खंडवा। कहते हैं कि लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती और कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती. जिले के पुनासा के पास बीड़ गांव के एक मछुआरे की बेटी कावेरी ढीमर ने कुछ ऐसा ही कर दिखाया है कि देखने वाले हैरान रह गए. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने वाली कावेरी मछली पकड़ने वाले एक गरीब पिता रणछोड़ ढीमर की बेटी है. पुनासा के पास बीड़ गांव के बैक वाटर से तैराकी सीख कर अपने हुनर का परिचय देते हुए 'कैनोइंग और कयाकिंग' जोकि विदेशी गेम है, उसमें मध्यप्रदेश का परचम लहाराया है.
छोटी उम्र में बड़ा मुकाम
गरीबी और मुफलिसी के बीच कुछ करने की चाहत ने कावेरी को वो पहचान दिलाई है, जो शायद कम ही लोगों को नसीब होती है. सीमित संसाधनों के बाबजूद तैराकी के साथ कैनोइंग में कुछ कर गुजरने की हसरत से छोटी सी उम्र में कावेरी ने एक बड़ा मुकाम हासिल किया है. उसके परिवार में इस खेल के प्रति इतना समर्पण नहीं था, लेकिन खंडवा के पूर्व जिला खेल अधिकारी जोसफ बक्सला, कोच चेतन गौहर ने कावेरी को ग्रामीण क्षेत्र से निकालकर भोपाल तक पहुंचाया.
पिता का कर्ज चुकाया
कोच चेतन गौहर ने बताया कि इस बेटी की उपलब्धि इस बात से लगाई जा सकती है कि छोटी सी उम्र में उसने न सिर्फ अपने पिता का कर्ज चुकाया, बल्कि अपने परिवार का पालन-पोषण भी कर रही है. इस बेटी की तैराकी के बारे में जब जानकारी लगी तो जिला खेल अधिकारी और हमने उसके घर पहुंचकर उसका मनोबल बढ़ाया.
तैराकी में हासिल किया गोल्ड मेडल
गांव के बैक वाटर से तैराकी की शुरूआत करने वाली कावेरी ने हाल ही में सब जूनियर में गोल्ड मेडल जीता है, जूनियर रहते हुए सीनियर में गोल्ड मेडल लाना सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जाती है. कैप्टन पीयूष वारोई मुख्य कोच मध्यप्रदेश वाटर स्पोर्ट्स अकादमी ने कहा कि ओलंपिक और एशियन चैंपियनशिप के लिए इसी माह कैंप आयोजित होने वाला है. खिलाड़ी कावेरी ने जो कर दिखाया है, वह हर कोई नहीं कर सकता.