जबलपुर।मां जगदंबा, जगत जननी, जगदंबे और ना जाने ऐसे कितने नाम जिनके स्मरण मात्र से जीवन की हर मुश्किलें आसान हो जाती है. ऐसी ही शक्ति की उपासना का नवरात्र पर्व चल रहा है. प्रदेश में जगह-जगह माता के पंडला सजाए गए हैं, वहीं गरबा का आयोजन किया जा रहा है. आज हम आपको मध्यप्रदेश की एक ऐसी शक्ति के दर्शन कराएंगे जिनके दर्शन मात्र से हर मनोकामना पूरी हो जाती है. जो दानवीर कर्ण की कुलदेवी थी, जो पूरे देश में इकलौती प्रत्यक्ष रुप में मौजूद हैं, ऐसी हैं मां त्रिपुर सुंदरी. sharadiya navratri 2022, famous tripura sundari devi temple, Thousand years old history of Maa Tripura Devi
Sharadiya Navratri 2022: मां वैष्णो देवी का स्वरूप मानी जाती हैं मां त्रिपुर सुंदरी, इस शहर में विराजमान हैं राजा कर्ण की कुलदेवी
शारदीय नवरात्रि में माताओं के अनोखे और निराले किस्से सुनने मिल रहे हैं. वहीं आज हम आपको बताएंगे जबलपुर की प्रसिद्ध त्रिपुर सुंदरी माता के बारे में. त्रिपुर सुंदरी माता का इतिहास हजारों साल पुराना है. कहा जाता है कि माता के दर्शन मात्र से हर मनोकामना पूरी हो जाती है. sharadiya navratri 2022, famous tripura sundari devi temple, Thousand years old history of Maa Tripura Devi, devotee of karna maa tripura devi
हजारों साल पुराना है इतिहास: मां त्रिपुर सुंदरी मंदिर का इतिहास सौ-दो सौ साल पुराना नहीं बल्कि हजारों साल पुराना है. मान्यता है कि 5000 साल पहले त्रिपुर सुंदरी मां द्वापर युग में महादानवीर कर्ण की कुलदेवी थीं. करण त्रिपुर सुंदरी मां की श्रद्धा भाव से सेवा करता था, त्रिपुर सुंदरी मां ने कर्ण को वरदान दिया था कि वह चाहे जितना भी दान कर ले उसके खजाने में हमेशा सवा मन सोना बना रहेगा. जब कर्ण ने मां से वरदान मांगा कि जिस तरह मैं हमेशा आपकी सेवा करता हूं और मैंने स्वयं को आपके लिए अर्पित कर दिया है. भविष्य में आप के भक्तों को भी आपकी कृपा मिल सके कोई ऐसा उपाय करिए. इस पर त्रिपुर सुंदरी मां ने वरदान दिया कि जो भी भक्त श्रद्धा भाव से उनके दरबार में एक नारियल चढ़ाएगा. उसकी हर मनोकामना पूरी होगी. तब से त्रिपुर सुंदरी मंदिर में नारियल बांधे जाने लगे.
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त्रिपुर सुंदरी मंदिर के प्रथम पुजारी करीब 80 साल के रमेश दुबे बताते हैं कि उन्हें 10 साल की उम्र में मां भगवती ने सपने में दर्शन दिए थे और अपने त्रिपुर सुंदरी स्वरूप का स्थान बताया था. इसके बाद उन्होंने इस स्थान की खोज की. उस जमाने में यह भयानक जंगल हुआ करता था. जंगल के बीचो-बीच एक बेल के पेड़ के नीचे उन्होंने त्रिपुर सुंदरी मां का प्रतिभा स्वरूप मिला और फिर उनकी सेवा शुरु कर दी.