ते तक जिला अस्पताल के चाइल्ड वार्ड में कुपोषित बच्चों का उपचार हुआ. इस दौरान कुपोषित बच्चों का टेलीफोनिक फॉलोअप लिया गया. साथ ही जरूरी चीजें आहार और दवाएं घर पर उपलब्ध कराई गई.
- जून के पहले हफ्ते में रेड क्रॉस सोसायटी में किराए पर तीसरे माले में शिफ्ट किया गया. जहां फिर से नए सिरे से सारी व्यवस्थाएं की जा रही हैं.
तीन माह में लगभग 120 बच्चों का होता है आना
मंडला जिले में करीब 14 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं. ऐसे में हर तीन महीने के आंकड़े देखें तो 120 के लगभग कुपोषण के शिकार बच्चे आते हैं. ऐसे में एनआरसी केंद्र को बार-बार शिफ्ट किया जाना या बंद किया जाना उन बच्चों के लिए घातक है, जो कुपोषण के शिकार हैं. वर्तमान में ही इस केंद्र में 18 बच्चे भर्ती हैं.
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